कभी वोट न डालने वाले धुनते रहे गोष्ठियों में सर, शहर की गिहार बस्ती में वोटरकार्ड नदारद

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फर्रुखाबाद: निर्वाचन आयोग के निर्देश पर मतदाताओं को जागरूक करने के लिए 25 जनवरी को पूरे देश में मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है। जिस पर करोड़ों का बजट खर्च किया जा रहा है। जनपद में भी मतदाताओं को जागरूक करने के लिए एक लाख रुपये का बजट दिया गया। जिसका तिया-पांचा करने के लिए कई गोष्ठियों का तथाकथित रूप से आयोजन किया गया। जिनमें अधिकांश वक्ता और श्रोता भी वह प्रबुद्ध लोग थे जो चुनावों में कभी कभार ही वोट डालने जाते हैं। गोष्ठियों के मंच से लम्बे लम्बे भाषण दिये गये। इसके विपरीत शहर के बीचोबीच जिला प्रशासन की नाक के नीचे लकूला स्थित गिहार बस्ती के अधिकांश निवासी यह तक नहीं जानते कि मतदाता पहचान पत्र किस चिड़िया का नाम है। अधिकांश नागरिक सुविधाओं से आज भी यह लोग अनजान बने हुए हैं। इनका इस्तेमाल गाहे बगाहे पुलिस अपने गुडवर्क में फर्जी मुल्‍जिमों की जरूरत पर करती है। अक्‍सर देर रात्रि में पुलिस की एक-आध जीप किसी अंधेरे कोने में भी खड़ी दिख जाती है।

शहर के पियक्‍कड़ों के अलावा पुलिस व आबकारी विभाग के अधिकारियों/कर्मचारियों के लिये शहर के बीचोबीच स्‍थित गिहार बस्‍ती जाना पहचाना नाम है। जहां पियक्‍कड़ों को हर समय सस्‍ती दारू मिल जाती है तो वहीं पुलिस व आबकारी विभाग को उनके गुडवर्क के लिए कच्ची दारू के साथ साथ फर्जी मुलजिम भी आसानी से मिल जाते हैं। बदले में पुलिस व आबकारी विभाग उनको विभिन्‍न गैर कानूनी कामों के लिये संरक्षण उपलब्‍ध कराते हैं। आम तौर पर पुलिस उस रास्‍ते से गुजरने से परहेज करती है, परंतु जरूरत पड़ने पर पुलिस जीप अंधेरे-उजाले अगर किसी पहले से तक रखी झोंपड़ी पर दस्‍तक देती है तो यह गरीब ऐतराज भी नहीं करते। करें भी तो, क्‍या करलेंगे।

वर्षों बाद भी लकूला स्थित गिहार बस्ती की स्थिति जस की तस बनी हुई है। शहर की सबसे पॉश बस्‍ती आवास विकास कालोनी के ठीक पीछे बसी गिहार बस्‍ती अनोखा सा विरोधाभास प्रस्‍तुत करती है। आज पूरा देश मतदाता दिवस मना रहा है। जगह जगह पर गोष्ठियों व संगोष्ठियों के माध्यम से लोगों को हाल के अंदर जागरूक किया जा रहा है लेकिन वहीं इस गिहार बस्ती की बात करें तो यहां के अधिकांश निवासियों को यह भी नहीं मालूम कि आखिर पहचान पत्र किस चिड़िया का नाम है।

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बड़ी बड़ी गोष्ठियों में विकास और सर्व शिक्षा अभियान की डींगे मारने वाले अधिकारी अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर बैठे हैं या यूं कहिए कि यह छोटा सा मोहल्ला पुलिस प्रशासन के लिए दुधारू गाय साबित हो रहा है। तमंचे हों या कच्ची दारू यहां तक कि पुलिस की जीपों को देर रात इस बस्ती में खड़े देखा गया। आखिर रात में पुलिस यहां क्या करती है?

गिहार बस्तियों के बच्चों को न तो आंगनबाड़ी केन्द्र का पता है और न ही स्कूल का। स्कूल है भी तो मोहल्ले से दो किलोमीटर दूर। गिहार बस्ती लकूला के पास कोई स्‍कूल नहीं है इसलिये बच्चे भी स्कूल कम ही जाते हैं। आंगनबाड़ी केंद्र तो पूरे जिले में बंद ही रहते हैं, सो वही हाल यहां भी है। सुबह से ही कच्ची दारू की भट्ठियां धधकने लगतीं हैं। मजे की बात तो यह है कि इस बात से प्रशासन के साथ साथ पुलिस भी भली प्रकार परिचित है। छापे भी पड़ते हैं तो सिर्फ गुड वर्क के लिए या तब जब हफ्ता नहीं पहुंचता अथवा ऊपर से कोई विशेष अभियान का निर्देश आ जाता है।

मोहल्ले के निवासी विनोद, ओमवती व सुखरानी का कहना है कि वह बच्चे स्कूल में इसलिए नहीं भेजती कि वहां पर पैसे मांगे जाते हैं। पहचान पत्र का नाम तो सुना है लेकिन यह नहीं पता कि इससे होता क्या है। कोई कहता है कि इस पर राशन मिलता है तो कोई इसे सरकारी सुविधाए मिलने वाला कार्ड बता रहा है। गिहार बस्ती में ज्यादातर लोगों के मतदाता पहचान पत्र बने ही नहीं। बजह कि जब भी जानकारी करके वह पहचान पत्र बनवाने पहुंचे तो उनसे सम्बंधित लोगों ने रुपये की मांग की। इसके बाद वह लोग घर बैठ गये। विनोद का तो यह कहना है कि हमें क्या करना मतदाता पहचान पत्र का हम तो अपने ही काम में खुश हैं। हमें उसका उपयोग ही क्या करना, जो हम 200 रुपये बाबू को देकर पहचान पत्र बनवायें।

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