भोज के बाद कन्याओ को करें श्रंगार की वस्तुंए दान तो मिलेगा अधिक पुण्य

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फर्रुखाबाद : नवरात्रि के अंतिम दिन नवदुर्गा के अलग-अलग नौ रुपों की पूजा के साथ-साथ हवन, दान, मंत्र जप भी किए जाते हैं। लेकिन नवरात्रि में भगवती उपासना के इन धार्मिक विधानों के अलावा जिस विधान का सबसे अधिक महत्व माना जाता है, वह है – कन्या या कुमारी पूजन। धार्मिक मान्यताओं में कन्या पूजन नवदुर्गा के लिए किए जाने वाले व्रत, उपवास, यज्ञ, पूजा से भी अधिक फल और मातृशक्ति की प्रसन्नता देता है।

शास्त्रों में कन्या पूजन नवरात्रि के नौ दिन करने का महत्व बताया गया है। किंतु लोक परंपराओं में दशमी तिथि पर देवी की विदाई के दिन भी कन्या पूजन और भोज किए जाते हैं। सामर्थ्य न होने पर कोई भी व्यक्ति नवमी व दशमी तिथिके दिन भी यह पुण्य कार्य कर सकता है। सामाजिक नजरिए से कन्या पूजा नारी के मातृत्व रुप और भाव को हमेशा याद रखने और सम्मान देने का संदेश है।

यहां बताते हैं कि नवमी या दशमी तिथि के दिन किस तरह कन्या पूजन और भोज की पंरपरा पूरी करें –

– शास्त्र अनुसार 2 वर्ष से लेकर 11 वर्ष तक की कन्याओं का मातृशक्ति के भाव से पूजन श्रेष्ठ होता है। इनके साथ पांच वर्ष तक के बालक की भी माता के सेनापति भैरव शक्ति के भाव से पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है।

– नवमी या दशमी तिथि को मातृशक्ति की पूजा, यज्ञ, उपवास की पूर्णाहुति के लिए यथाशक्ति कन्याओं और एक बालक को आमंत्रित कर पूरी श्रद्धा और भाव से भोजन कराएं। भोजन में खासतौर पर हलवा, पुड़ी और छोले यानी उबले चने जरूर खिलाएं। क्योकि यह दुर्गा के प्रिय व्यंजन माने जाते हैं।

– कन्या पूजा में कन्याओं और बालक के मस्तक पर गंध, अक्षत लगाकर मातृभाव के साथ श्रद्धा और आस्था के साथ चरण छुएं।

– साथ ही सभी कन्याओं को ठीक उसी तरह कुछ भेंट दें, जिस तरह देवी मन्दिर में भी अर्पित करते हैं। परंपराओं में श्रृंगार की वस्तुएं जैसे चूड़ी और चुनरी का महत्व है, लेकिन समय के बदलाव के साथ उपयोगी वस्तुओं को भी भेंट कर कन्याओं की प्रसन्नता से देवी कृपा के उपाय किये जाने लगे हैं।

– कन्या पूजन का शुभ फल यश, ज्ञान, धन के रुप में मिलता है। साथ ही परिवार पर आने वाले संकट, कलह से रक्षा भी होती है।

 

द्वितीय नवरात्र : मां को शक्कर का भोग लगाएं और कन्याओ को फल देकर पूजन करें, याद रखें कि फल खट्टे ना हो।

तृतीय नवरात्र : दूध या दूध से बनी मिठाई का भोग माँ को लगाकर ब्राह्मण को दान करें और कन्याओ को हाथ की बनी खीर, हलवा या केशरिया चावल बना कर खिलाए।

चतुर्थ नवरात्र : माँ को मालपुए का भोग लगाएं और मंदिर के ब्राह्मण को दान दें तथा कन्याओ को वस्त्र देने का महत्व है, रूमाल या रंगबिरंगे रीबन दिए जा सकते हैं।

पंचम नवरात्र : मां को केले का नैवैद्य अर्पित करे और कन्याओ को पाँच प्रकार की श्रृंगार सामग्री अर्पित करे।

षष्ठं नवरात्र : मां को शहद का भोग लगाएं और कन्याओ को खेल-सामग्री देना चाहिए।

सप्तम नवरात्र : मां को गुड़ का नैवेद्य अर्पित करे व उसे ब्राह्मण को दान करे और कन्याओ को शिक्षण सामग्री दी जानी चाहिए।

अष्टम नवरात्र : माँ को नारियल का भोग लगाएं व नारियल का दान कर दें और कन्याओ का अपने हाथों से श्रृंगार करे, दूध से पैर धोये, पैरों पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए और भोजन करवाकर यथा शक्ति कुछ भी अर्पित करे।

नवम नवरात्र : माँ को तिल का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान दें और कन्याओ को दूध से बनी पुरिया खीर अर्पित करे, हाथो में मेहँदी लगाये और अंत में, पान में इलायची डाल कर अपने हाथो से दे। प्रार्थना करे…………………….