खुलासा: CM की समीक्षा के लिए महीनो लंबित जन शिकायतों का उलजलूल और फर्जी निस्तारण

Uncategorized

सरकार की समीक्षा के लिए जनता की लंबित पंजीकृत शिकायतों का निस्तारण रातो रात कर दिया गया| इनमे अधिकांश निस्तारण उलजलूल और फर्जी रिपोर्ट लगाकर किया गया| कुल मिलाकर सरकार और जनता दोनों की आँखों में धूल झोक नौकरी पक्की करने का प्रयास सरकारी मशीनरी द्वारा किया गया है| 18/04/2013 को जिलाधिकारी और उनके अधीनस्थ इस समीक्षा बैठक में लखनऊ में प्रमुख सचिव से विडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सीधे रूबरू होंगे|
82 फ़ीसदी प्रार्थना पत्र लेट लपेट ही निपटे-
जन शिकायतों का मौके पर ही निस्तारण के लिए सरकार द्वारा चलाये जा रहे तहसील दिवस कार्यक्रम का आलम तो ये है कि पिछले 10 माह में फर्रुखाबाद जनपद में पंजीकृत हुई 3709 शिकायतों में से मौके पर तो बमुश्किल 1 फ़ीसदी भी शिकायते नहीं निपटी| वहीँ केवल 8 फ़ीसदी शिकायतों/प्रार्थना पत्रों का निस्तारण समय से हुआ| शेष 82 फ़ीसदी निस्तारण निस्तारण की समय सीमा के बाद हुआ| अधिकांश में ये समय 2-3 माह भी लगा| ये आंकड़े तहसील दिवस की वेबसाइट के आंकड़े है जो समीक्षा की खातिर सरकारी नौकरों को अपडेट करना मजबूरी है| ये तो आकंडे है| इनके निस्तारण की बाजीगरी की भी अजब कहानी है| जो मामलो बहुत देरी से निपटाए गए उनमे रिश्वत कमाने की गुंजाइश भी उतनी ज्यादा थी| मामले लटके या लटकाए भी इसीलिए गए| लम्बे समय तक लटकाने में शिकायतकर्ता हताश हो जाता है और आरोपी से रिश्वत कमाई की गुंजाइश भी बनी रहती है|

[bannergarden id=”11″]
जेएनआई की पड़ताल में सदर तहसील में विभिन्न विभागों के लंबित प्राथना पत्रों की जाँच पड़ताल में कई तथ्य पकड़ में आये| जिला पूर्ति विभाग ने तो जैसे तहसील दिवस के प्रार्थना पत्रों के फर्जी निस्तारण में पहला इनाम पाने योग्य काम किया है| दूसरे नंबर पर राजस्व विभाग के लेखपालो के गुल खिले है| तीसरे नंबर पर नगरीय विकास अभिकरण ने फर्जी निस्तारण में कमाल दिखाया है| इसके बाद समाज कल्याण और पुलिस विभाग का नंबर आता है| एक नजर आप भी पढ़िये किस प्रकार सपा सरकार के नौजवान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को कैसा जेठ के महीने में बियाबान हुए खेतो में सावन की हरियाली दिखाने की तैयारी की जा रही है|-

जिला पूर्ति अधिकारी का कमाल-
गुलाब चंद, यही नाम लिखते है जिला पूर्ति अधिकारी महोदय| इनके निपटाने के लिए आई शिकायत संख्या 2913-00366 में शिकायत कर्ता अनिल शर्मा की शिकायत तो इंटरनेट पर 16/04/2013 को निपट गयी| मगर अनिल शर्मा ने जो मांग रखी थी उसे जिला पूर्ति अधिकारी ने गलत बताया और न ही उसे राहत दिलाई| हाँ अलबत्ता इसमें जिसके खिलाफ शिकायत की गयी थी उससे जरुर कुछ खा पी लेने की बू आ रही है|
DSO1
अनिल शर्मा ने 2 अप्रैल २०१३ को शिकायत दर्ज करायी थी उसके पास बी पी एल कार्ड है जिस पर राशन मिलता था मगर कोटेदार ने कई महीनो से उस पर राशन देने से मना कर दिया| अनिल कुमार शर्मा ने सिर्फ इतनी सी मांग राखी कि उसे नियमित राशन दिला दिया जाए| इस शिकायत को नियमानुसार 9/04/2013 को निपट जाना चाहिए था| मगर गनीमत थी कि सरकार 18/4/2013 को समीक्षा करेगी इसलिए डीएम की डांट खाने के बाद 13/04/2013 को निस्तारित कर दी गयी| मगर निस्तारण इस प्रकार हुआ कि कागजो में किसी को भी नफा नुक्सान नहीं हुआ|

[bannergarden id=”8″]
जाँच कर्ता का नाम गोपनीय रहा (इंटरनेट पर लिखना जरुरी नहीं समझा गया, जबकि कालम बना है) | मगर रिपोर्ट वेबसाइट पर सार्वजानिक है| रिपोर्ट में जाँचकर्ता लिखता है कि कोटेदार रामनिवास द्वारा बताया गया कि प्रधान और ग्राम सचिव ने कुछ राशन कार्डो के सम्बन्ध में लिखित आदेश दिया था कि इनके स्थान पर गरीबो को राशन दे इसलिए कोटेदार ने राशन देना बंद कर दिया| इसी के साथ जाँचकर्ता ये भी लिखता है कि ऐसा कोटेदार नहीं कर सकता| इसके लिए जिला पूर्ति अधिकारी का अनुमोदन लेना चाहिए था और इन्टरनेट पर नए राशन कार्ड लोड करने के बाद ही नए लोगो को राशन दिया जा सकता है|
उपरोक्त रिपोर्ट में अनिल शर्मा को पुनः राशन कार्ड पर राशन देने का कोई जिक्र नहीं है| और न ही कोटेदार द्वारा नियम विरुद्ध राशन बंद कर दिए जाने के विरुद्ध कोई एक्शन लेने की बात कही गयी| जाहिर है ऐसे में शिकायत कर्ता को अपनी शिकायत पर कोई राहत नहीं मिली| और न ही दोषियो को कोई दंड| जाहिर है कोटेदार जो हर माह कुछ न कुछ चढ़ावा खाद्य एवं आपूर्ति कार्यालय देता हो उसके एवज में आम जनता की कैसे सुनी जाती|
डूडा ने शिकायत की जाँच की जगह शिकायकर्ता की ही जाँच की
दिनांक १९/०३/२०१३ के तहसील दिवस में एक शिकायत संख्या 29313-00303 प्राप्त हुई| शिकायत किसी विजय वाला आदि अनेक नमो से थी| शिकायत कांशीराम योजना में फर्जी आवंटन से सम्बन्धित था| शिकायत की गयी थी कि कोई संजीव त्रिवेदी और उसकी पत्नी कांशीराम कॉलोनी हैवातपुर गढ़िया में ४ मकान को किराये पर उठाये है| ब्लाक संख्या ६४ में मकान संख्या 1013, 1022, 1024, 123 में रहने वाले अवंती नहीं किरायेदार है| यानि कि इन मकानों का आवंटन फर्जी तरीके से अपात्र लोगो ने करा लिया है| कृपया जाँच कर इन्हें निरस्त कर पत्रों को दे दिया जाए|
डूडा को जाँच एवं रिपोर्ट देने के लिए कहा गया| तहसील दिवस की शिकायत के इंटरनेट संस्करण में जांच कर्ता का नाम नहीं लिखा गया है| अलबत्ता एक महीने से अधिक समय से पेंडिंग पड़ी इस शिकायत का भी निस्तारण सरकार को दिखाने के लिए निस्तारित कर दिया गया है और निस्तारण में लिखा गया है कि शिकायत कर्ता फर्जी निकले| यानि कि जांच करने वाले ने शिकायत के मजमून की जाँच नहीं की बल्कि शिकायत कर्ता उसे नहीं मिले लिहाजा शिकायत करने वाले फर्जी करार दिए गए| क्या बढ़िया निस्तारण कर दिया गया| यानि कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई शिकायत हो तो अफसर नहीं करेंगे| जाहिर है जिनके हाथ काले है वाही जाँच कर रहे है| ऐसे मे क्या जनता का भरोसा सरकार पर बरक़रार होगा| बसपा की सरकार थी जब घोटाला हुआ और सपा की सरकार है जब घोटाले खुलने की कोई उम्मीद नहीं है| वही जो पिछली पार्टी की सरकार में फर्जी आंकड़ेबाजी होती रही वाही अब हो रही है|

राजस्व विभाग का भी नमूना बेमिसाल है-
नगर क्षेत्र के खतराना मोहल्ले के राधेश्याम ने शिकायत संख्या 29313-00136 दिनांक 19/02/2013 को दर्ज करायी थी| दो महीने से पेंडिंग ये शिकायत भी सरकार की समीक्षा के चलते 13/04/2013 को निस्तारित की गयी| शिकायत में राधेश्याम ने अपने मोहल्ले में ही एक व्यक्ति द्वारा नगर पालिका की जमीन पर अतिक्रमण कर लेने की शिकायत की थी| दो महीने तक पेंडिंग शिकायत क्यूँ रही| जबकि नगर क्षेत्र के कानूनगो और एक लेखपाल द्वारा रिपोर्ट दी जाने वाली थी| शिकायत कर्ता ने शिकायत की थी कि आरोपी फर्जी दस्ताबेजो की सह पर नगर पालिका की जमीन पर कब्ज़ा कर चुका है| जे एन आई ने पड़ताल की कि क्या शिकायत कर्ता को न्याय मिला| इस पर शिकायत कर्ता के पुत्र अनुराग मिश्र ने बताया कि लेखपाल जाँच करने आये और आरोपी से समझौता कर लेने का प्रस्ताव रखा| उन्होंने ठुकरा दिया| इसके बाद उन्होंने आरोपी को तहसील और नगरपालिका बुलवाया, इसके बाद क्या हुआ उन्हें नहीं मालूम| शिकायत कर्ता का कहना है कि अरोपियो ने फर्जी दस्ताबेज तैयार करवा लिए है| यानि की जांच मौके और दस्ताबेजो दोनों की होनी थी| मगर निस्तारण में लेखपाल लिखता है कि आरोपी ने बैनामा कराया और बैनामा की जमीन की पैमाइश की गयी तो पूरी पायी गयी| यानि कि यदि आप ताजमहल का बैनामा कर लीजिये तो यूपी के लेखपाल को उसका भी पैमाइश कर कब्ज़ा दिलाने में कोई तकलीफ नहीं होगी अलबत्ता उसे भरपेट रिश्वत दे दीजिये| मामला ऐसा ही मिलता जुलता है|

तो ये तो मात्र नमूना है| हजारो शिकायत कर्ता ये तक नहीं जानते कि उनकी शिकायत का हुआ क्या| समय से निस्तारण न होने के कारण जनता का सरकार से विश्वास दिन पर दिन उठता जा रहा है| जिन कंधो पर पूरे मामलो पर निगरानी रखने की जिम्मेदारी है वे कमोवेश इसी सिस्टम के अंग है| ऐसे में तहसील दिवस जैसे कार्यक्रमों को बंद कर देना ज्यादा उचित है| क्योंकि सिर्फ प्रार्थना पत्र प्राप्त करने के लिए जिले भर के विभागीय अफसरों को एक जगह बैठा देना कोई कार्यकुशलता नहीं कही जा सकती|