Friday, December 27, 2024
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क्या यही चौकड़ी डुबोएगी सलमान की भी लुटिया

फर्रुखाबाद, विधान सभा चुनाव ने २०१४ में होने वाले लोक सभा चुनाव के लिए कम से कम कांग्रेस की आँखें खोल दी हैं। १४ साल बाद २००९ में कांग्रेस ने फर्रुखाबाद सीट जीतकर इसे अपनी बड़ी उपलब्धि माना था। लेकिन विधान सभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी हैं की सलमान खुर्शीद की जीत को यह न मान लिया जाए की फर्रुखाबाद में कांग्रेस की कोई जमीन मजबूत हुई है। माना जा रहा है कि लुईस खुर्शीद ने इसीलिए कल से ही सलमान खुर्शीद के लिए चुनाव प्रचार शुरू करने का ऐलान कर दिया है। पर यदि यही चौकड़ी सक्रिय रही ता सलमान का भी चुनाव खतरे में पड़ सकता है।

कांग्रेस प्रदेश भर में अपना संगठन न होने का रोना रो रही है। इस हालत में पहुँचने के बाद कांग्रेस के लिए उधर अंगुली उठाना लाजिमी भी है। पर कांग्रेस यह याद क्यों नहीं दिलाती राहुल गाँधी के निर्देशन में एक एन जी ओ ने नाटकीय ढंग से संगठनात्मक चुनाव कराये थे। लग रहा था कि लोकतान्त्रिक ढंग से चुन कर संगठन में आये युवा संगठन में कोई क्रांती लादेंगे। लेकिन युवा कांग्रेस के चुने गए पदाधिकारी उतना आच्छा  काम भी नहीं कर पाए जितना मनोनीत पदाधिकारी कर लेते हैं। चुनाव में तो अंगुली पर गिने जाने वाले युवा पदाधिकारी कहीं मोर्चा लेते नहीं दिखे। संगठन का राहुल फार्मूला यहां फ्लाप हो गया। जिन लोगों ने एनजीओ के कर्मचारी बनकर चुनाव करबाए वे भी अपने में कंग्रेसियत नहीं भर पाए। जो कांग्रेसी जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं उनसे आशीर्वाद से अधिक उम्मीद भी  क्या की जा सकती है। लुईस ने उन्हें कई बार सम्मानित कर आशीर्वाद लेने का अवसर भी नहीं गंवाया। लेकिन नए लोगों को जोड़ने का काम तो युवा कांग्रेस  करेगी। लेकिन युवा कांग्रेस तो कुछ कर ही नहीं रही है। एनएसयुआई वाले भी कहीं आन्दोलन करते नहीं दिखती।

बार बार हार के चुनाव नतीजे बताते हैं की बेशक सलमान  खुर्शीद बहुत अच्छे नेता हैं लेकिन वह फर्रुखाबाद की राजनीती में फिट नहीं बैठ रहे हैं। उनके आस- पास भी कुछ नेताओं की चौकड़ी है जो केवल सलमान खुर्शीद के साथ अपना फोटो खिंचवाकर दिल्ली के व्यापारियों के आगे अपना झंडा बुलंद कर लेते  हैं। उन्हें इससे ज्यादा कुछ और चाहिये भी नहीं है। उनका काम सलमान के नाम से चलता रहता है। सच में यह गिने चुने लोग सलमान और नए जुड़ने वाले लोगों के बीच बैरियर बन जाते हैं। वही प्रतिनिधि सलमान  या लुईस को कुछ मिनटों के लिए भी अकेला नहीं छोड़ते ताकि कोई सलमान को कुछ बता सके। यहाँ तक की प्रेस कांफ्रेंस तक में कांग्रेसी सलमान या लुईस को अकेला नहीं छोड़ते। कोई सलमान खुर्शीद को कुछ बताना भी चाहे तो कब बताये।

सलमान खेमे में दल- बदल कर आये लोग कितनी जल्दी विश्वास अर्जित कर लेते हैं यह किसी से छिपा नहीं है। गणेश परिक्रमा यहाँ भी पसंद की जाती है। एक पूर्व विधायक के पुत्र मीटिंगों में लुईस पर फूल की पंखुडियां डालकर है नजदीकी बन गए। व्यपार मंडल के एक नेता भी चुनाव में कांग्रेस में आये और सबसे आगे खड़े होने लगे। एक युवा नेता लोक सभा चुनाव में कांग्रेस में आये और मीडिया के अलमबरदार बन गए। पूरे चुनाव उनका मोबाईल काल डायवर्ट पर ही लगा रहा। कुछ अख़बारों में उन्हें वरिष्ठ नेता लिखा जाता है। कुछ नेताओं ने चुनाव में अपनी गाड़ियों को किराये पर उठाकर जेब भरी और मंच से भाषण भी देते रहे। जिला कांग्रेस के एक पूर्व अध्यक्ष भोजपुर से टिकट मांगने के दौरान तो बहुत खास बने दीखते थे बाद में केवल एक मीटिंग में भाषण देने आये। एक स्कूल के मनेजर भी टिकट न मिलने के बाद सलमान में कमियां निकलते दिखे। लोग सलमान के कुछ वैतनिक कर्मचारियों को भी पसंद नहीं करते पर मजबूरन उन्हें सलाम बजाना पड़ता है। अगर सलमान परिवार को फर्रुखाबाद से राजनीती करनी है तो उन्हें देखना पड़ेगा की फर्रुखाबाद के लोग क्या चाहते हैं।

अब चुनाव में बूथ बार परिणाम आ गया है तो कांग्रेस क्यों न उन नेताओं के पास- पडोश की क्षमता देखे की वे सब संसाधन होने पर भी कांग्रेस को कितने वोट दिला पाए। अगर वे पास- पडोश में पसंद नहीं किये जाते तो उन्हें साईड लाईन  में डालने में ही भलाई है। केवल चुनाव में ही क्यों माननीय मंत्री जी की हर ईद, होली और दीवाली फर्रुखाबाद में अपनों के बीच क्यों न हो।

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