मुंशी हर दिल अजीज, मियां झान झरोखे और खबरी लाल की टोली जश्न में डूबे कन्नौज से कंपिल तक के ऐतिहासिक और पुराण प्रसिद्ध इलाके में जायजा लेती घूम रही है। कभी अलग-अलग और कभी साथ-साथ। संचार क्रांति के बल पर बराबर का तालमेल और घालमेल।
जीटी रोड पर पूर्व की ओर से राष्ट्रीय ध्वज लाल बत्ती और सपाई झंण्डों से सजी गाड़ियों का जबर्दस्त काफिला आता दिखाई दिया। धूम धड़ाका, हल्ला गुल्ला, अबीर गुलाल, जिन्दाबाद से माहौल उत्साह, उमंग की पराकाष्ठा पर पहुंच गया। जगह-जगह माला, मिठाई और वरिष्ठ नेताओं और ए क्लास कान्ट्रेक्टरों की मुहं दिखाई। लाल बत्तियों की भरमार जैसे पूरी उत्तर प्रदेश सरकार टीपू भैया के इलाके में विकास कार्यों का जायजा लेने आ गई हो।
खबरीलाल मामले को समझने के लिए आगे बढ़े। देखते क्या हैं। लगभग आधा दर्जन लाल बत्ती गाड़ियां हैं। एक में राज्य मंत्री जी विराजमान हैं साथ में एक विधायक जी हैं। पीछे की लाल बत्ती गाड़ियों में मंत्री पुत्र हैं विधायक पुत्र हैं वरिष्ठ सपा, युवा, छात्र नेता हैं ए क्लास कान्ट्रेक्टर हैं। मंत्री जी के चमचे पतीलियां, बटलोहियां हैं। नहीं हैं तो मतदान केन्द्रों पर सपा के नाम पर और इससे भी अधिक लोकल पार्टी बंदी विरादरी की उठापटक की मजबूरियों के नाम पर अपना खून पसीना बहाने वाले जान हथेली पर रखकर एक-एक वोट डलवाने वाले। वह सभी पार्टी हाई कमान की सलाह मानते हुए खुशियां मनाते हुए ठगे से खड़े हैं। सोच रहे हैं इन्हीं के खिलाफ तो संघर्ष किया था।
आंखों पर गहरा काला चश्मा, दोनो हाथों में कीमती अंगूठियां, लकदक कुड़ता पायजामा, गले में भैंस न सही बछड़े को बांधने लायक सोने की मोटी जंजीर। शरीर पर जाने क्या सजाये एक युवा नेता कीमती गाड़ियों के छोटे काफिले के साथ आते हैं। मंत्री जी का काफिला हाथ देकर रोकते हैं। मंत्री जी बड़ी नजाकत से उतरते हैं। दो पल्लेदार 51 किलो की माला लेकर आते हैं। छोटा नेता वरिष्ठ नेता माला में हाथ लगाता है। मंत्री जी माला में घुस जाते हैं।
अब फोटू सोटू तो छपेगा ही भैया जी तगड़े विज्ञापनबाज हैं। ब्रांड बिकता है राजनीति में सबसे ज्यादा। छोटा नेता वरिष्ठ नेता मंत्री जी के साथ गाड़ी में बैठ जाता है। कार्यकर्ताओं से कहता है अब तुम लोग जाओ। हमारा काम शुरू तुम्हारा काम खत्म। अब अगला चुनाव हो तब मिलना। हर्ष फायरिंग न सही लेकिन सादगी, ईमानदारी, अनुशासन, भलमनसाहत सबकी धांय-धांय, ढिसुम-ढिसुम हो गई। जय समाजवाद! जेब में हों दाम सभी बनेंगे काम। कार्यकर्ताओं जगह खाली करो, कुर्सी खाली करो सिंहासन खाली करो, बहुत मेहनत करी है। थक गए होगे अब पांच साल दो साल जब तक चुनाव उप चुनाव हो आराम करो। जब जरूरत पड़ेगी भट्ठे की लेवर की तरह तुम्हें न्यौता भेज देंगे। फिकर बिलकुल न करना- हम हैं न ए क्लास कान्ट्रेक्टर पार्टी की बिना सदस्यता लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता। अच्छा भैया राम-राम, जय समाजवाद, जय लोहिया, जय मुलायम।
पहिले मस्त हुआ था हाथी अब पस्त हो गया हाथी। पहिले पंचर हुई थी साइकिल अबकी मस्त हुई साइकिल। केवल दूल्हे बदल गए। नहीं बदले तो केवल बैण्ड बाजा बाराती। खबरीलाल चकित अचंभित खड़े के खड़े रह गये। एक ए क्लास कान्ट्रेक्टर लगभग उन्हें धकियाते हुए मंत्री जी से हाथ मिलाने लगा। पीछे से किसी दिलजले ने फिकरा कसा जेब में हो माल तो क्या कर लेगा खबरीलाल। दूसरे ने मंत्री जी की उतारी एक माला खबरीलाल के गले में डाल दी। जोर से बोला बोलो खबरीलाल की जय। बेचारे खबरीलाल झेंप गए। ज्ञान बांटने आए थे। बैराग्य हाथ लगा। झेंपकर मुंशी हरदिल अजीज और मियां झानझरोखे के साथ गेस्टहाउस की तरफ पैदल ही चल दिए।
मियां झान झरोखे और मुंशी हरदिल अजीज ने आंखों ही आंखों में एक दूसरे को जांचा परखा और नापातौला। खबरीलाल का लुटा पिटा अंदाज दोनो से देखा नहीं जा रहा था। माहौल को थोड़ा हल्का करने के लिए बड़ी नफासत के साथ बोले हां भाई खबरीलाल जी आज क्या है- मुलाहजा फर्मायें-
बे मुरब्बत बेवफा बेगान्ये दिल आप हैं,
आप माने या न माने मेरे कातिल आप हैं।
गैर से शिकवा है मुझको आपसे शिकवा नहीं,
जानता हूं दिल में रखने के काबिल आप हैं।
गम नहीं जो लाख तूफानों से टकराना पड़े,
जानता हूं मेरी इस कश्ती के साहिल आप हैं।
पस्त हुआ हाथी और मस्त हुई साइकिल
मुंशी हर दिल अजीज चार दिन से कन्नौज, तिर्वा, छिबरामऊ, गुरसहायगंज तथा उसके आस पास के इलाके में घूम रहे हैं। खबरीलाल से बिना किसी भूमिका के उनके कंधे पर हाथ रखकर बोले! देखा नजारा कैसा बदला हुआ है। भैया जी के इलाके से हाथी कैसे दुम दबाकर भागा। लोगों के गुंताड़े बाज नेताओं के सारे जोड़ घटाने धरे के धरे रह गये। कांग्रेसी युवराज के मिशन 2012 की जैसी दुर्दशा रायबरेली, सुल्तानपुर और अमेठी में हुई। उससे कम इस इलाके में भी नहीं हुई। चले थे दलबदलुओं अवसरवादी पूर्व नौकरशाहों की बैशाखी के बल पर भैया जी का किला फतह करने। जनता ने ऐसी टंगड़ी मारी कि पड़े हैं चारो खाने चित्त।
इत्र की नगरी, बीड़ी की नगरी, तिर्वा, सौरिख, छिबरामऊ का लंबा चौड़ा इलाका कभी जिनके लिए पलक पांवड़े बिछाये रहता था। सैफई के धोवीपाट दांव के विशेषज्ञ धरतीपुत्र जिनकी आंख से देखते थे। जिनके कानो से सुनते थे। जिनके नाम केन्द्रीय प्रांतीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों दिग्गजों को हराने का बहुत बड़ा रिकार्ड था। सायकिल छोड़ भाया हाथी हाथ पकड़ कर छिबरामऊ के मैदान में उतरे। लंगोटी छोड़ कर इज्जत के नाम पर कुल जमा छह हजार वोट ही हाथ आये। कप्तान का वेटा आईजी हो गया। हाथी का कोई साथी ही नहीं रहा।
खबरीलाल मियां से तिर्वा का अनुभव बांटते हुए बोले एक ही दल में रहते हुए जो बहादुर विजयी होते हुए दिगंवर वेषधारी के सामने बचाओ-बचाओ की गुहार किया करते थे। उन्होंने इस बार साइकिल की रफ्तार इतनी तूफानी कर दी कि हाथ लहूलुहान। हाथी भी इसी तूफान में निपट गया। कमल धारी भी कहां पीछे रहते। तीनों पर जबर पड़ी साइकिल।
दोनो बतियाते-बतियाते इत्र की नगरी, हर्षवर्धन की राजधानी कन्नौज, जयचन्द्र की नगरी कन्नौज मंदिरों मजारों ऐतिहासिक पौराणिक स्थलों गाथाओं के केन्द्र कन्नौज तक कई दिन बाद रुकते रुकते पहुंचे थे। बुरी तरह थके हुए थे। परन्तु इत्र की गुलाब जल की फुहार ने दोनो को पुनः तरो ताजा कर दिया।
कन्नौज में जहां देखो जहां तक देखो हर्ष और उल्लास का समंदर लहरा रहा था। हर ओर एक ही बात थी बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह। सादगी और ईमानदारी की मिसाल माने जाने वाले बिहारीलाल का बेटा लगातार तीसरी बार बड़ों-बड़ों को धकियाकर पछाड़ कर अपने पिता का नाम रोशन कर रहा था। मुरझाया कमल पस्त हाथी बेसहारा हाथ साइकिल की रफ्तार के आगे पूरी तरह बेबस और लाचार थे।
मियां झान झरोखे मुंशी और खबरीलाल के आने की खबर पर गेस्ट हाउस से तिर्वा क्रासिंग पर आ गये। उनके साथ होली की भंग तरंग में डूबे लोगों की लंबी जमात थी। सब आनंद सागर में गोते लगा रहे थे। लोहिया की जय और मुलायम की जय। बापू की जय और टीपू की जय। भैया की जय और भाभी की जय। खबरीलाल चौंके बापू और टीपू के बीच यह भाभी कहां आ गयीं! मुंशी बोले अनाड़ी के अनाड़ी रहे खबरीलाल। बनते हो बहुत तीस मारखां। इसे कहते हैं सेन्टीमेन्टल टच। सुना नहीं बड़े लड़इया कनवज वाले जिनकी मार सही न जाए। चुनाव में आई थीं दिल्ली की शीला ससुराल का वास्ता देकर अपने पुराने दुश्मन को सहारा देने। लोगों ने कहा नहीं तुम अपनी दिल्ली देखो कामनवेल्थ गेम देखो। यहां अब भैया और भाभी की चलेगी।
लंतरानियों में कनौजियों का कोई मुकाबला नहीं। भैया राजी हैं कि नहीं, भाभी तैयार हैं कि नहीं, सुहाग नगरी के बाद इत्र की नगरी में किस्मत अजमाने को। इस सबसे ऊपर धरती पुत्र अपने परिवार की प्रथम महिला को प्रथम सांसद बनने का गौरव प्रदान करेंगे। यह सब अभी निश्चित नहीं है। परन्तु कन्नौज के लोग हैं कि मानते ही नहीं। भैया की जय और भाभी की जय के नारे पूरे कन्नौज संसदीय क्षेत्र में गूंज रहे हैं। क्या टीपू का परिवार ताकत हिम्मत और विरासत में तूफानी रफ्तार से पहले से मैदान में जमे लोगों को उनकी औकात बताने जताने का मन बना चुका है। मियां झान झरोखे बोले आगे आगे देखिए होता क्या।
कितना बदल गया समाजवाद!
आज संसद से लेकर बाहर तक अन्ना की धूम है। 23 मार्च को लोहिया जन्म तिथि पर समाजवाद के पुरोधा डा0 लोहिया की शान में कसीदे पढ़े गए। उनके रास्ते पर चलने की कसमें खाईं गयीं। अन्ना को पानी पी पी कर कोसने वालों के लिए केवल एक बात उनकी आलोचना करने से पहिले उनकी जैसी सादगी और ईमानदारी सार्वजनिक जीवन में दिखाइए- निश्चय ही यह कार्य बहुत आसान नहीं है। विशेषकर उन लोगों के लिए जो अपने आपको राजनीति का बेजोड़ खिलाड़ी मानते हैं। वह सांसदों जनप्रतिनिधियों की रंचमात्र आलोचना से इतने बिचलित हो जाते हैं कि कुछ मत पूछो। उन्हें लगता है कि सड़े फलों को गिराने के लिए लोकतंत्र के पेड़ को हिलाने से पेड़ ही गिर जाएगा। यह सोच उन लोगों की है जो मतदान के कम प्रतिशत और वोटों के बंटवारे के कारण बहुत कम वोट पाकर भी जीत जाते हैं।
परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। लोकतंत्र के पेड़ को हिलाने से गिराने का खतरा तब तक नहीं है जब तक लोकतंत्र की जड़ों को निष्पक्ष और निर्भीक होकर अधिकतम मतदान से सींचा जाता रहेगा। यही अन्ना हजारे का समाजवाद है। आइए अब डा0 लोहिया की बात करते हैं। समाजवादी इन्हें अपना प्रेरणा पुरुष मानते हैं। जनेश्वर मिश्र को पुराने समाजवादी प्रेम और श्रद्धा से छोटे लोहिया कहते हैं। पूरे जिले में घूम आइए डा0 लोहिया की कर्मभूमि कहे जाने वाले इस जिले में हाई कमान की सख्त चेतावनी के बाद भी लाखों रुपयों की होर्डिंगों और अखबारी विज्ञापनों में कहीं भी डा0 लोहिया और जनेश्वर जी का फोटो और नाम ढूंढे से भी नहीं मिलेगा। स्थानीय विधायक और राज्यमंत्री के आधा दर्जन लालबत्ती सहित सैकड़ों गाड़ियों के काफिले का जगह-जगह कन्नौज से कंपिल तक शानदार स्वागत हुआ। परन्तु मंत्री जी को आवास विकास स्थित पार्टी कार्यालय और उसी के पास स्थित लोहिया मूर्ति पर दो फूल चढ़ाने का अवकाश नहीं मिला। जबकि बकौल राज्य मंत्री जी उनके स्वर्गीय पिता जी सबसे पुराने समाजवादी थे।
मई 1963 में डा0 लोहिया फर्रुखाबाद से चुनाव लड़े थे। इन पचास वर्षों में डा0 लोहिया की कर्मभूमि में समाजवाद कितना बदल गया। आइए उसकी बानगी देखिए। उस समय घटियाघाट पर गंगा का पुल नहीं था। डा0 लोहिया नाव से राजेपुर जाते थे। बैलगाड़ी से गावों में वोट मांगते थे। जनसम्पर्क करते थे। वह दिल्ली से पैसेंजर गाड़ी से फर्रुखाबाद आते थे। रामस्वरूप विरोधी रिक्शा चालक, छविराम पान वाले, मुकुट सिंह किसान, श्याम गुप्ता, शमीम भाई, जगवंत सिंह कटियार चट्टान प्रेस वाले, राजनरायन दुबे, सतीश कटियार, बागीशनंदन पाण्डेय जैसे स्थानीय कार्यकर्ता पुरानी जीप का इंतजाम करते और उन्हें डाक बंगले ले जाते। जीप न होने पर वह तांगे में बैठकर डाक बंगले चले जाते थे। डा0 लोहिया में सादगी और नेताओं में समर्पण था। डा0 लोहिया ने एक बहुत बड़े पूंजीपति के यहां चाय पर जाने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि वह विचारधारा के कारण नहीं सजातीयता के आधार पर निमंत्रण दे रहे थे।
डा0 लोहिया कार्यकर्ताओं के साथ बैठते थे। विभिन्न विषयों पर बिना किसी तल्खी के दिल खोलकर बहस होती थी। छोटे बड़े का लिहाज और सम्मान था लेकिन थे सब बराबर। इसी माहौल के बल पर डा0 लोहिया ने मई 1963 के उपचुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी को पराजित कर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल का गरूर तोड़ा।
इस बार लोहिया जयंती पर समाजवादियों में बड़ी वेश कीमती गाड़ियों पर पार्टी का झंडा लगाने को लेकर बहस हो रही है। होर्डिंग विज्ञापन के लिए युद्ध चल रहा है। इन होर्डिंगों पर डा0 लोहिया और जनेश्वर मिश्रा तो गायब हैं ही कार्यकर्ता भी गायब हैं। सभी जगह नेता पुत्र, वरिष्ठ नेता और ए क्लास कान्ट्रेक्टर पूरी ठसक और अकड़ के साथ विराजमान हैं। स्वागत समारोहों की धूम है। अन्ना हताश नहीं हैं डा0 लोहिया भी कभी लाचार नहीं रहे। उन्हें विरोधाभासों पाखंड दिखावा और अपने सिद्धान्तों की रक्षा के लिए चट्टानों से टकराने में मजा आता था। पर आप लोग स्वागत अभिनंदन की आड़ में जो कुछ मांग रहे हैं मंत्री जी किसी बात के लिए इनकार नहीं कर रहे हैं। केवल कहना ही तो है कहने में क्या हर्ज है। सही कहा है आ रहा है समाजवाद पवन वेग से। एक बड़े समाजवादी नेता हवाई जहाज से एक बहुत बड़े पत्रकार के साथ दिल्ली गए। पांच सितारा होटल में डिनर लिया। दो घंटे बाद हवाई जहाज से ही लखनऊ वापस आए। इस बीच नेता जी का इंटरव्यू हो गया। है न सच्चा समाजवाद। अब आपके मिर्ची लगती है लगती रहे। सही कहा है-
अपनी अगराज किसी से कभी कहकर देखो,
फिर उसके बाद उसके बदलते हुए तेवर देखो।
और अंत में……………………….कहां गए चौकीदारों, सेवकों, तीमारदारों!
चुनाव नतीजे आए धीरे-धीरे एक माह के लगभग होने जा रहा है। वक्त न रुकता है न किसी का इन्तजार करता है। सबसे पहले दलितों की मसीहा कुंवारी बहिन मायावती जी। इधर लखनऊ पर साइकिल की सवारी हुई। आनन फानन में दिल्ली का टिकट कटाया। चला भैया यहां के लोग बड़े बेमुरब्बत हैं। इनके लिए चाहे प्राण दे दो एहसान नहीं मानते। हमारी क्या गर्ज है। अब हमारी कीमती शानदार जानदार मूर्तियों की देखभाल करो और साइकिल वालों का गुन्डाराज झेलो।
अब आइए राष्ट्रीय युवराज- हमें सीटे चाहें दो मिलें या दौ सौ। हम यूपी छोड़कर जायेंगे नहीं। बम्बई में भीख मांगने भी नहीं। वहां तो पहिले ही पिट चुके हैं। यूपी में ही रहेंगे इसे खड़ा करेंगे। आपके घर आयेंगे रहेंगे खाना खायेंगे और डकार लेंगे और जाने क्या-क्या करेंगे परन्तु रहेंगे आपके साथ। हमारा तुम्हारा जनम-जनम का साथ है। होली हो गई, नवरात्र हो गए। पूरी की पूरी यूपी हाथ में रंग गुलाल और नारियल प्रसाद लिए खड़ी रही। वे नहीं आए उन्हें आना ही नहीं था। आते रहते या यहीं बने रहते तो यह दुर्दशा काहे होती।
मैं साध्वी हूं भारती हूं गंगा अभियान हूं मध्य प्रदेश को तार दिया अब यूपी को तार दूंगी। नेता बनकर नहीं चौकीदार बनकर आपकी हिफाजत करेंगी, सेवा करेंगी। यूपी तो छोड़ो जब से कमल पर बैठक लक्ष्मी नहीं आई यूपी तो यूपी पार्टी विधायकों की बैठक में भी नहीं आईं। पूछा तो बोली यहां जनता है ही ऐसी। मेरी जैसी फायर ब्रांड रामभक्त साध्वी की बात पर भरोसा नहीं किया। अब मुझे क्या पड़ी है जो मैं बेमतलब तुम्हारे लिए गुंडाराज्य के झंडा बरदारों से टक्कर लूं।
अमर सिंह जी, जयप्रदा जी, शरद यादव जी, रामविलास पासवान जी, कल्याण सिंह जी, और जाने कौन-कौन जी, महज दल जी, कुर्वान दल जी, हलचल दल जी, सलमान जी, बेनी जी, बब्बर जी, अजहरुद्दीन जी, नगमा जी, शीला जी, दिगंबर जी, शोभायमान जी सबसे ऊपर यशसर जी, सर जी, थेंक्यू सर जी, कहां तक गिनाऊं सबके सब सर जी चुनाव में जनता ने मान नहीं दिया। सबके सब ऐसे नदारद हुए जैसे गदमराज के सर से सींग।
बताओ यह भी कोई बात है। वह मुलायम सिंह का कल का छोरा ऐसी मुरली बजाई ऐसी सायकिल चलाई कि हम सबके कपड़े उतार कर कदंब की डाल पर जाकर बैठा मुस्करा रहा है। ताल ठोंक रहा है। हिम्मत है तो आओ यूपी की सेवा करने। हमें क्या पड़ी है इतनी फजीहत के बाद अपनी ऐसी तैसी कराने की। रही जनता उसका क्या-
तुम्हें गैरों से कब फुरसत,
हम अपने गम से कब खाली।
चलो फिर हो गया मिलना,
न तुम खाली न हम खाली।
बस आज कुछ ज्यादा हो गया- फिर मिलेंगे- जवाहर सिंह गंगवार के शिला लेख और फर्रुखाबाद में संतोष भारतीय की धमाकेदार गब्बर सिंह स्टाइल इंट्री के साथ। जय हिन्द!
-सतीश दीक्षित