फर्रुखाबाद परिक्रमा: जहां टिकट वहीं ठौर-तू नहीं और सही, और नहीं और सही!

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

हार की बदहवासी के बाद हाथी वाले कसमसाने लगे हैं। बार बार यकीन दिलाया जा रहा है- ‘घोषित प्रत्याशी ही चुनाव लड़ेगा’। परन्तु कोई यकीन करने को तैयार नहीं है। सही ही कहा है- ‘बद अच्छा बदनाम बुरा’।

दो पूर्व सांसद पूर्व सांसदों के बेटे, कई बार दल बदलने वाले, नई पार्टी बनाने वाले, उसे समाप्त करने वाले। अनेक दिग्गज नेता एक दो नहीं, तीन-तीन जगह टिकट की जुगाड़ में व्यापारियों की तरह लगे हुए हैं। लक्स की एजेंसी न मिले तो लाइफब्‍वाय की ही मिल जाए। उन्हें विचार, सिद्धान्त, रीति-नीति से, कहीं कोई कुछ भी लेना देना नहीं है। कब कौन कहां चला जाए, कुछ नहीं पता। कब फूल वाले सायकिल वाले हो जायें, लोकसभा और विधानसभा चुनाव में एक दूसरे को टक्कर देने वाले कब साथ साथ हो जायें, कुछ नहीं कहा जा सकता। मन की मुराद पूरी न हो, तब फिर एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकने लगेंगे।

सत्ताधारी होने के कारण सायकिल वालों के खेमे में जमकर हलचल और हंगामा है। टिकट के लिये मंत्री पुत्रों विधायक पुत्रों, पूर्व विधायकों की लम्बी लाइन है। परन्तु अभी तक दाल किसी की गल नहीं रही है। मामला अभी तक किसी का कुछ पक्का नहीं है। इस खेमे में कुछ अप्रत्याशित अजूबा और आश्चर्यजनक हो जाए। इसकी भी संभावनायें हैं। राष्ट्रपति भवन में होने वाली संगीत गोष्ठियों में हाथ वाली पार्टी के दिग्गज केन्द्रीय मंत्री और सायकिल वाली पार्टी के एक दिग्गज नेता की भेंट वार्ता में अब जिले के सियासी माहौल में चर्चित होने लगी है।

हाथ वाले खेमे में केजरीवाल के सुनामी के बाद बर्बादी की खामोशी है। यहां हमें और नहीं, और उन्‍हें ठौर नहीं जैसी स्थिति है। विधानसभा चुनाव में राहुलगांधी का वीटो लगने, करोड़ों रुपया पानी की तरह फूंक देने, संजयदत्त, अजहरुद्दीन, शीला दीक्षित सहित दर्जनों दिग्गजों की सभायें रोड शो करने के बाद भी जमानत जप्ती सहित पांचवे स्थान पर रहने वाली मंत्री की पत्नी ने अभी भी हिम्मत नहीं हारी है। मंत्री जी तो सुपर टाप हैं। इन दोनो में से कोई हाथ का साथ लेकर मैदान में आएगा।

लाख टके का सवाल यह है कि कमल वालों का कल्याण कौन करेगा। यहां भी दल बदल की अपार संभावनायें हैं। इस सारी उठापटक में जातिवाद का आंकड़ा सबसे महत्वपूर्ण है। गंगा गए तो गंगादास, जमुना गए तो जमुनादास।
इब्तदाये इश्क है रोता है क्या!
रफ्ता रफ्ता देखिए होता है क्या!

ऐसे समर्थकों से विरोधी भले

प्रदेश के कद्धावर मंत्री शिवपाल सिंह यादव के सामने सपा के दिग्गज कार्यकर्ता सार्वजनिक रूप से चीख चीख कर कहें कि ‘‘अधिकारी नेता को नेती कहकर सम्बोधित करते हैं। डीएम, एसपी, जक्रांपा, बसपा व अन्य विपक्षी दलों के बुलावे पर उनके कार्यक्रमों में जाते हैं। जबकि अधिकारी व्यावसायिक शिक्षा राज्य मंत्री के प्रस्ताव तक पर विचार नहीं करते। आठ माह हो गए अभी तक विकास कार्य तो दूर एक हैंडपम्प तक नहीं लगा।’’

जिले के लोग बहुत समझदार हैं। जरा सोंचकर बताइए कि वरिष्ठ मंत्री के सामने सपाइयों द्वारा दिया गया बयान प्रदेश सरकार, प्रशासन, जन प्रतिनिधियों, विरोधी दलों के समर्थन या विरोध में है। वास्तव में यदि यही हाल है। तब फिर प्रदेश सरकार की उपलब्धियों पर आयोजित प्रायोजित कार्यक्रम क्या है। सत्य के सरदार मनमोहन सिंह की दोस्ती की यह एक छोटी सी बानगी है।

बड़का मंत्री के जाने के बाद से स्थानीय मंत्री जी यही गाना गा रहे हैं –
दोस्तों से इस कदर सदमें उठाए जान पर,
दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा!

भाजपा : अर्न्तविरोधों की दास्तां – मोदी से येद्वयुरप्पा तक

गुजरात में अत्म विश्वास या अहंकार से भरी भाजपा नरेन्द्र मोदी को थाम नहीं पा रही है। मोदी बड़े नहीं बहुत बड़े हो गए हैं। ऐसा लगता है मोदी ने भाजपा का अंगवस्त्रम् नहीं भाजपा ने मोदी का अंगवस्त्रम् पहना हुआ हो। याद करिए बीस वर्ष पहिले इन्हीं दिनों बाबरी विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा और कल्याण सिंह की यही स्थिति थी। आज क्या स्थिति है। आप जाने माने या ठना ठन ठाने रहें। इससे किसी को कहीं कुछ लेना देना नहीं। सब अच्छे दिनों की कमाई पर राज कर रहे हैं। भाजपा कहीं नहीं दिखती। कल्याण सिंह की स्थिति भी हारे हारे हताश निराश परन्तु आकंठ पुत्र मोह में ग्रस्त धृतराष्ट्र से भी गई गुजरी प्रतीत होती है। गुजरात के नरेन्द्र मोदी की तरह सभी को लाल लाल करने वाली पार्टी और उत्तर प्रदेश में रामलला से सीधे टेलीफोन पर बात करने वाली उस समय के कल्याण सिंह की पार्टी। रहिमन चुप हुइ बैठिए देख दिनन के फेर।

भाजपा गुजरात में कांग्रेस को हताश निराश विभाजित देखकर इतनी आत्ममुग्ध है कि उसे गुजरात के चुनाव में प्रधानमंत्री के चुनाव का नजारा दिख रहा है। गुजरात में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष सहित पार्टी के सभी नेता अप्रासंगिक हो गए हैं। क्रिकेटर नवजोत सिद्धू से लेकर नेता प्रतिपक्ष गुजरात के प्रधानमंत्री (मुख्यमंत्री) का जयगान कर अपने को धन्य और कृतार्थ समझ रहे हैं। भाजपा के लोग महान राष्ट्रवादी हैं। गुजरात में सौराष्ट्र है। राष्ट्र में महाराष्ट्र है। बात गुजरात के गौरव की होगी। चुनाव गुजरात का होगा। बात राष्ट्र गौरव की नहीं होगी। विधानसभा चुनाव में बात प्रधानमंत्री के चुनाव की होगी। बात सरदार पटेल की होगी। परन्तु अपने ही दिग्गज वरिष्ठ साथी केशूभाई पटेल की फजीहत करने में प्रचारक अपना सब कुछ होम किए दे रहे हैं। सही बात यह है कि गुजरात में नरेन्द्र मोदी भले ही ऐतिहासिक बहुमत से जीत जायें। परन्तु भाजपा बहुत बुरी तरह हारेगी। मोदी के चरण कमलों में सास्ट्रांग प्रणाम करती दिखेगी।

कांग्रेसी गांधी को भूले। भाजपाई श्यामाप्रसाद मुकर्जी, दीन दयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी को भूले। मोदी शरणम् गच्छामी। नजर जरा पीछे दौड़ाइए। पांच वर्ष भी नहीं हुए। कर्नाटक दक्षिण में भाजपा का पहिला सशक्त किला बना था। येद्धयुरप्पा की सर्वत्र जय जयकार हो रही थी। आज क्या स्थिति है। कल का हीरो रो रहा है। भाजपा छोड़ रहा है। नई पार्टी बना रहा है। रामलला का हीरो रो रहा है। अपनी पार्टी समेट रहा है। भाजपा में अपनी शर्तों पर नहीं भाजपा की शर्तों पर आ रहा है। भाजपा में अब कश्मीर से कन्या कुमारी तक का जयगान नहीं होता। येद्धयुरप्पा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। शिवसेना के नहीं भाजपा के शिवा जी गड़करी साहब पूरी पार्टी की क्लीन चिट पा गए। कांग्रेस ने गुजरात में शायद अच्छी संभावनायें न होने के कारण मुख्यमंत्री पद के लिए अपने पत्ते नहीं खोले। परन्तु नरेन्द्र मोदी ने अपने पत्ते खोल दिए हैं। उन्होंने अपने उत्तराधिकारी की घोषणा कर दी है। जब मोदी प्रधानमंत्री होंगे। तब कांग्रेस के अहमद पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री होंगे।

एक बुजुर्ग स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने दुखी होकर आंदोलन में जेल सहयात्री रहे अपने साथी से समस्या का समाधान पूछा। उसने बड़ी ही गर्मजोशी से कहा जिस दिन गुजरात गांधी के सत्य अहिंसा और सरदार पटेल की दृढ़ता के रथ पर सवार निष्पक्ष और निर्भीक होकर शत प्रतिशत मतदान करेगा। गुजरात ही नहीं सारे देश के गौरव की वापसी होगी। यकीन मानिए देर से ही सही किसी दिन ऐसा होकर रहेगा।

कैसे कैसे रिश्ते एनडी और मुलायम, विमल और सलमान!
रजत शर्मा जैसे वरिष्ठ मीडिया कर्मी अगर आपकी अदालत में बुलाने वाले वरिष्ठ नेताओं के क्षेत्रों का दौरा करके अदालत लगायें। उस स्थिति में उन्हें निश्चय ही नेताओं के सम्बंध में अपने संबोधन बदलने पड़ेंगे।

राजनीति कितनी बदल गयी है। एक ओर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपने बेटे के साथ अपने जमाने के दिग्गज नेता कांग्रेसी एन.डी. तिवारी के आवास पर जाते हैं। एक दूसरे को छोटा भाई, बड़ा भाई बताते हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपना भतीजा बताते हैं। कांग्रेस के विषय में पूछे जाने पर एन डी पूछते हैं। कौन सी कांग्रेस, कहां है उसका दफ्तर। पत्रकार वार्ता में केवल और केवल एन.डी. बोलते हैं। पिता पुत्र चुपचाप श्रोता बनकर सुनते हैं। मुलायम और अखिलेश की तारीफ करने के बावजूद बिना झिझक और संकोच के एन.डी. तिवारी एफ.डी.आई. के मुद्वे पर मुलायम सिंह यादव और सपा की लाइन के पूर्णतः विपरीत अपनी राय बता गए। परन्तु पिता पुत्र रंचमात्र भी विचलित नहीं हुए। विचार रीति नीति अलग अलग हो सकती है। परन्तु मानवीय और सामाजिक रिश्तों को पालना पोसना बहुत आसान होने पर भी आज के नेताओं को बहुत कठिन लगता है।

जो लोग सोनिया गांधी के लिए जान देने और राहुलगांधी को सचिन तेंदुलकर और भगवान कहकर सुर्खियां और प्रोन्नति बटोरते हैं। उन लोगों का अपने संसदीय क्षेत्र के वरिष्ठ पार्टी नेताओं के साथ कैसा व्यवहार रहता है। यह जानने के लिए मीडिया कर्मियों को नेताओं के क्षेत्रों में जाना होगा।

एन.डी. तिवारी के साथ 1977 में एटा में झंडा सत्यागृही के रूप में जेलयात्री रहे दिग्गज कांग्रेसी नेता स्वर्गीय विमल प्रसाद तिवारी से उनके जीवन के अंतिम दिनों में यदि कोई कांग्रेस के विषय में पूछता। तब वह निश्चित रूप से यही कहते। कांग्रेस कौन सी कांग्रेस। सलमान की कांग्रेस। कांग्रेस कार्यालय नगला दीना फतेहगढ़ नहीं नहीं पितौरा कांग्रेस कार्यालय। एटा जेल में एन.डी. और विमल दोनो एक साथ गाते थे-

कौन कहता है जबर्दस्ती हमें पकड़ा गया!
हमको शौके जेल खाना, जेलखाना ले गया।

मौका है। सुधरना चाहो। सुधर जाओ। वैसे तुम्हारी मर्जी

और अंत में – होश में रहो! नव्वे साल का पट्टा नहीं है।

पुराने लोग हमेशा सीख देते हैं। अगर कुछ सीखना है। तब अपने से योग्य विद्धान और अनुभवी व्यक्ति का संग साथ करो। लेकिन अपनी तारीफ और केवल तारीफ ही सुननी है। तब फिर अपने से अधिक वेवकूफ व्यक्ति का संग साथ करो। लगभग सभी राजनैतिक पार्टियों में आजकल यही हो रहा है।

एक साल पूर्व जो राग हाथी वाले अलापा करते थे। आज पूरे ताल स्वर से वही राग सायकिल वाले अलाप रहे हैं। जो अधिकारी हमारी नहीं सुनेगा। जिले में नहीं रह पाएगा। कार्यकर्ता सुधर जायें। गांवों में जायें लोगों से मिलें उनकी समस्यायें समझें और जाने क्या क्या। अब इनसे पूछो सब सुधर जायें। अच्छी बात है। लेकिन आप कब सुधरोगे। कार्यकर्ता गांवों में जायें। अनुशासित रहें। अच्छी बात है। परन्तु आप क्या केवल और केवल ठेकेदारी, रंगदारी, तीन तिकड़म, दंदफंद और पार्टी की रीति निति कार्यक्रमों की धज्जियां उड़ायेंगे। उड़ाते रहेंगे। हाथ वालों, हाथी वालों, फूल वालों का हश्र देख लो। हम तुम्हारे हितैषी हैं। विरोधी नहीं। यह पद और रुतबा अच्छा है। परन्तु नव्वे साल का पट्टा नहीं। तुम आज जहां हो। वहां पर चाल चलन चरित्र व्यवहार अनुशासन के बल पर अपना मुकाम बनाओ। जिससे आगे आने वाले दिनों में लोग आपको याद करें। आपकी दुहाई दें। बात बात में उखड़ जाने की आदत मत डालिए। निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय। अन्यथा जो हाथी वाले आपके आस पास घूम रहे हैं। यही हाल रहा तब वह दूर दूर तक नहीं दिखायी देंगे। अपने से बड़ों का सम्मान करके आप किसी पर एहसान नहीं करते। आपसे छोटे आपको जो करता देखेंगे। वहीं वह आपके साथ करेंगे। राजाओं, प्रिन्सों, राजपुत्रों आदि आदि को अकड़, उपेक्षा, अपमान, धौंस, धमकी, षड़यंत्र, तिरस्कार से केवल और केवल विनाश का मार्ग और मंजिल मिली है। मुक्त हंसी और सबसे प्रेम का मंत्र सीखना चाहो सीख लो।

चलते चलते-

दो बुजुर्ग आपस में बात कर रहे थे। एक शिक्षक रहे थे। बोले हम तो अपने जमाने में जो छात्र सबसे ज्यादा शैतान और उदंड होता था, उसे मानीटर बना देते थे। दूसरे बोले हम तो शैतान बच्चों से ग्रस्त पिताओं को अपने बच्चों की जल्द से जल्द शादी कर देने की सलाह देते हैं। सोच कर बताइए अरविंद केजरीवाल को मानीटर बनाने और राजनीति से शादी करने की सलाह किसने दी।

आज बस इतना ही। जय हिन्द!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट