शहीदों के स्मारक पर झाड़ू लगाने तक को जेल प्रशासन के पास कर्मचारी नहीं

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फर्रुखाबादः बंदी सुधार गृह फतेहगढ़ (सेन्ट्रल जेल) के कैम्पस में बनाये गये दो स्वतंत्रता संग्राम शहीद स्मारकों पर जेल प्रशासन महीनों क्या वर्षों झाड़ू तक लगवाना मुनासिब नहीं समझता। जेल परिसर में बने स्मारकों पर प्रति वर्ष अधिकारी हजारों रुपये कागजों में खर्च दिखाकर अपनी जेबें गरम करने में लगे रहते हैं।

20 जून को केन्द्रीय कारागार में बने शहीद मणीन्द्र नाथ बनर्जी के स्मारक पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का कार्यक्रम जेल प्रशासन की तरफ से आयोजित किया जाता है। जिस कार्यक्रम में जिलाधिकारी से लेकर छोटे कर्मचारी तक व राजनीतिक लोगों के अलावा जनपद व अन्य जिलों के वयोवृद्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हिस्सा लेते हैं। पिछले 20 जून को हुए कार्यक्रम में वर्तमान जेल अधीक्षक यादवेन्द्र शुक्ला ने स्वतंत्रा संग्राम सेनानियों व मणीन्द्रनाथ बनर्जी के लिए कई कसीदे पढ़े।

लेकिन कार्यक्रम की कुर्सियां सिमटने के साथ ही जेल प्रशासन ने दोबारा स्मारक की तरफ पलटकर नहीं देखा। यह वही मणीन्द्रनाथ बनर्जी हैं जो स्वतंत्रा आंदोलन के समय केन्द्रीय कारागार में सजा काटने आये थे आैर वह यहीं शहीद हो गये थे।

लेकिन यह दिखावा जेल प्रशासन सिर्फ इन स्मारकों के सुन्दरीकरण व कार्यक्रम आयोजन के लिए आये पैसों को हड़पने के लिए ही शायद आयोजित कराता है। जनपद क्या पूरे देश में मात्र गिने चुने स्वतंत्रा संग्राम सेनानी ही रह गये हैं। न उन आदर्श क्रांतिकारियों को कानों से सुनाई देता है और न दिखायी। जिसका फायदा बखूबी अधिकारी उठा रहे हैं। पूरे वर्ष स्मारक पर न तो जेल का कोई सफाई कर्मचारी झाड़ू लगाने आता है और न ही स्मारक की कोई हिफाजत करता है।

जिसका फायदा चोरों को बखूबी मिला। स्मारक में लगायी गयीं लाखों रुपये की लोहे की जंजीरें। कीमती ईंटें, संगमरमर पत्थर तक चोरों व अराजक तत्वों ने गायब कर दिये। लेकिन इसके बावजूद भी जेल प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंगीं।

इस शहीद स्मारक का निर्माण 15 जून 1985 को तत्कालीन कारागार महानिदेशक वृहस्पति शर्मा, उप कारागार महानिरीक्षक उदित सिंह, जेल अधीक्षक एच पी यादव के द्वारा कराया गया था। जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिख दिया गया कि फानूस बनकर जिनकी हिफाजत हवा करे वह शमां क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करे। इस नारे पर कायम यह शहीद स्मारक जेल अधिकारियों की लापरवाही और अनदेखी की कहानी कह रहा है। स्मारक में बना तालाब कभी देखने लायक था। जिसमें सुबह प्रति दिन कमल के फूल अपनी छटा बिखेरते थे। लेकिन अब वह भी सूख गया है।