एमडीएम रिपोर्ट: बैलेंस शीट में करोडो का हेर फेर?

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यूपी में इन दिनों मिड डे मील योजना को लेकर हाहाकार मचा है, जिले के शिक्षा विभाग से लेकर राजस्व प्राशसनिक अमला गाँव गाँव दौरे कर स्कूलों में मिड डे मील पर शिकंजा कसने में लगा है| कहीं दलित के हाथ का बना खाना खाने से इंकार का मामला तो कहीं प्रधान और ग्राम सचिव द्वारा मिड डे मील के खाली खातों को लेकर| सर्व शिक्षा अभियान योजना में दोपहर को स्कूल में बने बनाये भोजन उपलब्ध करने की योजना यूपी में भ्रष्टाचार के भगौने में उबल रही है| केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गए धन को खर्च दिखा नए साल में बजट उगाह लेने की फिकर में उत्तर प्रदेश के नौकरशाहों ने वो कारनामे कर डाले जिसकी उम्मीद नहीं थी|

एक नजर इधर भी-

उत्तर प्रदेश मध्याह भोजन प्राधिकरण लखनऊ में उपलब्ध मिड डे मील के कन्वर्जन कास्ट और खाद्यान के दस्तावेज बताते है कि प्रदेश में जिलों से आने वाले वार्षिक उपभोग और स्वीकृत धनराशी में करोडो का गोलमाल हो गया| जिलों में तैनात बेसिक शिक्षा विभाग के बाबुओ को मिड डे मील के खातों के रख रखाव की जिमेदारी सौपी गयी| सर्व शिक्षा अभियान में प्रतिनियुक्ति पर नियुक्त हुए कर्मी सिर्फ मोहर बन कर रह गए| इन बाबुओ द्वारा तैयार मिड डे मील की बैलेंस शीट में भारी गड़बड़ी हो रही है| किसी जिले में प्राप्त धनराशी से ज्यादा खर्च हो गया तो कहीं करोडो कहाँ खर्च हुए इसका हिसाब देने में असमर्थ हो गए| हर साल जिलों से मुख्यालय पर भेजी गयी रिपोर्ट के आधार पर जब प्रदेश की बैलेंस शीट तैयार की जाती है तो गड़बड़ा जाती है| फिर ये बैलेंस शीट वापिस जिलों में संसोधन के लिए भेजी जाती है|

वर्ष 2009-10 को अंतिम अवशेष के साथ मुख्यालय को भेजी गयी रिपोर्ट में जनपद आगरा में 1.09 करोड़, बहराइच में .60 करोड़, बलरामपुर में १.१९ करोड़, गोरखपुर में 3.82 करोड़, हरदोई में 16 करोड़, जालौन में .55 करोड़ तो जौनपुर में 3.45 करोड़, कौशाम्बी में .25 करोड़ तो लखीमपुर खीरी जनपद में 9 करोड़ के हेरफेर पर उत्तर प्रदेश मध्याह भोजन प्राधिकरण लखनऊ द्वारा जनपदों से जबाब तलब किया गया है|

उत्तर प्रदेश के पिछले दो साल के खातों के अन्वेषण से पता चलता है कि हर साल वर्ष के अंत में मुख्यालय को भेजी जाने वाली क्लोसिंग रिपोर्ट में भरी वित्तीय अनियमितता हो रही है| केवल जबाब मांगने का पत्र और मुख्यालय द्वारा केंद्र को भेजी गयी रिपोर्ट की कापी देख कर जिले की बैलेंस शीट बनाने को पत्र जारी होतें है| जाहिर है जिलों के पास कोई पुख्ता और सही रेकॉर्ड्स नहीं है, और न ही इन्हें उत्तर प्रदेश लेखा नियंत्रण के आडिट में फसने का डर है क्यूंकि सर्व शिक्षा अभियान का आडिट सीए द्वारा कराया जाता है| लेकिन यही कागजी गोलमाल और अन्क्देबजी का नतीजा है कि आज उत्तर प्रदेश में ग्राम प्रधानो/सरपंचो के पास फसे प्राधिकरण के अरबो रुपये वापस लेने का कोई मंत्र नहीं है| हमाम में सब नंगे है|
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भाग1

भाग2

भारत में शिक्षा के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गयी लगभग 1900 लाख रुपये की सहायता के दुरूपयोग पर ब्रिटिश सरकार यू ही नहीं खफा है| सर्व शिक्षा अभियान के लिए उन मदों पर खर्च किया गया जिनकी जरूरत नहीं थी| बिना बिजली का इंतजाम किये कंप्यूटर खरीद किये गए, ए सी लगाये गए, कीमती बिस्तर खरीदे गए, 7531 रगीन टेलीवीजन, कीमती फोटोकॉपी मशीन, फेक्स खरीद डाले गए| मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा ब्रिटिश सरकार को उपलब्ध करायी करायी गयी रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है, अब ब्रिटिश सरकार भारत को शिक्षा में मदद पर कटौती करने का विचार बना रहा है| उसका मानना है कि रईस भारत को अब मदद की जरूरत नहीं है|

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