फर्रुखाबाद: वैसे तो नगरपालिका और जिला पंचायत को निजी मिलकियत के हिसाब से ही उत्तर प्रदेश में चलाने की परंपरा है| इन संस्थानों में अध्यक्षों की कुर्सी के लिए कुछ भी दांव पर लगाने की परिपाटी रही है| नियम कानून को अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ लेने और माल लूट मालामाल हो जाना ही जैसे नगरपालिका की वैतरणी पार करने जैसा है| दोनों ही पदों पर बैठने वाला जिले और नगर का प्रथम नागरिक कहलाता है| वर्षो तक किसी दामाद की तरह आरती उतरवाने वालो के पेट में कितना काला था अब 40 साल के बाद खुलने लगा है| जो पोल खुल अब खुलने लगी उससे संशय मजबूत होने लगे है कि ये प्रथम नागरिक नहीं जिले और नगर के प्रथम लुटेरे थे? मगर जैसे जैसे लोकतंत्र जवान हो रहा है, जनता जागरूक हो रही है मामलो से पर्दा उठ रहा है| भ्रष्टाचार की जब कब्र खुदने लगी तो पता चला कि अध्यक्ष के लिए हेराफेरी करते करते बाबू लोग भी कुछ प्रसाद अपने घर ले गए थे| ऐसा ही मामला वर्तमान में कायमगंज नगरपालिका में पकड़ में आया है|
जमाने पहले कायमगंज नगरपालिका में शहजादे लाल कर्मचारी थे|उनकी सेवाकाल में म्रत्यु हो गयी तो परिवार के भरण पोषण के लिए उनके पुत्र रामसिंह को नौकरी मिल गयी| रामसिंह भर्ती तो खल्लासी के पद पर हुए थे मगर सही सलामत दुया बंदगी पालिका अध्यक्षों से बनी रही तो प्रोन्नत होते हुए पंप ऑपरेटर से लिपिक तक बन बैठे| और आखिरी में प्रभारी लेखाकार की कुर्सी पर विराजमान हुए| दरअसल में किसी भी पालिका का लेखाकार हर चीज का राजदार होता है| जब पुराना पालिका अध्यक्ष जाता है और नया आता है तो लेखकार ही बताता है कि कैसे कैसे क्या क्या करना है, और समाज में क्या क्या दिखाना है| कैसे कैसे आप एक नेक, इज्जतदार और दानवीर साबित हो सकते है|पाठक समझदार है समझ में आ गया होगा| बस इसी महीन लकीर का फायदा रामसिंह ने उठाया| नाम भले ही राम हो मगर यहाँ धोखा मत खाइये काम वैसे न निकले| रामसिंह ने पालिका के 42 ऐसे कर्मचारियों को नियमतिकरण के तहत वर्ष 2001 से पहले का पालिका का संविदा कर्मचारी दिखा दिया जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं था| मतलब साफ़ है कि रबड़ी मलाई बटी| अब अकेले रामसिंह ने तो खायी न हो होगी मगर झेलेंगे अकेले रामसिंह क्योंकि लेखा जोखा रखने का काम उनका था| किसी ने शिकायत कर दी कि 2016 में नियमित हुए कर्मचारियों के रिकॉर्ड में गड़बड़ी है तो जाँच शुरू हुई|
अब जब जाँच शुरू हुई तो फाइल नहीं मिली या रामसिंह के दी नहीं या थी ही नहीं| मामला आगे बढ़ा तो पता चला की अपनी सेवा पुस्तिका भी नए तरीके से बनायीं और उसे वेरीफाई भी एक ही अफसर से करा लिया| 30 साल का रिकॉर्ड जिस पर हर साल अफसर के दस्खत कराने होते है एक बार में ही बैठा कर निपटा दी| अब पता नहीं दस्खत साहब से कराये है या वो भी खुद कर लिए| सेवा पुस्तिका के मामले तो बड़े ही मजेदार है| नियम ये है कि सेवा पुस्तिका कम से कम हमेशा एक पद ऊपर के अफसर के पास जमा होती है और वही इस पर टिपण्णी करता है| मगर इसमें उत्तर प्रदेश में आराम है| राज्य सरकार से लेकर निकायों के कर्मचारी ये सेवा पुस्तिका अपने पास रखते है| बेसिक शिक्षा का मामला और भी मजेदार है| यहाँ खुद मास्टर के पास होती है और उस पर छुट्टी आदि चढ़े या नहीं उसका फैसला खुद वो करता है| कई बार ऐसे मामले मिले कि फलां मास्टरनी ने पूरी नौकरी कर ली और कोई मेटरनिटी लीव नहीं ली भले ही उनके 2-4 बच्चे सेवाकाल में ही पैदा हुए हो| खैर बात नगरपालिका के प्रभारी लेखाकार रामसिंह की चल रही है| तो अब रामसिंह योगी और मोदी युग में फस गए है, बात त्रेता युग होती तो शायद उनका सिक्का और चल जाता|लम्बी जाँच के बाद अपनी खाल बचाते हुए अब अफसरों ने रामसिंह के खिलाफ कोतवाली कायमगंज में अभिलेखों में हेराफेरी करने, सर्विस रिकॉर्ड गायब करने और सरकारी धन के गबन कराने में सहयोग करने जैसे आरोपों में मुकदमा लिखाने के लिए पत्र भेजा है| वर्तमान में रामसिंह तो निलंबित चल ही रहे है उनके लपेटे में पूर्व अधिशाषी अधिकारी प्रमोद कुमार श्रीवास्तव भी शासन से निलंबित किये गए थे| देखो अब इन्हें इनके करे की सजा मिले या ………