Thursday, December 26, 2024
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कृष्ण और सुदामा साथ पढ़े तभी गरीब नौनिहालों को मिलेगा उनका हक

sudamaफर्रुखाबाद: हमारे आदि कालीन सभ्य समाज में शिक्षा कृष्ण और सुदामा को सामान रूप से शिक्षा दी जाती थी यह बोह परंपरा थी जिसे शिक्षा ही जोड़ सकती थी जब कृष्ण और सुदामा साथ पढ़ते थे साथ रहते भी थे साथ लकड़ी भी काटते थे यही शिक्षा का सच था आज शिक्षा कुछ हाथो की कठपुतली बन गई है| उच्च और निम्न वर्ग में एक खाई बन गई है जिसे भरने के लिए हम सब को आगे आना होगा भव्य स्कूल और सरकारी स्कूल में साफ़ साफ़ अंतर देखा जा सकता है ग्रामीण व्यक्ति जिस के पास दो जून की रोटी नहीं है आज बह भी अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेजना पसंद नहीं करता है| क्यों की वोह नहीं चाहता की उसको कोई गरीब कहे आज सरकारी स्कूल गरीब बच्चो के स्कूल की पहचान बन गए है वस्तुत आज इस खाई को पाटने की जरूरत है इस खाई को को पाटने के चार सूत्र है जिन पर हम लोगो को ध्यान होना चाहिए
1.अनिवार्य शिक्षा —–प्रत्येक समुदाय के लड़का या लड़की को नामांकन के बाद ही उस समुदाय को सरकारी सुबिधाये मिलनी चाइये उसकी जाती बर्ग आर्थिक आधार कुछ भी हो नामांकन का हक हर बच्चे का है जो आदि काल से चला आ रहा है इसे समाप्त करने का स्रेए अंग्रेजो को जाता है जिन्हों ने अमीर और गरीब की खाई को चौड़ा किया |
2.सामान शिक्षा ——बच्चो में समानता और समरसता के संस्कार डालने के लिए सामान शिक्षा जरुरी है हमारे समाज में आदिकाल से कृषण और सुदामा एक साथ पड़ते थे साथ रहते थे साथ लकड़ी काटते थे साथ गाये चराते थे आज जरुरत इस बात की है कि द्वारपाल से लेकर राजपाल तक का बच्चा साथ साथ पड़े सभी को सामान शिक्षा मिले बच्चो के बीच गरीब अमीर की खाई को समाप्त किया जाएँ सामान शिक्षा से ही समरसता कायम हो सकती है |
3.द्वार पर शिक्षा ——आज आवश्यकता इस बात की है की द्वार पर शिक्षा हो आज बच्चो का न खाने का समय है न ही सोने का क्यों की घर से दूर 40 किलोमीटर सुबह जाते है भव्य विधालयो में पढने आज मंहगे और भव्य आलीशान स्कूल स्टेटस बन गया है हर व्यक्ति समाज में यह दिखाना चाहता है की मेरा इतना स्टेटस है यह तभी समाप्त होगा जब प्रतेक व्यक्ति का बच्चा निकट के स्कूल में साथ साथ पड़ेगा |
4.शिक्षा मात् भाषा में हो ———-आज सम्पूर्ण विश्व में शिक्षा मात्र भाषा में दी जाती है पर भारत आज भी अंग्रेजो की दी हुई भाषा की बेडियो में ही जकड़ा है जिससे मुक्त होने की आज मह्हती आवस्यकता है हर बच्चे का अधिकार होना चाइये की बोह अपनी शिक्षा मात्र भासा में ग्रहण करे जिससे उसको सरल और सुगम शिक्षा प्राप्त हो मात्र भाषा में शिक्षा अदि काल से ही दी जा रही है जिसमे निम्न पक्ति से आशय स्पस्ट है
युग सहस्त्र योजन पर भानू आदि काल में ही हनुमान जी ने सूर्य देव को देखकर दूरी का अंदाज़ा लगा लिया था परन्तु अंग्रेजो ने भारतीय सभ्यता के साथ खिलबाड़ किया जिसे अंग्रेजो के चहेते नेहरु से लेकर राजीव तक ने इसे आगे बड़ाया |
इस लिए आज आवश्यकता इस बात की है की हम पश्चात् देशो की होड़ में अपनी सभ्यता न खो दे और बच्चो कि निकट समानता की शिक्षा देनी चाइये जिससे प्रत्येक बच्चा एक लाइन पर खड़ा हो तभी पता चलेगा कि किस्मे कितना दम है |(संजय तिवारी जिलाध्यक्ष शैक्षिक महासंघ)

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