Sunday, January 12, 2025
spot_img
HomeUncategorizedतीन साल से पहले बच्चों को न भेजें स्कूल

तीन साल से पहले बच्चों को न भेजें स्कूल

राहुल जैसे ही दो साल का हुआ उसकी मां ने नौकरी करनी शुरू कर दी ओर उसे प्ले स्कूल में डाल दिया। कुछ दिन बाद राहुल के स्वभाव में परिवर्तन आने लगा। वह या तो बिल्कुल चुप रहता था फिर गुस्से से बात करता। मां की कोई बात नहीं मानता। मां परेशान हो उठी। आखिरकार उसे बाल-मनोचिकित्सक के पास जाना पड़ा। ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्हें दो या ढाई साल की उम्र में प्ले स्कूल में डाल दिया जाता है और तीन साल होते-होते नर्सरी में दाखिले के लिए माता-पिता जुट जाते हैं। फिर शुरू होता है अच्छे-से अच्छे स्कूल में दाखिले की होड़। बिना यह सोचे समझे की क्या बच्चा भी मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार है या नहीं।

हाल में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के कुछ प्रोफेसरों के अध्ययन में यह बताया गया कि जिन बच्चों के साथ बचपन से ही बुरा व्यवहार, डांट-डपट, ज्यादा रोकटोक या फिर तीन साल से पहले प्री-नर्सरी स्कूल में भेजा गया उनमें आम बच्चों से ज्यादा तनाव होता है और फिर भविष्य में हिंसक बनने की संभावना ज्यादा होती हैं।

तीन साल से पहले स्कूल जाने वाले बच्चों में भावनात्मक समस्या बढ़ जाती है। बच्चे उग्र भी होने लगते हैं। वह बड़ों की आज्ञा की अवहेलना करना भी सीख जाते हैं। यह कोई मायने नहीं रखता कि आप अपने बच्चे को कितने अच्छे नर्सरी स्कूल में डाल रहे हैं।

एक अध्ययन के अनुसार यह बात भी सामने आई कि नर्सरी स्कूल जाने वाले बच्चों में घर पर रहने वाले बच्चों की अपेक्षा तनाव पैदा करने वाला कार्टिसोल हारमोन दोगुना ज्यादा पैदा होने लगता है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ और ह्यूमन डेवलपमेंट अमेरिका के 1,360 बच्चों पर किए अध्ययन में यह बात सामने आई कि जो बच्चे ज्यादा समय नर्सरी स्कूल में बिताते हैं वे माता-पिता की बातों की अवहेलना करते हैं।

दूसरी तरफ कई महिलाएं अपने बच्चों को समय से पहले नर्सरी स्कूल भेजकर उनकी सेहत से भी खिलवाड़ कर रही है। कई बार जॉब करने वाली महिलाएं अपने बच्चे को प्री-नर्सरी स्कूल में डालकर नौकरी करने चली जाती हैं। ऐसे में बच्चे को अकेलापन महसूस होता है जिससे उनमें तनाव पैदा होता हैं। दो-तीन साल की उम्र खेलने की होती है न कि स्कूल जाने की। लेकिन ज्यादातर अभिभावक यह समझने को तैयार नहीं।

बाल मनोचिकित्सकों का मानना है कि दिनचर्या में आए बदलाव से बच्चे तनाव में आ जाते हैं और यही तनाव भविष्य में उनके लिए खतरनाक साबित होता हैं। उनके लिए वहां के लोग अजनबी की तरह होते हैं। पहले उन्हें यह सब घर में सिखाएं फिर उन्हें नर्सरी स्कूल में डालें।

विशेषज्ञों का तो यहां तक मानना है कि बच्चे को स्कूल तभी भेजना चाहिए जब वह चार साल का हो। जब पांच साल का हो तभी उसे प्री-स्कूल भेजना चाहिए। क्योंकि यह उसके लिए एक रिहर्सल होता है बड़े स्कूल जाने से पहले। बच्चे के जन्म के कुछ दिन बाद जो माएं वापस अपने काम पर लौटना चाहती हैं, उन्हें शाम को घर आने के बाद बच्चे के साथ पूरा समय बिताना चाहिए। इससे बच्चे में शुरू हो रहा तनाव कम होता है। बच्चे के साथ ऐसा वातावरण बनाना चाहिए कि उसे हर पल अच्छा महसूस हो। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चे के सामने एक दूसरे से अच्छी तरह बात करें और बच्चे को भी गले लगाएं और प्यार करें। इससे बच्चा हमेशा अच्छा महसूस करेगा और उनमें आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments