फर्रुखाबाद:(नगर संवाददाता) शहर के पांडेश्वर नाथ मन्दिर सभागार में चल मानस सम्मेलन में विद्वानों नें कहा कि रामचरित मानस को हम सभी को अपने जीवन में उतारनें की जरूरत है | रामचरित मानस से हम सभी को मिलता है जीवन जीनें का तरीका|
मानस सम्मेलन के दूसरे दिन मानस विचार समिति के संयोजक डा. रामबाबू पाठक के संयोजन रामकथा मे चित्रकूट से पधारी मानस कोकिला सुमन रामायणी ने कहा कि जीवन जीने का तरीका हमे रामचरित मानस से मिलता है, इसलिए रामचरित मानस को हमे अपने जीवन में उतारना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान से किसी ने अहिल्या का उद्धार करने के लिए नहीं कहा पर समय आने पर श्रीराम ने अहिल्या का उद्धार किया। परमात्मा हमेशा भक्ति के पास रहता हैं। प्रयागराज से पधारे मानस विद्वान रमामणि पांडेय ने होइए सो जो राम रची राखा प्रसंग पर कहा कि मानव जीवन भगवान ने बहुत सुंदर बनाया है उसके बाद भी मानव को काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह का अभिमान है। शिवजी ने सती को काफी समझाया पर फिर भी वह श्रीराम की परीक्षा लेने वन में पहुंच गई और सीता का वेश धारण करके श्रीराम के समक्ष पहुंच गई।श्रीराम ने सती को देखकर प्रणाम करके पूछा कि शिवजी को छोड़कर वन अकेले क्यों भ्रमण कर रही हो। इस पर सती चुपचाप शिवजी के पास लौट गई। शिवजी ने पूछा तो सती ने कहा मैने श्रीराम की कोई परीक्षा नही ली, पर शिवजी ने अंतरदृष्टि से देखकर सब जान लिया। शिवजी ने सती को दाये भाग में बैठाया और सती का धर्मपत्नी के रूप में त्याग कर दिया। झांसी से पधारे मानस मनोहर अरुण गोस्वामी ने कहा कि एक बार भृगु ऋषि शिवजी के पास कैलाश पर्वत पहुंचे, शिवजी ने उनके स्वागत के लिए अपनी बाहें फैला दी। भृगु ऋषि ने शिवजी को रोकते हुये कहा कि तुम मुर्दे की भस्म अपने शरीर में लपेटे हुए हो इसलिए मुझे छूने का भी प्रयास मत करना। शिवजी क्रोध में आकर अपना त्रिशूल लेकर भृगु ऋषि की तरफ दौड़े। ऋषि भागकर विष्णु भगवान के पास पहुंचे। ऋषि ने क्षीरसागर में सो रहे विष्णु को अपने पैरो से कुरेदकर जगाया, भगवान ने उठकर ऋषि को प्रणाम कर आने का कारण पूछा, ऋषि ने शिवजी से अपनी जान बचाने का आग्रह किया। उधर शिवजी ऋषि को विष्णु की शरण में जानकर वापस लौट गये। संचालन प. रामेंद्र मिश्र ने किया। तबले पर संगत नंदकिशोर पाठक ने दी। ज्योतिस्वरूप अग्निहोत्री,अशोक रस्तोगी, सुरजीत पाठक बंटू, नरेश चंद्र द्विवेदी, ओमप्रकाश दुबे, मधु गौड़, सुमित्रा, अल्भया पाठक आदि रहे |