फर्रुखाबाद: शिक्षा मित्रो को यू पी सरकार की पहली सौगात मिल गयी है| भले ही सशर्त हो मगर नियुक्ति पत्र तो मिल ही गया| प्रथम चरण में 554 शिक्षा मित्रो को नियुक्ति पत्र सौपते हुए उन्हें तैनाती दे दी गयी है शिक्षा मित्रो के चेहरे खिल गए| सूखे के मौसम में एक बादल का भी आसरा बहुत होता है ये तो नौकरी का मामला है| चयनित शिक्षा मित्र अब सहायक अध्यापक के तौर पर काम करेंगे| एक साल तक परिवीक्षा के बाद ये स्थायी शिक्षक हो जायेंगे| प्रमाण पत्रो के सत्यापन के बाद इन्हे पहला वेतन भी मिलने लगेगा|
सत्यापन का पेच-
शिक्षा मित्रो के प्रमाण पत्रो के सत्यापन के साथ साथ इनके चयन का भी सत्यापन होना है| यहीं पर आकर एक बार कहानी फिर से अटकेगी| अभी तक परिषद में साफ़ तौर पर इस सबंध में कोई दशा निर्देश नहीं दिए है| वैसे नियुक्ति इतनी आसानी से हो गयी जितनी आसान लगती नहीं थी|
पिछले 8 सालो से फर्रुखाबाद के बेसिक शिक्षा में एक रिकॉर्ड बन चुका है| अफसर बिना दाग लगाए नहीं गया| एक बार आसार वैसे ही बन रहे है| शिक्षा मित्रो के शिक्षक बनने के आदेश और नियुक्ति पत्र तो धड़ाधड़ जारी किये जा रहे है मगर सत्यापन के लिए उन फर्जी शिक्षा मित्रो की पत्रवलियां कहाँ से आएँगी जिनके फर्जी होने की आशंका में दफ्तर से अलमारी तोड़ कर चोरी हुई थी| न तो अदालत और न ही उच्च अधिकारियो से इस मामले पर राय मांगी गयी है और न ही वो पत्रावलियां बरामद हो सकी है|
वाकया वर्ष 2012 का है जब शिकायत मिलने पर तत्कालीन जिलाधिकारी मुथु कुमार स्वामी ने शिक्षा मैत्री की पत्रवलियां सत्यापन के लिए कह दी| फिर क्या था डीएम के सख्त रुख को देखते हुए बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय के बाबुओं और अफसरों के हाथ पैर फूल गए| और चौहान साहब की अलमारी एक रात चोरो ने तोड़ कर पत्रवलियां चोरी कर ली| तत्कालीन डीएम मुथु कुमार स्वामी ने और भी सख्त रुख अपनाते हुए चोरी के प्रकरण के लिए जाँच समिति बनाने का आदेश किया| मगर जाँच समिति ने तत्कालीन बेसिक शिक्षा अधिकारी ने उन्ही लोगो को जाँच समिति का सदस्य बना दिया जिन पर फर्जीवाड़े में कमाई करने और उन्हें बचाने की जिम्मेदारी थी|
मामला वर्तमान में जिला बेसिक शिक्षा भगवत पटेल के समय का ही है| सत्यापन का फर्जीवाड़ा उस वक़्त डॉ कौशल किशोर के समय में हो रहा था जिस पर रोक भगवत पटेल ने ही लगायी थी| पटेल साहब की सख्ती का ही परिणाम निकला कि छोटे अफसरों और बाबुओं को अलमारी तोड़ कर चोरी जैसा कदम उठवाना पड़ा| हालाँकि ये प्रमाणिक नहीं हो सका कि चोर कौन था| मगर सारे राज जानते हुए भी शिक्षा मित्रो को नियुक्ति पत्र सौपने से पहले कोई मार्गदर्शन उच्चाधिकारियों और अदालत से नहीं लिया गया| निकट भविष्य में जब भी कोई शिकायतकर्ता आगे आएगा सवाल सौ खड़े होंगे कि शिक्षा मित्र का चयन असली था या नकली इसका मिलान कहा से होगा क्योंकि जो पत्रावलियां गायब हुई थी वे ग्राम पंचायत से ही मंगाई गयी थी| अब उन फर्जी शिक्षा मित्रो का रिकॉर्ड न ग्राम पंचायत के पास है और न ही बेसिक शिक्षा के पास?
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भ्रष्टाचार और गोलमाल छिपाने के लिए BSA दफ्तर में चोरी की पुरानी परम्परा
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