देखिये जन्म से लाल किले तक का तिरंगे का सफर

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भारत के 65 सालों में हर राज्‍य, हर शहर और हर गांव बदलावों के कई पैमानों से गुजरा है लेकिन मैं कल भी तिरंगा था और आज भी तिरंगा हूं. हर साल की तरह इस साल भी ईमानदारी के साथ कनार्टक के हुबली शहर स्‍थित ‘कनार्टक खादी ग्रामोद्योग स्‍योंक्‍त संघ’ से सफर तय करते हुए दिल्‍ली पहुंचा हूं और लाल किले में शान से इतरा रहा हूं. शायद मेरे इतने लम्‍बे सफर की बात सुन कर आप हैरान हो गए होंगे लेकिन मेरे सफर के हर पड़ाव की कहानी बेहद रोचक है।

 

स्‍टेप 1 खादी प्रोडक्‍शन

तिरंगे की मूल सामग्री खादी है.  खादी के प्रोडक्‍शन के लिए सबसे पहले कनार्टक के बागलकोट जिले में मौजूद गद्दान केरी खादी केंद्र में हाथों से धागे तैयार किए जाते हैं .  बाद में इन धागों को तुलसी गेरी खादी केंद्र भेज दिया जाता है जहां इन धागों से खादी तैयार की जाती है. झण्‍डे के लिए बनाई गई खादी को डबल थ्रेड क्‍लॉथ कहा जाता है. इसी केंद्र में झण्‍डे को फहराने वाली रस्‍सी भी तैयार की जाती है.

स्‍टेप 2 खादी की जांच

झण्‍डे के लिए खादी का कपड़ा तैयार होने के बाद उसे हुबली खादी ग्रामोद्योग संघ भेज दिया जाता है. जहां खादी की क्‍वालिटी से लेकर उसके वजन, कपड़े के स्‍ट्रक्‍चर और कपड़े की नाप तक की जांच होती है. एक झण्‍डा फहराए जाने से पहले 18 तरह की अलग अलग जांच के पैमाने से गुजरता है.

स्‍टेप 3 रंगाई

खादी की जांच के बाद बारी आती है उसे हरे, केसरिया और सफेद रंग में रंगने की. इसके लिए भी इसी केंद्र में एक कलर एंड प्रिंटिंग सेक्‍शन है जहां नेचुरल कलर तैयार किए जाते हैं और बाद में उन्‍हें झण्‍डे के लिए तैयार की गई खादी में चढ़ा दिया जाता है.  खादी के अलग अलग रोल्‍स को हरे , सफेद और केसरिया रंग में डाई किया जाता है. इसके बाद इन्‍हें चार दिन तक सुखाया जाता है.

 

स्‍टेप 4 लैमनेशन

एक बार रंग चढ़ जाने के बाद ही काम खत्‍म नहीं हो जाता. रंग पक्‍के हों और किसी भी तरह से पानी पड़ने पर फेड न हों इसके लिए विशेष तौर पर रंगी हुईं खादी का कलर लैमिनेशन किया जाता है. यह लैमिनेशन हर रंग का अलग हीट टेम्‍प्रेचर पर होता है. जहां केसरिया और हरे रंग की खादी को 390 डिग्री हीट टेम्‍प्रेचर पर लैमिनेट किया जाता है वहीं सफेद रंग की खादी के कलर लैमिनेशन के तौर तरीकों में कुछ फर्क होता है. क्‍योंकि सफेद पर ही नीले रंग का अशेक चक्र प्रिंट किया जाना होता है इस लिए पहले सफेद खादी पर स्‍क्रीन प्रिंटिग के जरिए अशोक चक्र बनाया जाता है जो कपड़े के दोनो ओर एक ही डायमिन्‍शन और आकार का होता है. इस चक्र का डायामीटर सफेद पट्टी की उंचाई का तीन चौथाई होता है.  इसके बाद चार दिन तक उस चक्र को सुखाया जाता है और बाद में 150 डिग्री पर कलर लैमिनेशन होता है.

स्‍टेप 5 सिलाई

तिरंगे को बनाने की कड़ी में सबसे महत्‍वपूर्ण पहलू होता है झण्‍डे की सिलाई. सिलाई से पहले तीनों रंग की खादी को समान अनुपात में ट्रांगुचर शेप में काट दिया जाता है. बाद में तीनों रंग के खादी के कपड़ों को आपस में जोड़ने के लिए लॉक स्‍टिचि की जाती हैं. सिलाई में इस्‍तेमाल किए धागे भी BIS (Bureau of Indian Standards) के तय किए गया मानक पर ही चुने जाते हैं. सिलाई के दौरान झण्‍डे के चारों कोनो पर उसी रंग के धागों से बंटिंग की जाती है जिससे खादी के धागे नहीं निकलते और झण्‍डा फटता नहीं है.

 

स्‍टेप 6 आयरन

तिरंगे के प्रोडक्‍शन का आखरी पड़ाव तैयार झण्‍डे पर आयरन करना है. एक झण्‍डे पर तीन से चार बार स्‍टीम आयरन से प्रेस किया जाता है. ताकी झण्‍डे में कहीं भी मुसन न आए. एसा इस लिए किया जाता है क्‍योंकि एक बार झण्‍डा तैयार होने के बाद उसे दोबारा कभी प्रेस नहीं किया जा सकता.

स्‍टेप 7 सप्‍लाई

केंद्र में साल भर में 1 करोड़ तिरंगे बनाए जाते हैं और तैयार तिरंगे को BIS (Bureau of Indian Standards) मार्क लगाने के बाद प्राइवेट और गर्वमेंट सेक्‍टर में सप्‍लाई किया जाता है. इन तिरंगों की सप्‍लाई न केवल देश में बल्‍कि विदेशों में भी इंडियन एम्‍बिसीज में की जाती है.

 तिरंगे के 9 आकार

साइज 1. 6300 x 4200
(इस झण्‍डे को केवल ग्‍वालियर फोर्ट, कोलाहपुर कोर्ट और कनार्टक नरगुण्‍डा कोर्ट में ही फहराया जा सकता है. )
साइज 2. 3600 x 2400
(इसे संसद, लाल किला और सभी विधान सभाओं में फहराया जा सकता है. )
साइज 3.2700 x 1800
(मिलेट्री कमांडो ऑफिस में इस नाम का झण्‍डा फहराया जाता है. )
साइज 4.1800 x 1200
(पुलिस कमिशनर ऑफिस में साइज 4 का झण्‍डा होता है. )
साइज 5.1350×900
(इस नाम के झण्‍डे को आम जनता अपने घरों में आफिस में या किसी राष्‍ट्रीय समारोह में फहराया जा सकता है. )
साइज 6.900x 600
(इस नाम के झण्‍डे को आम जनता अपने घरों में आफिस में या किसी राष्‍ट्रीय समारोह में फहराया जा सकता है.)
साइज 7.450x 300
(इसे एअर फ्लैग कहते हैं और इसे राष्‍ट्रपति वाहन के आगे लगा होता है. )
साइज 8.225×150
(यह झण्‍डा राजपाल , सुप्रीम कोर्ट जज के वाहन के आगे लगाए जाते हैं.)
साइज 9.150×100
(यह टेबल फ्लैग होते हैं और इसे कोई भी अपनी टेबल पर रख सकता है बशर्ते उस टेबल पर किसी दूसरे देश संघ या राज्‍य का कोई और झण्‍डा न रखा हो. )

 तरंगे की जीवन अवधि
एक तिरंगे को चार बार ही होस्‍ट किया जा सकता है इसके बाद उसकी जगह नया तिरंगा लगाया जाता है. यदि तिरंगा चार बार होस्‍ट होने से पहले ही खराब हो जाए या फट जाए तो उसे फेंका नहीं जाता या दूसरे काम में नहीं लिया जा सकता. उस तिरंगे को या तो पूरे सम्‍मान के साथ चार कंधों पर रख कर मट्टी में दफना दिया जाता है या फिर चंदन की लकड़ी पर रख कर राष्‍ट्रीय सम्‍मान के साथ जला दिया जाता है.

कनार्टक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त  संद्य
1957 में स्थापित किया गया यह खादी संघ अपने निर्माण के समय से ही खादी का प्रोडक्शन कर रहा है लेकिन सन 2006 में संघ के प्रेसीडेंट बी.एस पाटिल की सरकार से मांग के बाद यह संघ भारत का पहला ऐसा नैशनल फ्लैग मेन्यूसफैक्चरिंग ऑर्गेनाइजेशन बन गया जिसके पास सरकार द्वारा जारी तिरंगा बनाने का BIS (Bureau of Indian Standards) मार्क यानी सरकारी लाइसेंस है.

कई बार बना और बिगड़ा है तिरंगा


सचिंद्रनाथ बोस का तिरंगा


भीकाजी कामा द्वारा जर्मनी में फहराया गया तिरंगा


गदर पार्टी का तिरंगा


बाल गंगाधर तिलक व एनी बेसेंट का झंडा

1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद सम्मेलन में फ़हराया गया झंडा कभी


1931 में कांग्रेस की कार्यकरिणी द्वारा गठित सात सदस्यीय कमेटी द्वारा पारित झंडा

1931 में झंडे में कराची में हुई बैठक के बाद किये गये परिवर्तन

आज़ाद हिन्द फ़ौज़ का तिरंगा

आज का तिरंगा