फर्रुखाबादः बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि अखिलेश यादव की तरह ही केन्द्रीय विधि मंत्री सलमान खुर्शीद का घरेलू नाम भी टीपू है। सलमान खुर्शीद जब 1989 में लोकसभा का चुनाव पहली बार लड़े और हारे तब अखिलेश केवल 23 वर्ष के थे। अखिलेश जब पढ़ रहे थे तब सलमान खुर्शीद केन्द्रीय मंत्री थे। सलमान के पुरखे खान बहादुर थे। अखिलेश के पुरखे बहुत साधारण किसान थे। एक बार चुनाव जीतने के बाद सलमान खुर्शीद को जीतने के लिए 14 वर्ष का इंतजार करना पड़ा। अब अखिलेश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और सलमान खुर्शीद केन्द्रीय विधि मंत्री। यहां तक तो सब ठीक-ठाक है परन्तु आज सैफई के टीपू देश के सबसे बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। वहीं सलमान खुर्शीद की पत्नी फर्रुखाबाद सदर विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़कर जमानत गवांकर पांचवें स्थान पर हैं। इस चुनाव में क्या-क्या खेल हुए इसकी जानकारी एकत्र की जा रही, बाद में विस्तार से चर्चा होगी। परन्तु दीवार पर साफ लिखा है सुधारो या हटो। जनता को, मतदाता को समझो, जानो और उससे बराबर ईमानदारी भरा संवाद रखो। नही ंतो अर्श से फर्श पर आते देर नहीं लगेगी।
टीपू बने सुल्तान और राहुल हुए हलकान
लगभग छह माह के बाद होली के रंगों भरे त्यौहार से पूर्व छह मार्च को सायंकाल छह बजे मुंशी हरदिल अजीज त्रिपौलिया चौक की पटिया पर जमकर बैठ गए। चुनावी नतीजों के सार्वजनिक हो जाने के बाद चौक पर चहल पहल काफी बढ़ गई थी।
मुन्शी कुछ बोल नहीं पा रहे थे। कांग्रेस की दुर्दश पर जार-जार हो रहे थे। परिचित लोगों ने ढांढस बंधाया तो फफक कर रो पड़े। काफी देर बाद बोले क्या हमारे पुरखों ने इसी दिन के लिए अंग्रेजों के विरुद्व आजादी की लड़ाई में संघर्ष किया था। लाठियां खाईं थीं, यातनायें सहीं थीं। अपनी जवानी जेलों में गुजारी थी। तब के मौलाना अब्दुल कलाम आजाद और आज के सलमान खुर्शीद, तबके सरदार बल्लभ भाई पटेल और आज के बेनी प्रसाद वर्मा, तब के जमुनालाल बजाज और आज के श्री प्रकाश जायसवाल। किसका-किसका नाम गिनायें, सर शर्म से झुका जा रहा है। यह कहते-कहते मुन्शी फिर जोर से रोने लगे।
इसी बीच जाने कहां से मियां झानझरोखे भी आ टपके। मियां झानझरोखे मुन्शी हरदिल अजीज का कंधा झकझोरते हुए बोले। यह स्यापा क्यों कर रहे हो। जो बोओगे वही तो काटोगे। कांग्रेस के वर्तमान पिद्वी नेताओं के साथ देश के महान नेताओं के नाम न जोड़ो, उन्हें कष्ट पहुंचेगा। देश और कांग्रेस की दशा देखकर मजबूर होकर सोचना पड़ता है। आज देश में सरकार में बड़े-बड़े पदो पर बहुत ही छोटे लोग बैठे हुए हैं। इन्हें देश समाज और अपनी पार्टी के मान सम्मान की कोई चिन्ता नहीं है। चिन्ता है तो केवल अपने तुच्छ स्वार्थों की और येन केन प्रकारेण उनको पूरा करने की। मियां को देख मुन्शी की हिल्की भर आई। दोनों एक दूसरे से त्रिपौलिया चौक के विख्यात भरत मिलाप की तरह बहुत देर तक गले मिलते रहे।
इस बीच चौक पर भीड़ भाड़ बहुत बढ़ चुकी थी। मुंशी हर दिल अजीज और मियां झान झरोखे के साथ लोहाई रोड की तरफ से आकर मिस्टर खबरीलाल भी खड़े हो गये। खबरीलाल तो खबरीलाल ठहरे। गंगा गए तो गंगादास, जमुना गये तो जमुनादास। काउंटिंग तक में जिस राउन्ड में जो आगे निकला उसी की जय-जयकार का उनका नुस्खा पूरे शहर में लोगों को मालूम है। मुंशी और मियां दोनो के कंधों पर हाथ रखकर बोले फिकरनाट बादशाहों जो हुआ ठीक हुआ। जो होगा वह भी ठीक ही होगा। हम लोग आखिर कर भी क्या सकते हैं। हार जीत तो सब कुछ शादी व्याह की तरह ऊपर वाले ने लिख रखी है। अब जो जीत गया है उसकी मक्खन मालिश करो, हाजिरी लगाओ, कुछ पा जाओगे। जो हार गए हैं उनकी गली का रास्ता भी भूल जाओ। घूमते घामते सामने पड़ भी जाये तो अनजानों की तर्ज पर खींसें निपोर कर पल्ला झाड़ लो। पता नहीं कब दिल जले होली मिलने के बहाने कान में हंसते हुए फुस फुसाने लगें कि रुपये और दारू के पैसे लेने कब आयें।
खबरीलाल का यह कहना भर था कि मुंशी और मियां दोनों के दोनों उन पर राशन पानी लेकर पिल पड़े। बोले चुपकर ज्यादा बोले तो तुम्हारी खैर नहीं। तुम्हारे जैसे लोग ही तो सबको कलंकित करते हैं। सही सही बताना अपना वोट डाला या खबरीलाल घिंघियाते हाथ जोड़ते बोले नहीं। मुन्शी इतने पर आपा खो बैठे। बोले अब वक वक मत कर तुमतो बड़े तीस मार खां बनते हो, बन गये न पप्पू नम्बर तीन। इस बार लोहिया की कर्मभूमि पर जिला मुख्यालय पर जिन्होंने झूम कर वोट डाला उन्होंने देश और समाज के साथ बहुत बड़ा उपकार किया है। लेकिन जिन्होंने वोट नहीं डाला उनकी लंबी जमात की इस कारस्तानी पर दयाराम शाक्य, रामकिशन सारस्वत, विमल तिवारी, ब्रहृमदत्त द्विवेदी, प्रभा द्विवेदी, लाल बहादुर शाक्य जैसे दिवंगत नेताओं और महरम सिंह जैसे हम लोगों के बीच मौजूद वयोवृद्व जन प्रतिनिधियों पर क्या गुजर रही होगी। मियां बोले अब बस भी करो मुन्शी। सारा गुस्सा इस पर मत उतारो- यहां शहर में इनसे बड़े-बड़े खलीफा बैठे हैं। मियां की इस बात पर आस पास खड़े लोग भी कहने लगे ठीक है ठीक ह ैअब बस करो। कल से होली की छुट्टी है लिहाजा इनकी छुट्टी करो और इन्हें सुधरने का मौका दो।
मुंशी बोले सब कुछ भूल जाने और आगे की सुध लेने का हमारा अंदाज पुराना है। पर अब लोगों को यह सुहाता नहीं है। इस बार जो नए नौजवान नेता बने हैं मतदाता बने हैं। उनमें जल्दी-जल्दी से सब कुछ करने का हौसला है, जज्बा है। उस सबसे ऊपर हर बात की पक्की जानकारी है। कमी है तो केवल इतनी कि कुछ लोगों ने कुछ सीखने की कोशिस नहीं की। हिन्दुस्तान में नेहरू गांधी खानदान सबसे ताकतवर माना जाता है। आजादी की लड़ाई में लंबा और शानदार योगदान। देश को तीन-तीन प्रधानमंत्री देने वाला खानदान। हमारी पीढ़ी यह सुनकर बढ़ी हुई है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के कपड़े लंदन में सिलते थे और पेरिस में धुलते थे। सेक्यूलर और डेमोक्रेट घराना और जाने क्या-क्या। झाड़ी को ताड़ बनाने की कारीगरी के हम लोग उस्ताद हैं। परन्तु ऐसे खानदान का युवराज यह नहीं जान पाया कि गांव के गरीब किसान मजदूर दलित की वास्तविक हालत क्या है। इसे जानने के लिए युवराज को दलितों, गरीबों की झोपड़ियों में रात गुजारनी पड़ी। उस दलित गरीब को होने वाली असुविधओं का ध्यान रखे बिना। मियां बोले ध्यान रखिए आज के युग में मीडिया बहुत ताकतवर है। परन्तु यही मीडिया जब आपके छींकने, खांसने, उठने, बैठने, परचा फाड़ने, बाहें चढ़ाने, बहन बहनोई, भांजे, भांजियों को खबर बनाकर परासने लगता है। तब अपनी बदहाली बेबसी, लाचारी और आपके ठाट वाट सुख सुविधाओं को देखकर लोगों का गुस्सा बढ़ने लगता है। किसी को यह मुगालता हो जाये या स्वार्थी सलाहकारों द्वारा करवा दिया जाए कि आप सर्वशक्तिमान हैं। आपके लाव लश्कर सुरक्षा कवच के बीच आपसे कुछ कह तो नहीं सकते। परन्तु मतदान में आपके विरोध में उन्हें बटन दबाने से कौन रोक सकता है। उत्तर पदेश के विधानसभा चुनाव का यही सबसे बड़ा सच है। आप इसे आत्मसात करें या न करें यह आपकी मर्जी। मियां कहते जा रहे थे और मुंशी हरदिल अजीज अच्छे श्रोता बने सुनते जा रहे थे।
मियां झानझरोखे बोले मुलायम सिंह यादव के परिवारी जन और निकट सहयोगी कल तक अखिलेश को घरेलू नाम टीपू से बुलाकर अपनी नजदीकियों का आभास देते थे। आज उन्हें मुख्यमंत्री जी कहकर गौरवान्वित होंगे। विदेश में शिक्षा हेतु जाने वाले टीपू मुलायम सिंह यादव परिवार के पहले सदस्य हैं। नेहरू गांधी परिवार का तो लगभग हर सदस्य विदेशों में रचा वसा और पढ़ा लिखा है। सच कहें तो अखिलेश भारत हैं और राहुल इण्डिया। भारत ने इण्डिया में संेध लगाई। परन्तु इण्डिया भारत में घूमा भी अपने अहंकारी स्वार्थी सलाहकारों के साथ जिन्हें केवल और केवल अपने निजी स्वार्थों को ही पूरा करना था। हवाई जहाज हैलीकाप्टर से उड़कर भारत में पहुंचाना मंच पर गाड़ी के बाइपर की तरह हाथ हिलाना, बाहें चढ़ाना लिखा हुआ भाषण पढ़ना और उठो जागो बढ़ो का उद्घोष करके हवा में उड़ जाना। यह दर्श और प्रदर्शन लोगों को भाये नहीं। अगर भाये और सुहाये तब फिर राहुलगांधी की भव्य विराट जनसभा सारी चुनावी कारनामों के बाद भी केन्द्रीय विधि मंत्री की पत्नी श्रीमती लुईस जमानत गवाकर पांचवें नम्बर पर न रहतीं। नतीजन राहुलगांधी इण्डिया ही बने रहे और भारत को आत्मसात नहीं कर सके। दूसरी ओर सैफई का टीपू उत्तर प्रदेश का सुल्तान बन गया तथा प्रदेश के सबसे बड़े सूबे का मुख्यमंत्री बनकर भारत और इण्डिया के भेद को मिटाकर युवाओं के सहयोग से नये इतिहास को लिखने की भूमिका बना रहा है।
मियां और मुंशी बोले अब मौका दोनो के सामने बराबर का है। अखिलेश के लिए मौका है चुनावी घोषणाओं और वायदों को पूरा करने का, राहुल के सामने मौका है हारने जीतने से बेपरवाह होकर यूपी में बराबर आते रहने की चुनावी घोषणाओं को पूरा करने का। इसलिए दोनो नौजवानों को बिना मांगे मेरी नेक सलाह है, मानना न मानना आप दोनो की मर्जी।
बेबजह बोझ कोई दिल पे न भारी रखिये
जिंदगी जंग है इस जंग को जारी रखिये।
और अंत में …………………………..
होली पर सोमरस की बहार में टुन्न एक सक्रिय राजनैतिक कार्यकर्ता ने कहा- हमें अच्छे लगते हैं राहुल भैया। परन्तु उन्हें जो कुछ जानकारी मिलती है वह टेलीविजन या निजी स्वार्थों से सने नेताओं से। फिर झूमते हुए बोला, दूसरी ओर हमारे अखिलेश भैया हैं जो जानते हैं कि हाथी के जमाने में शाम की दवाई की कीमत बढ़ गयी है। उन्हें हमारी समस्या की चिंता है। पीना बुरा नहीं, पीकर बहकाना बुरा है। वादा करते हैं वहकेंगे नहीं। शाम वाली दवाई के दाम कम कराइए। हम हर चुनाव में आपका उत्साह वर्धन करते रहेंगे। जय हिन्द!
सतीश दीक्षित “एडवोकेट”