शैक्षिक सत्र शुरू होने के पहले ही दिन स्कूलों में अव्यवस्थाओं का आलम दिखाई दिया। जिन स्कूलों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नहीं थे, वहां बच्चों को पहले ही दिन सफाई के काम में जुटना पड़ा। दो माह के बाद छुट्टियों से लौटे बच्चे प्रार्थना भूल गए। इस दरम्यां आराम की ड्यूटी निभाने वाले शिक्षक भी भागते दौड़ते स्कूल पहुंचे।
बच्चों और शिक्षकों का ज्यादातर समय गपशप में ही बीता। शहर के आसपास व गांवों में ज्यादातर सरकारी स्कूलों का आलम यह था कि बच्चों को पहले ही दिन स्कूल की सफाई करनी पड़ी। डेस्क और टेबल जमाने पड़े। आधे से ज्यादा वक्त इसी काम में ही गुजर गया। शिक्षकों का कहना है कि स्कूलों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की कोई व्यवस्था नहीं होने से बच्चों से काम करवाना पड़ता है। कुछ स्कूलों में सफाई करते थक चुके बच्चों को पीने के लिए पानी भी नहीं था। इसमें कुछ बच्चों को पानी लाने के लिए भी भेजा गया।
घर जाने की जिद : पहली बार स्कूल आए बच्चों को उनकी मम्मी याद आ गई। स्कूल पहुंचने पर जैसे ही उनके अभिभावक छोड़कर गए, वैसे ही बच्चों का मन भी स्कूल में नहीं लगा। शिक्षकों ने भी उन्हें बहलाने की बहुत कोशिश की लेकिन उन्होंने घर जाने की जिद नहीं छोड़ी।
कैसे मना समर वेकेशन? : सत्र के पहले दिन शैक्षिक कार्य नहीं हो पाया। प्रार्थना सभाओं के बाद कक्षाओं में परिचय और गपशप का ही दौर रहा। शिक्षकों ने भी कक्षा में आने वाले नए विद्यार्थियों से बातचीत की। बच्चों ने भी एक दूसरे से समर वेकेशन को लेकर चर्चा की।
प्राइवेट स्कूल
प्राइवेट स्कूलों का नजारा सरकारी स्कूलों से कुछ अलग था। इन स्कूलों में बच्चों का तिलक लगाकर और मिठाई खिलाकर स्वागत किया गया। चमचमाते क्लासरूम में छात्रों को पहले ही दिन पढ़ाई का अच्छा माहौल मिला। सभी शिक्षक भी निर्धारित समय पर स्कूल पहुंचे और बच्चों से आगे की पढ़ाई के बारे में विस्तृत चर्चा की। इन स्कूलों की केंटीन में भी बच्चों की भीड़ देखी गई।