यूपी: मुद्दा विकास का-निशाना वोटर पर

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उत्तर प्रदेश में विकास में आड़े आ रही समस्याएं खुद प्रशसनिक अमले द्वारा पैदा की गयी है| राजनैतिक वर्चस्व को लेकर केंद्र और प्रदेश सरकार में आरोप प्रत्यारोप अब लगातार विकास के मुद्दे पर हो रहा है| मायावती कहती हैं कि उन्हें केंद्र उत्तर प्रदेश में पैसा समय से और पूरा नहीं देता तो सोनिया और राहुल प्रदेश सरकार पर केंद्र के पैसे के दुरूपयोग का आरोप लगते हैं| ऐसा क्यूँ हो रहा पीछे कोई नहीं जाना चाहता|

आये दिन प्राथमिक शिक्षा में कभी मिड डे मील में गड़बड़ तो कहीं शिक्षा गुणवत्ता का कचरा, कहीं शिक्षक गायब तो कहीं सरकार द्वारा मुफ्त उपलब्ध कराई जा रही पुस्तको में गड़बड़| नरेगा के हाल का तो जैसा बेहाल उत्तर प्रदेश में हुआ शायद कहीं नहीं| कागजों की हकीकत और गाँव के विकास की हकीकत में जमीन आस्मां का अंतर| यही हाल स्वास्थ्य का है| न प्रयाप्त डॉक्टर हैं और न दवाएं|

आखिर इन सबके लिए कौन जिम्मेदार है| नेता, नौकरशाह या फिर योजना|

दरअसल प्रदेश में स्वास्थ्य शिक्षा और अन्य विकास झूठ का पुलिंदा है| मायावती को खुश रखने के लिए नौकरशाह बढ़िया आंकड़े पेश कर रहे है| मसलन मिड डे मील में कई जनपदों में ८० प्रतिशत तक दलित रसोइये काम करते दिखा दिए पढ़े:- मिड डे मील में दलित रसोइये: इलाहाबाद में 2892 तो फर्रुखाबाद में केवल 15 |

मिड डे मील के लिए केंद्र से आवंटन होने वाले खाद्यान और कन्वर्जन कास्ट में बेहतर आंकड़ेबाजी कर रिपोर्ट पेश कर दी| ये रिपोर्ट उत्तर प्रदेश के नौकरशाहों द्वारा केंद्र को भेजी गयी रिपोर्ट थी| इसका मिलान और अनुरक्षण हुआ तो चौकाने वाले तथ्य पकड़ में आ गए| कहीं कन्वर्जन कास्ट खाद्यान से ज्यादा खर्च हो गयी तो कहीं खाद्यान ज्यादा खर्च हो गया और कन्वर्जन कास्ट बच गयी| जितने दिन स्कूल में अध्ययन कार्य हुआ उमीद डे मील उससे ज्यादा दिन बन गया|- देखें रिपोर्ट – MDM WRITE UP

दरअसल ये सब फर्जी आंकड़े पेश करने का नतीजा है| प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में उपस्थिति का औसत काफी कम है जबकि एमडीएम की रिपोर्ट में उपभोग बढ़ा चढ़ा कर दिखाने के चक्कर में नौकरशाह खुद जनपदीय अधिकारिओं पर दबाब बनाते है| जनपदीय अधिकारी भी खाऊ कम्यु कुर्सी पर जमे रहने लिए ये कारनामा करते है| फिर जब मामला पकड़ा जाता है तब केंद्र और प्रदेश के नौकरशाह एक दुसरे का मुह ताकते है|

    मुद्दा विकास का होता है निशाना वोटर

कुछ कारवाही होती है तो नया बजट करने से पहले केंद्र पिछला उपभोग सही करके मांगती है, नहीं मिलता है तो पैसा रुकता है| पैसा रुकता है तो प्रदेश सरकार चिल्लाती है| और लगे हाथ आये मुद्दे को पाकर खोयी सत्ता पाने को कांग्रेस चिल्लाती है| मुद्दा विकास का होता है निशाना वोटर| जनता कहीं नहीं दिखती|