जेल में कुछ नहीं मिलता डीएम, एसपी और जिला जज को निरीक्षण में

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फर्रुखाबाद: हर महीने रूटीन में वाले जेल निरीक्षण को हम मीडिया वाले अनायास ही जेल में छापे की संज्ञा देकर उसका महत्व बढ़ाने का प्रयास करते रहते है| खबर में चटपटी हेडिंग से शायद पाठक नीचे उतर जाए| मगर चूना डाल कर किया गया निरीक्षण औचक छापे की श्रेणी में नहीं आता| ये बात लाख खुद को समझाने के बाद भी जेहन में नहीं उतरती| हर माह जेल में निरीक्षण के बाद बाहर आकर मीडिया को दिया सब कुछ ठीक का बयान आम जनता के गले नहीं उतरने वाला| या तो साहब लोग व्यवस्था ठीक ठाक करने में कोई रूचि नहीं रखते या फिर जनता के सामने व्यवस्था की नाकामियों को प्रगट करने में हिम्मत नहीं रखते|

जेल में कितना सही है और कितना गलत ये तथ्य अब आम जनता से छुपे नहीं है| जेल में प्रतिबंधित स्मेक, चरस, गांजा, शराब, मोबाइल फोन सब उपलब्ध है| जेल का पूरा सिस्टम और उसके कर्णधार इस अवैध उपलब्धतता की काली कमाई से अपने बच्चो की परवरिश के लिए धन जमा करते है| इन्हें रोकने के कोई प्रयास नहीं होते| कुछ समय पहले मेरा एक रिश्तेदार जेल में बंद हुआ| कभी रात को 11 बजे तो कभी 9 बजे मेरे पर्सनल फोन पर जेल से फोन आता था कि अमुक कल पेशी पर आएगा 1000/- रुपये खर्चे के भिजवा दे| फोन करने वाला जेल का कोई कर्मी होता था| ये 1000 या कम ज्यादा रुपये जेल के कर्मिओ को देने के होते थे| अंग्रेजो के जमाने से चली आ रही मस्सकत कटवाने की घूस परम्परा में कोई बदलाव नहीं केवल इजाफा हुआ है| तब हम गुलाम थे, जेलों में अंग्रेजो की हकुमत होती थी| मगर जेलों में अब भी हम आजाद नहीं| जेल में सुरक्षा के नाम पर मीडिया का कैमरा जरुर प्रतिबंधित होता है मगर खूंखार कैदियो/बन्दियो को मोबाइल रखने की छूट रहती है| ये बात और है कि जेल कर्मी कैदी/बंदी को ये सुविधा मुफ्त में नहीं मुहैया करने देते| इसके बदले में हफ्ता, महीना आदि लेते है| नशेडियो को हर सुविधा जेल में मिलती है| बीड़ी से लेकर चरस गांजा शराब सब मिलेगा| ये नशा करते समय जेल में बंद बंदी/कैदी को सिंगापुर का एहसास हो सकता है क्यूंकि इनके दाम कई गुना होते है| महगा शौक करने में बड़े शहर का एहसास जरुर जेल प्रशासन करा देता है|

जेल में बनने और बटने वाला खाना किस किस्म का होता है ये बताने की नहीं महसूस करने की चीज है| मुझे ये मौका अभी नसीब नहीं हुआ अलबत्ता जेल गए लोगो के मुताबिक बाजार में बिकने वाला सबसे घटिया आता, तेल, घी, नमक, मिर्च सहित अन्य खाद्य सामग्री जेल के ठेकेदार जेल प्रशासन की जेब गरम करके सप्लाई पहुचता है| खबर तो ये भी है कि इसका हिस्सा जेल मंत्री तक जाता है मगर इसके सबूत कहाँ से लाये जाए यहीं पर बात अटक जाती है| और जेल मंत्री पाक साफ़ नजर आते है| इन सबसे इतर हर माह जेल में निरीक्षण करने के लिए जाने वाले साहब लोगो को ये सब कमी कभी नहीं मिलती या मिली भी होंगी तो जेल से बाहर आने के बाद मीडिया को सब बताने की हिम्मत शायद नहीं दिखती| पर्दा पड़ा रहने से सब कुछ ठीक ठाक का काल्पनिक एहसास आखिर किसे कराते है? खुद को, मीडिया को या जनता को?

माना कि व्यवहारिकता में जेल में बंद तमाम अपराधियो के अपराध क्षम्य नहीं हो सकते लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि उनके चक्कर में सामान्य या संयोगवश या रंजिशन अपराध में फसे लोग भी प्रताड़ित किये जाए| गत दिनों कचहरी में पेशी पर आये 8 बंदी हवालात के शौचालय की दीवार से ईंट निकल कर भाग गए| किसका दोष है- पुलिस का जिन्हें इन पर नजर रखनी थी, व्यवस्था का जिससे प्रताड़ित होकर इंसान उग्र रूप धारण करता है या फिर उन भ्रष्ट ठेकेदारों, इंजीनियरों और मंत्रियो का जिन्होंने घटिया निर्माण सामग्री से हवालात का निर्माण कराया और होने दिया| दीवार बाकई में कमजोर थी| एक मामूली 10 मिमी (3 सूत) की सरिया के छोटे से टुकड़े से चंद मिनटों में हवालात की दीवार की ईंटे निकल जाए तो इसे क्या कहिएगा| न तो ठेकेदार के घर से लेकर मंत्री और अफसरों के घरो की ईंटे कोई उस सरिया से निकाल कर दिखाए? जड़ में जाने की न तो किसी में हिम्मत है और न हौसला| सिपाही निलंबित करने से पहले ठेकेदार और उस विभाग के लोगो के खिलाफ भी 420 का मुकदमा लिखा जाना चाहिए जिसने ये घटिया दीवार बनायीं थी| बात जड़ की है और जहाँ तक जाएगी, बीमारी जद से साफ़ न की तो नासूर बन जाएगी|
जय हिंद