यूपी में फिंगर टेस्‍ट से नहीं की जाएगी रेप की पुष्टि, आरोपी का भी परीक्षण

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देश के किसी भी हिस्‍से में जब बलात्‍कार के मामले आते हैं, तो पीड़िता को बार-बार ऐसे परीक्षणों से गुजरना पड़ता है, जो किसी को भी झकझोर सकता है। सबसे प्रचलित परीक्षण है फिंगर टेस्‍ट। जल्‍द ही फिंगर टेस्‍ट का चलन बंद हो जायेगा, क्‍योंकि वैज्ञानिकों ने रेप की पुष्टि के लिये कई अन्‍य तरीके खोज निकाले हैं।

कॉल्पोस्कोपी टेस्ट के नाम से होने वाली इस जांच में कोई भी कार्य मैनुअली नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उत्‍तर प्रदेश में पुराने तरीकों को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है। पीड़िता के काल्पोस्कोपी टेस्ट के साथ ही आरोपी की भी जांच करायी जाएगी। इस नियम को जोड़े जाने के बाद लोगों को न्याय मिलने में काफी सहूलियत हो जाएगी।

इस संबंध में राज्‍य के गृह और स्वास्थ्य विभाग के आलाधिकारियों ने कई बैठकें कर नये प्रस्ताव को अंतिम रूप देते हुए इस बारे में नया शासनादेश भी जारी कर दिया है। इसी तरह पोस्टमार्टम के तरीकों में भी भारी बदलाव किया गया है। शासनादेश में मेडिको लीगल केस के लिये कुल पांच प्रोफार्मा तैयार किये गये हैं। देश में पिछले कई सालों से दुराचार पीड़िता का मेडिकल परीक्षण करने के दौरान मैनुअल एग्जामिनेशन का तरीका पीडि़ता अपनाया जाता था जो कि बेहद अमानवीय था।

चिकित्सकों के अनुसार कई बार इस जांच में यह भी पता नहीं चल पाता था कि पीड़िता के साथ वास्तव में दुराचार किया गया है या नहीं। इस तरीके से केवल यह जाना जा सकता था कि पीड़ित महिला पहले किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाया है कि नहीं। दुराचार के मामले की इस तरह की मेडिकल जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जाहिर करते हुए नये नियम बनाने के निर्देश दिये थे।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश का गृह विभाग, स्वास्थ्य विभाग और यूपी पुलिस की विधि विज्ञान प्रयोगशाला के अधिकारियों संयुक्त रूप से विचार कर यह तय किया गया कि मैनुअल एग्जामिनेशन को पूरी तरह खत्म किया जाए। उसके स्थान पर काल्पोस्कोपी टेस्ट कराया जाये ताकि दुराचार के दौरान हुए संघर्ष से आयी चोटों का ही मुख्य सुबूत बनाकर अदालत में पेश किया जा सके।

काल्पोस्कोपी टेस्ट में एक माइक्रोस्कोप की मदद से पीड़िता के निजी अंगों में आयी चोटों को चिह्नित किया जा सकता है। नियमों में बदलाव करते हुए पहली बार दुराचार के आरोपित पुरुष का भी मेडिकल टेस्ट कराने का प्राविधान किया गया है। नये नियमों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानको के अनुसार तैयार किया गया है जिसमें यह कहा गया है कि किसी भी पीड़िता व पीड़ित के निजी अंगों का परीक्षण करते समय उसके मानवाधिकारों और संवेदनशीलता का पूरा ध्यान रखा जाये।

शासनादेश में पीड़ित महिला और आरोपित पुरुष की अलग-अलग मेडिकल जांच कर उसे दो प्रोफार्मा में भरकर अदालत को देना होगा। शासनादेश में पोस्टमार्टम के नियमों में भी बड़े बदलाव किये गये हैं। इसके लिए अब तीन प्रोफार्मा तैयार किये गये हैं। पहले प्रोफार्मा में पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देशों के मुताबिक मृतक के शरीर पर मिलने वाली चोटों का पूरा डायग्राम (चित्र) बनाकर देना होगा। दूसरा प्रोफार्मा घटनास्थल से संबंधित है जोकि पुलिस को भरकर देना होगा। तीसरे प्रोफार्मा डीएनए जांच से संबंधित है जोकि पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर को भरकर देना होगा।