Thursday, December 26, 2024
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चुनाव प्रचार से स्थानीय मुद्दे गायब, राष्ट्रीय मुद्दों के सहारे प्रत्याशी

फर्रुखाबाद: लोकतंत्र बड़ा गजब की चीज है और नेता उसमें नायाब नमूना। जनपद में 70 प्रत्याशी मैदान में हैं, मगर कमाल की चीज यह है कि किसी के पास आम जनता से जुड़ा स्थानीय मुद्दा और विकास का कोई खाखा नहीं है। विधायक निधि से सड़कें और नाली बनवाने के अलावा अगर कोई विकास होता है तो वह विधायक निधि से बनने वाले निजी स्कूल है। नेता विधायक बन जाने के बाद विधायक निधि के इस्तेमाल के अलावा क्या करेगा इसका कोई जबाब किसी नेता के पास नहीं है।

पांच साल तक आम आदमी की जो रोजमर्रा की तकलीफें हैं और जिनके लिए आम आदमी को या तो दर-दर की ठोकर खानी पड़ती है या रिश्वत देकर के काम चलाना पड़ता है, उसके लिए नेताओं के पास कोई समाधान नहीं। कोटेदार का भ्रष्टाचार, पुलिस का उत्पीड़न, सरकारी सहायता पाने के लिए लेखपाल द्वारा जारी की जाने वाली रिपोर्ट, सरकारी इलाज या किसान के ट्यूववेल का कनेक्शन हो, बिना रिश्वत आम आदमी निजात पाता नहीं दिख रहा और किसी नेता के पास अपने चुनावी पिटारे में इसका समाधान भी नहीं।

वक्त के साथ चुनाव की तकरीरें भी बदलीं और जनता की उम्मीदें भी मगर नेताओं ने अपना चुनावी फार्मूला नहीं बदला। कितने प्रतिशत सवर्ण वोट, कितने प्रतिशत ठाकुर, कितने प्रतिशत मुसलमान, कितने प्रतिशत दलित कुल मिलाकर मामला जातियों की गिनती लगाने में ही सिमट गया है। फर्रुखाबाद जनपद की चारों सीटों पर चुनाव लड़ रहे प्रमुख दलों के एक दर्जन प्रत्याशी भी इसी जमात में शामिल हैं। किसी ने रोजगार दिलाने के लिए स्थानीय तौर पर कोई कारखाना लगाने की बात नहीं की, उसके विधायक बनने पर कोटेदार ब्लैक में राशन बेचने की जगह आम जनता को ईमानदारी से बांट देगा ऐसा भी कोई वादा नहीं कर रहा और किसान को उसकी फसल के नुकसान होने पर लेखपाल बिना रिश्वत लिये मुआवजे के लिए रिपोर्ट लगा देगा ऐसी भी तकरीर एक भी नेता ने नहीं की है। कुल मिलाकर लब्बो लबाब यह है कि नेता भ्रष्टाचार के साथ है, अपराधियों को शरण दे रहा है और जनता को बेबकूफ बना रहा है। वरना राष्ट्रीय भ्रष्टाचार की जगह स्थानीय भ्रष्टाचार की चर्चा करता।

जागरूकता के दौर में अगर नेता जनता को बेबकूफ समझ रहा है तो वह उसकी सबसे बड़ी भूल होगी। 100-50 मोबाइल नम्बर जोड़कर व्हाट्सअप ग्रुप पर नेताओं की बम-बम वाली तस्वीरें खूब फायर हो रहीं हैं। मगर आम जनता में चर्चा नेताओं की उदासीनता, बेरुखी और मतलबीपन की ही हो रहीं हैं। वर्ष 2017 का चुनाव कई मायनों में इतिहास बनाने वाला है। जनता फोकट के चुनावी वादों से प्रभावित होती नहीं दिखायी पड़ रही है। सरकार बनने के बाद मुफ्त में मिलने वाले एक जीबी इंटरनेट या स्मार्टफोन की चर्चा बाजार में उतनी नहीं है जितनी कि मुफ्त बंटने वाले सामान के बजट पर आने वाले खर्च की है। क्योंकि नेता अपनी जेब से चुनावी वादे पूरा करने नहीं जा रहा जेब आयकरदाता की ही कटने वाली ही है।

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