राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इंदिरा गांधी की खुले दिल से प्रशंसा करते हुए कहा है कि आतंक से दृढ़तापूर्वक निपटने के मामले में वही इकलौती सक्षम नेता थीं। वहीं उसने कंधार कांड में विमान यात्रियों के बदले कश्मीरी आतंकियों को रिहा करने के लिए भाजपा नेता जसवंत सिंह की आलोचना की है। परंतु भाजपा के गठबंधन वाली पंजाब सरकार द्वारा एक बब्बर खालसा आतंकी को बचाने के मामले में यहां भी चुप्पी ही साध ली गयी है।
संघ के मुखपत्र आर्गेनाइजर के ताजा अंक के संपादकीय में लिखा गया है कि अपहरण और बंधकों के बदले कैदियों की अदला-बदली के लिए केंद्र के साथ-साथ राज्यों की अपनी कोई सुनिश्चित नीति नहीं है। इस लेख में याद दिलाया गया है कि 1984 में इंदिरा गांधी ने मकबूल बट को फांसी देने में कोई नरमी नहीं दिखाई जबकि आतंकी सरकार पर दबाव बनाने के लिए भारतीय राजनयिक रवींद्र म्हात्रे को बंधक बनाए हुए थे। यद्यपि आतंकियों ने बट की फांसी के बाद म्हात्रे की हत्या कर दी थी। लेकिन उसके बाद से ऐसा कोई मौका देखने को नहीं मिला जब सरकार ने ऐसे मामलों में दृढ़ता दिखाई हो।
लेख में कंधार कांड का जिक्र करते हुए कहा गया है बंधक विमान यात्रियों को मुक्त कराने के लिए तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह खुद कश्मीरी आतंकियों को अपने साथ लेकर गए। इस लेख में 1989 में गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद को अगवा किए जाने का जिक्र करते हुए तत्कालीन सरकार की लाचारी का उल्लेख किया है। ज्ञात रहे है इस घटना में रूबिया के बदले खूंखार आतंकियों को छोड़ा गया था।
नक्सलियों द्वारा हाल में अपहरण की घटनाओं का जिक्र करते हुए लेख में कहा गया है कि इन वारदातों से नक्सली न केवल अपने साथियों को मुक्त करा रहे हैं बल्कि उन्हें इनकी आड़ में अपनी ताकत बढ़ाने और संगठित होने का भरपूर मौका भी मिल रहा है। ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए हम लोगों के पास एक सुविचारित नीति होनी जरूरी है ताकि हम यह संदेश दे सकें कि भारत कमजोर देश नहीं है। अगर हम ऐसा करने में नाकाम रहे तो हमारा आतंकविरोधी अभियान मजाक बनकर रह जाएगा।