Sunday, December 29, 2024
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फर्रुखाबाद परिक्रमा: सपा की बाजार बंदी या खेमा बंदी

सावधान हम आ गए हैं, आते ही खबरों में छा गए है| मैकूलाल के घंटाघर चौक त्रिपोलिया की पटिया पर आज सवेरे सवेरे गांधीजी के तीन बंदरों की तर्ज पर पूरे एक माह बाद मुंशी हर दिल अजीज, मियां झान झरोखे और खबरी लाल विराजमान थे| सभी तीनो के चेहरों पर ख़ुशी की लालामी और स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर जबरदस्त उत्साह दिख रहा था|

मुंशी हर दिल अजीज ने शुरुआत करने के अंदाज में कहा| शहर और जिले के क्या हाल है| तुम तो कल ही आ गए थे| खबरी लाल तैयार ही बैठे थे| बोले मुंशी! बड़ा सुहावना मौसम है| आसमान से भले ही आग बरस रही हो| बिजली भले ही रुला रही हो| परन्तु स्थानीय निकाय चुनाव के चलते लोगों की चाल बदल गयी है| वाणी में मिश्री घुल गयी है| चुनावी चाबुक ने बड़ो बड़ो को भीगी बिल्ली बना दिया| सडको गलिओं मुहल्लों में निकलते समय जो पूर्ण कटु निंदनीय गालियाँ न चाहते हुए भी सुननी पड़ती थी| वह चुनाव के चलते गधो के सर से सींग की तर्ज पर गायब हैं| सज्जन तो सज्जन अब दबंग और उदंड कहे या समझे जाने वाले लोग तक विनम्रता में खीसे निपोरे हुए जा रहे हैं| वाह रे चुनाव और चुनाव चक्र|

मियां झान झरोखे बोले खबरी लाल क्या हो गया तुम्हे, एक महीने की छुट्टी में| ऐसे बोल रहे हो जैसे कोई गर्दन पर हाथ रखे हो| मियां का टुटका काम कर गया| खबरी लाल दहाड़ कर बोले- मियां होश की सवा करो होश की| हमारा नाम खबरी लाल कोई ऐसे वैसे नहीं है| परन्तु अब हमने तुम्हारे जैसे लोगों के उकसाने में आना बंद कर दिया है| अब बात करते हैं ठोक बजाकर जाँच परख कर जिसका कोई काट न हो| खबरी लाल मुंशी हर दिल अजीज की ओर मुखातिब होकर बोले देखो मुंशी अब कल तक नामांकन हुआ है| तस्वीर नाम वापसी के बाद साफ़ होगी| लेकिन यह हमारे मियां झान झरोखे हैं न! इन्हें झूठी सच्ची नरम गरम सुनने सुनाने की आदत पड़ गयी है| हम कहते है सोलह आने पाँव रत्ती सही और ताल ठोक कर| पूरे चुनाव ऐसी टनाटन खबरे देंगे की दोस्तों और दुश्मनों दोनों के होश फाख्ता हो जायेंगे| फिर अलाप लगाने के अन्दांज में जोर से बोले सावधान हम आ गए है| मुंशी और मियां ने जबाब दिया- खबरी लाल आते ही छा गए है|

सपा की सम्पूर्ण बाजार बंदी- खेमो में बटी खेमा बंदी

पेट्रोल कीमतों की वृद्धि के विरोध में 31 मई को हुई बाजार बंदी ने परदे के पीछे चल रही तिकडमो और खेल को उजागर कर दिया| भाजपा इस बंदी में रस्म अदायगी तक ही सीमित रही| टोली बाजार में घूमी और फोटो सेशन के बाद धूप चढ़ने से पहले ही भाजपाई घरो में चले गए|

परन्तु सपाई ठहरे सपाई| ऊपर से सत्ता ही हनक और ठसक| डॉक्टर लोहिया कहते थे कि कार्यकर्ता को नेता की गुलामी नहीं सम्मान करना चाहिए| जब कार्यकर्ता नेता की गुलामी करने लगता है तब पार्टी चू चू का मुरब्बा बन जाती है| यहाँ भी यही हो रहा है| यहाँ गुलाम बनने वाले कार्यकर्ताओ और बनाने वाले नेताओ का निराला खेल रोज देखने को मिलता है| समूर्ण बाजार बंदी वाले दिन तो कहने ही क्या| मंत्री पुत्र विधायक पुत्रों पूर्व विधायको का काफिला पूरे ताम झाम के साथ कुछ इस तरह निकला मनो बाजार बंदी के लिए व्यापारियो से अनुरोध करने नहीं लडाई लड़ने जा रहे है| संगठन और सन्गठन के पदाधिकारियो की कहीं कोई भूमिका ही नहीं थी| अनुशासन छोटे बड़े का लिहाज सब गायब था| सबके अपने अपने कुनबे थे| सब अपनी मर्जी के मालिक थे| सत्ता की हनक ठसक के आगे पुलिस प्रशासन व्यापारी सब सहमे थे| हद हो गयी जब भाजपा समर्थित व्यापार मंडल के प्रदेश स्तरीय तथा अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी तक भाजपा नेताओ के स्थान पर अपनी पसंद के सपा नेता के साथ नजर आये| बाजार बंदी होनी थी, हुई| क्यूंकि महगाई और भ्रष्टाचार के बीच पेट्रोल की कीमतों में हुई जबरदस्त बाजार बंदी ने आम आदमी को तबाही की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया| परन्तु इस बाजार बंदी से भाजपा और नेपथ्य में चली गयी| वहीँ सपा का अनुशासन पूरे जिले में तार तार होकर बिखर गया| अपने ही अपनों की फजीहत में लग तब फिर आप क्या कर सकते हैं|

किसने कहाँ क्या खेल क्या| इस पर चटखारे लेकर लोग बात करते है| डॉ लोहिया के चुनाव के दौरान के कट्टर सपाई अपने से काफी जूनियर सपाई को नगर पालिका चुनाव में पार्टी समर्थन के नाम पर एक दिग्गज बसपाई को लाखो ठगे जाने का खेल बयान कर रहे थे| बातो बातो में यह भी बता गए कि उन्होंने सब हाई कमान को बता दिया| सब हाई कमान को बताते रहते है| हाई कमान सब जानता है| फिर भी पार्टी पदाधिकारियों अधिकांश कार्यकर्ताओं जन प्रतिनिधिओ द्वारा वाही सब किया जा रहा है जो नहीं होना चाहिए|

आइये एक बानगी देखे| एक पुराने ठसकदार जनप्रतिनिधि है| उनके पुत्र है- एक मात्र पुत्र हैं| नतीजतन यह भी तय है कि राजनैतिक उत्तराधिकारी भी वहीँ है| सबको नजरअंदाज करते हुए ऐसा माहौल बनाया गया जैसे साड़ी बाजार बंदी उन्ही के मार्गदर्शन और नेतृत्व में हो रही है| कुनवापरस्ती और जतिबाद की पराकाष्ठा रातो रात चमचो और ठेकेदारों ने पूरे जिले और शहर में पोस्टर लगा दिए| राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा मुख्यमंत्री जी का फोटो पिताश्री का फोटो और सबसे बड़ा फोटो निवेदक का| क्या कहेंगे इसे आप स्वयं विचार करिए| पूरे पोस्टर पर जिला शहर सन्गठन का कहीं कोई जिक्र नहीं| हम निवेदक नहीं है| मनमानी करने पर उतारू नेताजी के बेटे है| हम पार्टी के नाम पर कुछ भी कर सकते हैं| परन्तु आप जैसे लोगों की इस प्रकार की हरकतों से जानता में क्या सन्देश जाता है| इसका पता आपको जब लगेगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी|

कहता रहे हाईकमान यह मत करो, वह मत करो। हम तो हाईकमान को भी जेब में रखते हैं। अपने मन की करते हैं। किया है और करेंगे। हमारे ठेंगे पर है हाईकमान। इसी लिये कहते हैं कि जो मान जाये व सपाई क्या और जो जलेबी न बनाये वह हलवाई क्या। आश्चर्यजनक रूप से इस बाजार बंदी में वामपंथियों की उपस्थिति नाम मात्र की ही रही। इस सबके बावजूद सपाई अपने अपने कारणों में मस्त हैं। फिलहाल यह मस्ती बढ़ती जा रही है। नतीजे की चिंता सपाई कभी करते ही नहीं।

 गेंहू खरीद : मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की

गेंहूं खरीद में धांधली व लूट में सरकार व जिला प्रशासन की सख्ती के चलते बिचौलियों माफथ्याओं राजनैतिक संरक्षणदाताओं की सतर्कता बढ़ी है।  परंतु किसानो को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पर रहा है। भृष्ट तंत्र की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री सहित दर्जनों मंत्रियों, जिलाधिकारियों  अन्य अधिकारियों के ताबड़तोड़ सक्रियाता ने भी किसानों को राहत नहीं दिला पायी। एसा नहीं है कि धांधलियों को रोकने में लगे लोगों में इच्छाशक्ति का अभाव है। वास्तविकता यह है कि भृष्टतंत्र के दो पक्ष हैं। सरकारी व दूसरा गैर-सरकारी बिचौलिये, आढती आदि। यह दोनों ही पक्ष एक दूसरे के पूरक हैं। इन दोनों के ऊपर सामंजस्य बिठाने के लिये होता है राजनैतिक प्रश्रयदाताओं का खेल। इन राजनैतिक आश्रयदाताओं के सजातीय हेकड़-दबंग पैसे के लिये कुछ भी करने को राजी रहते हैं। किसी भी मंडी में चले जाइये। पल्लेदारों, पानी पिलाने वालों, चाय का खोखा रखने वालों से पूछिये कि क्या चल रहा है, सब अपने आप सामने आ जायेगा। परंतु पता नहीं क्यों उन लोगों को यह सब क्यों पता नहीं चलपाता जिनको यह जानकारी होनी चाहिये।

हमने एक पुराने खुर्रांट से इस समस्या का तोड़ पूंछा, तो वह हंस कर बोले- छोड़िये साहब, क्या रखा है इन बातों में। इस देश में किसानों की सिर्फ बात होती है व लूटमार भी सबसे ज्यादा उसकी होती है। मुख्यमंत्री औचक निरीक्षण पर जारहे हैं, परंतु जिलों में उन्हीं की पार्टी के जनप्रतिनिध व नेता अपने क्षेत्र में यह काम क्यों नहीं कर रहे हैं। वह क्यों चुप्पी साधे हैं। अभी भी तीन महीने भी न हुए इन्हीं किसानों के वोट से सरकार बनी है। जनप्रतिनिधि निस्वार्थभाव से सक्रिय हो जायें तो लूट रुक जायेगी। फिर घाट घाट का पानी पिये बुजुर्गवार बोले कि जनप्रतिनिधियों के शानदार अभिनंदन स्वागत समारोह भी गेंहू खरीद में धांधलियों की तरह रुक जायें। ठंडी आह भरते हुए वह बोले कि पता नहीं यह कब हो पायेगा। बाबूजी हंसना व गाल फुलाना एक साथ नहीं हो सकता।

 

कन्नौज का चुनाव .. बहू की मुंह दिखायी

प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री की पत्नी डिपल यादव कल कन्नौज में अपना नामांकन करेंगी। प्रत्येक सपाई को यह खबर रोमांचित कर देने वाली है। फर्रुखबाद का ही हिस्सा रहा है नवसृजित जिला कन्नौज। यहां से भी सपाइयों की लंबी फौज कन्नौज जाने को तैयार है। सभी को चुनाव परिणाम के एतिहासिक होने की उम्मीद है। फिरोजाबाद की करारी हार का बदला जो लेना है। परंतु इससे ज्यादा सपाइयों को अपने भविष्य की चिंता है। पहुंचेगे कन्नौज नेता को मुंह दिखाने। अपनी तानने व दूसरों की जड़े खोदने। …………इसपर भी नामांकन के बाद खबरीलाल के सौजन्य से खबरें देंगे।

 केवल शिक्षक ही क्यों…. डीएम साहब और लोग क्यों नहीं

बहुत लंबे समय के बाद आयोजित शिक्षा उन्नयन गोष्ठी में डीएम ने शिक्षकों को कर्तव्यबोध के लिये झकझोरा। उन्हे दो घंटे मन से पढाने का कार्य कर समाज कल्याण में भागीदार बनने को कहा। नवआगंतुक बीएसए ने बहुत अच्छी अच्छी बाते कहीं, परंतु किसी ने शिक्षकों के दैनीय शोषण व उत्पीड़न की जानकारी व विगत वर्षों में हुई करोड़ों की लूट की जानकारी करने की तकलीफ नहीं उठायी। बात केवल शिक्षकों की ही नहीं है, हर विभाग में यदि मन लगाकर  दो घंटे काम हो तो समस्याओं का समाधान होते देर नहीं लगेगी। परंतु उसके लिये हमारे पास प्रेरक व आदर्श का अभाव है।

लोहिया अस्पताल, बिजली विभाग, जेल सहित सभी विभागों में औचक निरीक्षण हुए। लोग डांटे फटकारे व लताड़े गये। क्या सुधार हुआ। मीडिया में सुर्खियां बनी। परंतु नतीजा वही ढाक के तीन पात। आप दो घंटे की बात करते हैं। सरकार ही नहीं चाहती कि शिक्षक पढाये। शिक्षक पर शिक्षण के अतिरिक्त इतना कार्य लाद दिया गया है, कि वही विद्यालय में बैठ ही नहीं पाते। विभगीय लागों द्वारा महिला शिक्षकों का उत्पीड़न बेहिसाब है। उम्मीद करनी चाहिये कि डीएम व बीएसए साहब जोश व होश के साथ स्थितियों को सुधारने व आदर्श बनने में कामयाब होंगे।

 और अंत में………………..

चुनाव हों व उसमें प्रत्याशी समर्थक के रूप में अधिवक्ताओं की भागीदारी न हो, एसा तो संभव ही नहीं है। नामांकन, शपथपत्र, जांच, अपत्तियों से उनके निस्तारण तक हर जगह अधिवक्ताओं का ही जलवा है। कुछ का तो चुनाव में निरंतर सेवाये देने का लंबा इतिहास है। परिणाम की चिंता वह कभी नहीं करते। हर चुनावी समस्या को सुलझाने में उन्हें महारत हासिल है। एसे ही एक पुराने अखाड़ची ने नये खिलंदड़े से पूछ दिया- कहिये जनाब क्या हाल है। खिलंदड़ा बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुब्हान अल्लाह के अंदाज मं इतराता हुआ बोला। मौज है भाई साहब। चैन की कट रही है। देखिये अपना सीधा हिसाब है। छोट मुकदमें मैं लेता नहीं, और बड़े मुकदमें मेरे पास आते नहीं। अब आप ही बताइये हुई न मौज ही मौच। पुराने अखाड़ची का मुंह खुला का खुला रह गया।

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