खबरीलाल का रोजनामचा: पतंगें खूब बंटती थीं, उड़ती थीं, अब बांटो जीप!!!

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चुनाव प्रचार बंद हो गया। अध्यक्षी और सभासदी के प्रत्याशियों ने वोट मांगने और अपने चुनाव चिन्हं को मतदाताओं के दिल दिमाग पर बनाये रखने के लिए कोई कोर कसर बकाया नहीं रखी। प्रशासन ने अपने आकलन और परिस्थितियों के चलते जब अध्यक्ष पद के प्रत्याशियों को जुलूस नहीं निकालने दिये तब फिर ताबड़तोड़ मोबाइल पर अपीलें जारी होने लगीं। संयोग कहें या खुशकिस्मती सामान्य चुनाव चिन्हं वाले प्रत्याशियों को फायदा हुआ। ‘आम’ चुनाव चिन्हं वाले प्रत्याशियों ने आम की छोटी बड़ी दावतें ही नहीं कीं, घर-घर आम अपने हेंडबिल तथा मतपत्र के नमूने के साथ पहुंचाये। आखिर आजकल आम का नौरोजा है न! घंटी चुनाव प्रचार वाले लोग छोटी बड़ी घंटियां लेकर घर-घर वोट मांगने निकले। गुलाब चुनाव चिन्हं वालों ने गांधीगीरी की तर्ज पर घर- घर गुलाब का फूल और अपना हैन्ड बिल बांटा। मुख्य मार्गों पर प्रशासन की सख्ती से भले ही जुलूस न निकले हों। गलियों, मोहल्लों में प्रचार बंद होने तक जुलूस निकलते रहे।

खबरीलाल पूरे शहर में यह नजारे घूम-घूमकर देख रहे थे। कमल फूल वालों को अपने निशान पर पूरा पूरा भरोसा है। हस्त कमल से चरण कमल का स्पर्श किया। मुख कमल से विनम्रता पूर्वक वोट मांगे। चकला वेलन के नाम पर सास बहुओं की दोस्ती कराने का प्रयास हुआ। सास बहुओं ने करी पुकार, चकला वेलन अबकी बार। उसे बांटने या दिखाने की जरूरत ही नहीं। क्योंकि वह तो घर-घर विराजमान है। रिक्शा अपने समर्थन के बल पर हिचकोले खाता छोटी-छोटी गलियों तक घूमा। एक घर के आगे कई रिक्शे खड़े थे। पड़ोसन सुबह-सुबह कूड़ा डालने निकली। क्या गर्मी की छुट्टियां मनाने रिश्तेदार लोग आये हैं। उसे बताया गया रिस्तेदार नहीं वोट मांगने वाले आए हैं। एक रिक्शे पर सपा वाले सलमा बेगम को आशीर्वाद दे रहे हैं। एक रिक्शे पर विधानसभा चुनाव का हाथी वाला और हाजी जी बैठे हैं। एक रिक्शे पर हाथ वाली कंपनी की जमानत जप्ती वाली बेगम और सायकिल वाली कंपनी की जमानत जप्त कराने वाली बहन जी बैठी हैं। चौथे रिक्शे पर समर्थन वाली कंपनियों के जिला वितरक बैठे हैं। इसके बाद भी लंबी लाइन है। किसी पर ठान, किसी पर पठान, किसी पर अंसारी। किसी पर तिलकधारी। किसी पर यदुवंशी और जाने कौन-कौन। समर्थकों की लंबी जमात देखकर लोग हैरान हैं। परेशान हैं। चाहते हुए भी पानी तक के लिए नहीं पूछ पा रहे। बिजली आ नहीं रही। फ्रिज गरम पानी, गरम घड़ा, सुराही बेअसर। परन्तु समर्थन का जलवा देखकर विरोधियों की छाती पर सांप लोट रहे हैं। यही चीज रिक्शा कंपनी वालों को सकून दे रही है। खबरीलाल को मिली सूचनाओं के अनुसार विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी दारू और नोट बांटने का पक्का इंतजाम हो रहा है। विधानसभा चुनाव के दौरान वर्तमान जिलाधिकारी नहीं थे। यह चुनाव उनकी भी त्रैमासिक परीक्षा है।

खबरीलाल से एक साहब बोले निकल गयी सारी कारीगरी। पतंगें खूब बंटती थीं, उड़ती थीं। अब बांटो जीप। असल नहीं बांट सकते खिलौने वाली ही बंटवा दो। ननदें, भतीजे, भतीजियां, देवर, ससुर सब खुश हो जायेंगे। शादी के बाद गौने का पक्का वायदा है न इस बार। दिक्कत है बेचारे हथौड़े वालों को। हथौड़ी लेकर चल नहीं सकते। भारी हथौड़ा लेकर जिसके यहां जाओ। आधे लोग यही समझेंगे कि अतिक्रमण विरोधी दस्ता दुबारा क्यों आया। वह तो बाबी मिश्रा व्यापार मण्डल के जिलाध्यक्ष हैं। उनको लोग जानते हैं, पहिचानते हैं। इसलिए झगड़े फसाद की नौवत नहीं आयेगी। लेकिन अरुण प्रकाश तिवारी ददुआ को कौन समझाए। जब जिला वितरक मैदान में आया। तब प्रांतीय होलसेलर कमल वालों की जमात में घूमने लगा। छाते वालों को और अधिक परेशानी। जिससे छाते की बात करो। वही कहता गरमी बहुत है। छाता होता कुछ राहत मिलती। अब आचार संहिता के चलते कौन छाता, सस्ता वाला ही सही बांटने की हिम्मत दिखाये। सबसे अच्छे उगते सूरज चुनाव निशान वाले। न कुछ बताना न कहना। केवल सूरज की ओर इशारा कर वोट मांगना।

खबरीलाल बोले शंख बजाकर किसी के दरबाजे पर वोट मांगने जाओ। अंदर लोग समझेंगे कोई साधू सन्यासी भिक्षा लेने आया है। राजनीति में अब धवल, स्वच्छ, शंखों और उनकी कर्णप्रिय ध्वनि की जरूरत पार्टी और परिवार वालों को ही नहीं रही। अब तो हर ओर ढपोरशंखियों की जमात खड़ी है। परन्तु शंखधारी हैं बड़ी हिम्मत वाले। चकला वेलन की तर्ज पर ही शंख भी छोटा, बड़ा, नया, पुराना बजने न बजने वाला मिल अधिकांश घरों में जाएगा। हर घर जाते हैं। हाथ जोड़कर वोट मांगते हैं। शंख बजाकर अपनी सुनिश्चित जीत का ऐलान करते हैं। पेंसिल वाले बहुत खुश हैं। बच्चे पेंसिल पाकर खुश हैं। अपने मम्मी पापा से कहते हैं। पेंसिल वाले अंकल को ही वोट देना। परन्तु कार, ट्रैक्टर, गमला, लड़का लड़की, खड़ाऊं, चश्मा या कम प्रचलित चुनाव चिन्हं वालों को अपने चुनाव प्रचार में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। चलो हो गया चुनाव प्रचार अब डलवाओ वोट। कल रोजनामचे में आखिरी बार भेंट होगी। नए पुराने अध्यक्षों की याद करेंगे। आप सबसे निष्पक्ष और निर्भीक होकर वोट डालने की अपील करेंगे। रविवार का चुनाव का सार्वजनिक अवकाश।

सतीश दीक्षित
एडवोकेट