चला दिया चमड़े का सिक्का- वार्ड सदस्यों के शपथ पत्रों का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं

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फर्रुखाबाद: निकाय चुनाव में वार्ड सभासदों द्वारा नामांकन के साथ दाखिल किये जा रहे शपथ पत्रों को सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा नहीं किया जा रहा है| हालाँकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तर्ज पर सभी प्रत्याशियो के दाखिल शपथ पत्रों को सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करने का आयोग की नियमवाली में उल्लेख है| फर्रुखाबाद नगर के वार्ड सदस्यों के लिए बनाये गए निर्वाचन अधिकारी अधिशाषी अभियंता आवास विकास महेंद्र पाल के मुताबिक वे नियमानुसार अपना काम सम्पादित कर रहे है| उन्हें वार्ड सदस्यों के शपथ सार्वजनिक स्थान पर चस्पा करने के कोई निर्देश नहीं मिले है|

उत्तर प्रदेश द्वारा जारी गजट दिनांक 18 जून 2010 में प्रष्ट संख्या 8 पर अंकित नियम 22 के भाग 3 के अनुसार “रिटर्निग अधिकारी उपनियम (1) के अधीन उसे सूचना उपलब्ध कराने के पश्चात् यथाशीघ्र उपर्युक्त सूचना को उस निर्वाचन क्षेत्र के वार्ड, जिसके लिए नाम निर्देशन पत्र परिदत्त किया गया है, से सम्बन्धित निर्वाचको की सूचना के लिए उपनियम (2) के अधीन परिदत्त शपथ पत्र की प्रति को उसके कार्यालय के किसी सहज द्रश्य स्थान पर चस्पा कर प्रदर्शित करेगा|”

केंद्रीय चुनाव आयोग जहाँ आम जनता तक हर प्रत्याशी के बारे में हर जानकारी जो सार्वजनिक करने योग्य है उसे प्रदर्शित कर पारदर्शिता पर बल देता रहा है| वहीँ स्थानीय निकायों में इस बात की ज्यादा जरुरत है कि अमुक व्यक्ति जो आपका वोट हासिल करना चाहता है वो कुछ छिपा तो नहीं रहा| शपथ पत्रों को सार्वजनिक करने के पीछे भी सरकार की मंशा पारदर्शिता को बढ़ावा देने की है| किन्तु सरकारी नियम और आदेशो को अफसर अपनी मर्जी से तोड़ मरोड़ कर पेश करने में नहीं चूकते|

बात तथ्यों को गोपनीय बनाकर कुछ भी करने की मंशा प्रगट करने की है| सरकारी गजट और निर्वाचन नियमो की पुस्तिका हाथ में लिए अधिशाषी अभियंता आवास विकास महेंद्र कुमार जो कि फर्रुखाबाद नगर के रिटर्निंग अधिकारी बनाये गए है, का ये कहना कि उन्हें ऊपर से कोई निर्देश नहीं मिला हास्यास्पद एवं कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिंह खड़ा करता है| यदि आम जनता नहीं जानती कि उसे क्या क्या जानना चाहिए तो सरकार का कर्तव्य है कि जनता को जागरूक करे| एक ओर चुनाव आयोग जहाँ स्वस्थ लोकतंत्र के लिए तमाम जागरूकता अभियान चलाकर जनता को जागरूक करना चाहती है दो दूसरी और जिले स्तर पर बैठे अधिकारी अपने खुद के नियम बनाने से नहीं चूकते| छोटे चुनाव में जनता का ये हक़ छीना जा रहा कि किस चरित्र के व्यक्ति को वे चुनने जा रहे है| पञ्च साल तक सिर्फ नगरपालिका चेयरमेन के चाटुकार बनने का मौका इन्हें ऐसे ही नहीं मिलता| न कोई योजना, न कोई प्लान बस उतर गए मैदान में| इसे कहते है— चमड़े का सिक्का चलाना|