स्वतंत्रता संग्राम के बाद शहर मे पेड़ों पर सजी थी शहीदों की अर्थियां
बिलकीस बेगम और अमीना खातून ने भी लिया था अंग्रेजों से मोर्चा
फर्रुखाबाद: गुलाम अली १८५७ की क्रान्ति के पूर्व मोहम्दाबाद का कोतवाल था। जब थाना छोड़कर यूरोपियन अधिकारी किले में चले गए तो गुलाम अली फर्रुखाबाद चला आया और आजादी की लड़ाई में कूद पडा। २४ जून १८५७ को फतेहगढ़ पर आक्रमण हुआ गुलाम अली ने ३ जुलाई १८५७ तक यूरोपियनों द्वारा किला छोड़ने तक क्रांतिकारी मोर्चे को संभाले रखा।
२३ अक्टूवर सन १८५७ तक फर्रुखाबाद पर नवाब तफज्जुल हुसैन खाँ का अल्पकालीन शासन रहा। ठाकुर पाण्डेय को फतेहगढ़ का कलेक्टर नियुक्त किया गया। सम्पूर्ण जनपद को 6 तहसीलों में विभक्त किया गया, 10 थाने स्थापित किये गए। फतेहगढ़ और कानपुर मार्ग पर सैनिक नियुक्त किये गए। नवाब के फतेहगढ़ का नाजिम 3 दिसम्बर 1857 को एक बड़ी सेना लेकर अंग्रेज शासकों के विरुद्ध इटावा पहुंचा था। खुदागंज में अंग्रेजी सेना द्वारा पराजित होने पर नवाब को फर्रुखाबाद छोड़ना पडा।
१७ मार्च १८५८ को क्रांतिकारी नेता मोहसिन खां ने एक बड़ा समूह एकत्र किया। अप्रैल १८५८ में ब्रिगेडियर सीटन ८२वी पलटन के ६०० सैनिकों, ४०० सिक्खों, ५ तोपों के साथ बन गाँव के पास पहुंचा। २२ अप्रैल १८५८ में जनरल बाल्मोट ने फर्रुखाबाद जनपद में स्थित अल्लागंज के क्रांतिकारी निजाम अली की सेना को परास्त किया। इस संघर्ष में निजाम अली खाँ शहीद हुए। ३० मई १८५८ को क्रांतिकारियों ने कम्पिल और रानीगंज पर धावा बोला और उसे अपने बस में कर लिया। सन १८५७ का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का अंत हुआ। २९ जनवरी १८५९ को फर्रुखाबाद के नवाब तफज्जुल हुसैन को पुलिस के पहरे में फतेहगढ़ लाया गया। ३ जजों के सामने मुकद्दमा चला ह्त्या करने के अपराध में नवाब तफज्जुल हुसैन को फांसी की सजा सुनायी गई। लेकिन उनकी इच्छानुसार उन्हें मक्का जाने की अनुमति दे दी गयी।
सन १८८२ में नवाब ने मक्का में ही जीवन की अंतिम सांस ली। सैकड़ों लोगों ने विदेशी शासन के विरुद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। क्रांतिकारी नेता निजाम अली खाँ, इस्माईल खाँ, नियाज मुहम्मद, मोहसीन अली खाँ की आजादी के संग्राम में देश भक्त पकडे गए। उन्हें या तो फांसी पर लटका दिया गया या तो गोली मार दी गई।
नवाब सखावत हुसैन खाँ को १३ सितम्बर १८६३ में पीपल के पेंड से लटका कर फांसी दे दी गयी। फतेहगढ़, फर्रुखाबाद, कायमगंज और पटियाली में हथियार तैयार करने के लिए फैक्ट्रियां काम कर रही थीं। उस समय फतेहगढ़ में २ फैक्ट्रियां थीं मोहल्ला भूसा मंडी और मोहल्ला ग्वाल टोली में। इन फैक्ट्रियों से तैयार हथियार क्रांतिकारियों को प्रदान किये जाते थे।
आज़ादी के आन्दोलन में महिलाओं ने स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कंधे से कन्धा मिलकर अंग्रेजों के दांत खट्टे किये। इतिहास में कई महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम दर्ज हैं जिन्होंने भारत माता की अस्मिता बचने के लिए अपने प्राण तक समर्पित कर दिए। बिलकीस बेगम और अमीना खातून का नाम जुबान पर आते ही फर्रुखाबादियों का सिर गर्व से ऊंचा होता है। नवाब तफ्फजुल हुसैन की बहन बिलकीस बेगम ने अंग्रेजी सेना के दांत खट्टे कर दिए थे। अमृतपुर पुलिस चौकी पर क्रन्तिकारी सेना ने 1857 में हमला कर अंग्रेजों को चुनौती दी थी बिलकीस बेगम ने महिलाओं को संगठित कर फर्रुखाबाद और आस पास के क्षेत्रों में पुरुषों को आज़ादी की लडाई लड़ने के लिए प्रेरित किया था। वे जख्मी सेंनियों की देखभाल भी करती थीं। फतेहगढ़ के मुख्य युद्ध में बिलकीस बेगम ने महिला टोली के साथ अंग्रेजों से मोर्चा लिया। मऊ दरवाजा थाने के पास इनका महल अंग्रेजों ने खुदवाकर तहस-नहस कर दिया था। इसके बाद तारीख में बिलकीस बेगम का पता नहीं लगा। उनकी सहयोगी अमीना खातून को अंग्रेजों ने फंसी पर लटका दिया था। राम दुलारी रस्तोगी और अजीबी बेगम को इस आन्दोलन में जेल की सजा काटनी पड़ी।
फर्रुखाबाद जनपद में जब सन १९३० का सत्याग्रह प्रारम्भ हुआ। सर्व प्रथम स्वामी रामानंद ने नमक क़ानून भंग यात्रा की। सन १९३० में फर्रुखाबाद के सरकारी हाई स्कूल पर राष्ट्रीय तिरंगा झंडा फहराने के प्रसंग में गिरफ्तार हुए और उन्हें जेल में सजा मिली थी। सन 1921 में कांग्रेस को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया ।
अंग्रेजों के विदेशी शासन के अत्याचार एवं भयंकर आर्थिक शोषण के विरुद्ध सन 1857 में जो मेरठ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रारम्भ हुआ उसमे फर्रुखाबाद भी प्रभावित हुआ। जनपद के भारतीय सैनिकों में विस्फोट होने के पूर्व से ही इस अफवाह से असंतोष था। 9 मई को जब देशी सैनिकों का विद्रोह दिखाई दिया तो अंग्रेज अधिकारी यूरोपियन अधिकारी नदी के पार चले गए। परंतु जब क्रांति विफल हुई तो मऊदरवाजा से फतेहगढ़ तक मुख्य मार्ग पर पीपल व इमली के पेड़ों पर शहीदों की लाशों की नुमाइश सजी थी।
२३ मई को अलीगढ़ के विद्रोह की खबर मिली। एटा भी विद्रोह की हवा से प्रभावित हुआ। २० मई को १०वी देशी रेजीमेंट में विद्रोह के लक्षण दिखाई दिए। अब कंपनी ने नवाब तफज्जुल हुसैन खाँ की पेंशन बंद करने का हुक्म जारी किया।
16 जून 1857 को डुगडुगी द्वारा एलान किया गया कि ”खल्क अल्लाह का मुल्क बादशाह का हुक्म नवाब रईस बहादुर का”। पलटन ने 18 जून को जेल तोड़ दी और कैदियों को मुक्त कर दिया। 25 जून 1857 को क्रांतिकारियों ने फतेहगढ़ के किले पर आक्रमण किया। जून 1857 के अंत तक फतेहगढ़ का किला भी ब्रिटिश शासकों के अधिकार में न रह सका। 4 जुलाई 1857 को अंग्रेजों ने किला छोड़ दिया। जब पहली नाव बिठूर पहुँची तब सभी अंग्रेजों को कानपुर के क्रांतिकारियों ने मौत के घाट उतार दिया। दूसरी नाव को फतेहगढ़ किले के नीचे 10 मील गंगा की धार में रोक लिया गया और सभी को मार दिया गया।