मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ व दिल्ली के विधानसभा चुनावों ने बसपा प्रमुख मायावती व सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को हाशिए पर ला दिया। दोनों दल अपनी सीटों में इजाफा कर पाना तो दूर वर्ष 2008 का प्रदर्शन भी न दोहरा सके। लोकसभा निर्वाचन से पहले पडौसी राज्यों में पैर पसारने की सपा-बसपा की कोशिशों को चुनावी नतीजों से तगड़ा झटका लगा है।
गत चुनाव की बनिस्बत बसपा इस बार ज्यादा घाटे में रही। राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश व दिल्ली से बसपा के खाते में पिछले विधानसभा चुनावों में जहा 17 विधायक आए थे वहीं इस बार संख्या 8 से अधिक नहीं बढ़ पाई। भाजपा की लहर चलने और क्षेत्रीय दलों के उभार से बसपा घाटे में रही। सर्वाधिक नुकसान मध्यप्रदेश में रहा। जहा विधायकों की संख्या सात से घटकर मात्र चार रह गई। इसी तरह राजस्थान में छह के बदले तीन और छत्तीसगढ़ में दो विधायकों के बजाए एक ही विधायक चुना गया। दिल्ली के मतदाताओं ने बसपा को पूरी तरह से खारिज कर दिया हालाकि बसपा की चुनावी तैयारी कम न थी। खुद बसपा सुप्रीमो मायावती प्रचार में जुटीं और सभी प्रमुख नेताओं को लगाया।
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बसपा को सुकून केवल इतना भर ही रहा कि सपा की फजीहत उससे ज्यादा हुई। बसपा करीब तीन दर्जन सीटों पर मुख्य मुकाबले में रही परन्तु सपा मात्र आधा दर्जन सीटों पर ही चुनाव लड़ती दिखी। पार्टी को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हो पाई। मुस्लिम वोट में सेंध लगाने का प्रयास सफल भी नहीं हो सका। पिछड़ा वर्ग वोटबैंक में भी सपा अपनी हिस्सेदारी नहीं बना सकी। सपा की तीसरा मोर्चा गठन की कोशिशों को चार राज्यों के नतीजों ने झटका दिया। पीएम की दौड़ में बने रहने के लिए सपा इन प्रदेशों खासतौर से मध्यप्रदेश, राजस्थान व दिल्ली में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद लगाए थी। ऐसे हालात में सपा नेतृत्व को मिशन 2014 के लिए अपने एक्शन प्लान में बदलाव की जरूरत बताते हुए एक पूर्व सासद का कहना है कि आप जैसे दल का बढ़ना खतरे की घटी हैं।