Friday, January 10, 2025
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पर्दा-बेपर्दा : चुनाव प्रचार में मठाधीशो का खेल और दुआओं की भी कीमत

फर्रुखाबाद : चुनाव में किस मठाधीश का कितना करिश्मा चला यह 6 मार्च को काउंटिंग के बाद बूथ का रिकार्ड देखकर पता चल जायेगा| राज ये भी खुलेगा कि जिसकी बूथ में नहीं चलती उसने पूरी कौम का ठेका ले रखा था| ये मठाधीश चुनाव में सियासी हो गए और मीडिया की रौशनी से भी बचते रहे| ऐसे लोगों को बेपर्दा करना जरूरी भी है जो बहुत बड़े आदर्शवादी बनते हैं और परदे के पीछे क्या- क्या गुल खिलाते हैं| वैसे जब जनाब सियासी खेल में शामिल होने का शौक पाल सकते है तो परदे में कैसा रहना| मीडिया में आने में हिचक नहीं भी होनी चहिये।


इस मामले में कारी मुख़्तार आलम कादरी मिसाल हो सकते हैं। जो सीरत कमेटी के सदर रहे। मजहबी जलसों में बतौर आलिम तक़रीर भी करते हैं लेकिन बहिन जी का नीला रंग भा गया तो छिपना-छिपाना भी क्या…! पहले विधायक ताहिर हुसैन के लिए दुआएं कीं और फिर उमर साहब के लिए।  कारी साहब उन  लोगों से बहुत अच्छे  हैं जो नाक पर मक्खी नहीं बैठने देते और माल हर पार्टी का डकार जाते हैं।

चुनाव प्रचार के दौरान की बात हैं एक निर्दलीय उम्मीदवार के बारे में खबर मिली की वह एक मदरसे में एक ऐसे ही मठाधीश से मिलने गए हैं| मीडिया के लोग निर्दलीय उम्मीदवार से मिलने पहुंचे तो मठाधीश ने कैमरा देखते ही मुह बनाया, बोले कैमरा इधर न घुमाना नहीं तो दूसरे लोग नींद हराम कर देंगे।

मठाधीश महोदय अपने मदरसे के बच्चों और अध्यापकों के साथ निर्दलीय उम्मीदवार से “वजन” के साथ बात कर रहे थे| खास बात ये कि उनके आस पास जो 15-20 लोगो की भीड़ थी उनमे मोहल्ले का एक भी मतदाता नहीं था। बाद में इन साहब की एक बसपा प्रत्याशी और एक केन्द्रीय मंत्री से मुलाकात भी चर्चा में रही| मतदान से पहले वाली रात तक जो-जो हुआ वह तो कोई चतुर सियासी शख्स भी नहीं करता।

हाजी दिलदार हुसैन, हाजी मुजफ्फर हुसैन रहमानी और हाजी मोहम्मद अहमद अंसारी ही नहीं सभासद आशु खान, रफ़ी अंसारी, असलम अंसारी. सभासद पुत्र लाईक खान और इज़हार कुरैशी ने परदे में कुछ नहीं रखा| वे बसपा के साथ थे तो थे। हकीकत में साल भर यही नाम मुस्लिम सियासत में सक्रिय दीखते हैं। पर मठाधीशों की भूमिका में जो ज्यादातर थे वे लोग जो मजहबी तो हैं पर सियासी नहीं। जलसों में वे तक़रीर तो अच्छी करते हैं पर लोग सियासी फैसले उनसे पूछकर नहीं करते और सियासी दखल भी नहीं मानते। यह अलग बात है कि लोग उन्हें तबज्जो देते हैं और चुनाव में उनकी चौखट पर हाजिरी देते हैं और इसी वजह से शायद उन्हें ठेका लेते देर नहीं लगती।

ऐसे एक मठाधीश तो बहुत पहले एक बार सपा के लिए बूथ- बूथ घूमे। इससे उनका मामला ख़राब भी हुआ। इस चुनाव में उनके यहाँ हाई प्रोफाईल नेता सहित उन सभी उम्मीदवारों ने हाजिरी दी जो मुस्लिम वोटों पर चुनाव लड़ रहे थे। एक मठाधीश एक दरगाह से जुड़े हैं| हर चुनाव में उनकी दरगाह पर उम्मीदवारों की रौनक रहती है। माल भी आता है। इस बार बेचारे उदास थे। नेता उनके यहाँ गए पर माल देकर नहीं आये।  उदास मन से बोले इस बार तो दरगाह की गोलक में केवल 400 रुपये निकले| कोई कुछ देकर नहीं गया। अब फ्री में तो दुआ होती नहीं।

एक दूसरी दरगाह पर इस बार उम्मीदवारों की चहल कदमी कम रही। राजनीति के कुछ और राज भी सिलसिलेबार बेपर्दा होंगे। यह जानना जरूरी है कि जो लोग झूठ न बोलने और चाल-फरेब न करने की खूब ताकीद करते हैं वे चुनाव में हर तरह के खेल करते रहे और दूध के धुले भी बनने की कोशिश करते रहे|

मीडिया में नाम आते ही बौखला गए एक मौलाना साहब
चुनाव प्रचार शबाब पर चल रहा था| कौन किसके साथ है इसी सुर्खियाँ मीडिया में छपने लगी थी कि एक दिन हाथी वाले उम्मीदवार ने मीडिया को फलां मौलाना के अपने साथ होने की खबर मीडिया में रिलीज करा दी| बस फिर क्या था मौलाना साहब उखड गए| देर रात तक मीडिया के दफ्तर में फोन करते रहे कि वे हाथी के साथ नहीं है| उनसे पूछा गया किसके साथ है तो वोले वे किसी के साथ रहे रहे मगर हाथी के साथ नहीं है| मीडिया ने वापस हाथी वाले उमीदवार से सम्पर्क किया और उलाहना दिया कि अगर झूठी खबर दुबारा दी तो पूरे चुनाव में कवरेज की जगह नहीं पाओगे| स्थिति तुरंत साफ़ करो कि मौलाना ने तुम्हारे लिए कुछ कहा कि नहीं| हाथी वाले ने मौलाना के कन्नौज स्थित गुरु को फोन लगाया और मौलाना को तुरंत मुह पर ताला लगाने का फरमान जारी करवाया| जैसे तैसे मामला सम्भला, उसके बाद ही मीडिया में मौलाना के फोन आना बंद हुए| मगर उसी रात पंजे के समर्थक वसीम जमा खान का मीडिया दफ्तर में फोन आया कि उन्ही मौलाना ने मैडम को समर्थन दिया है और जल्द ही एक पत्र मीडिया के दफ्तर में पहुच जायेगा| खैर बिना पत्र के खबर न छपने की शर्त के कारण खबर पूरे चुनाव में मौलाना के समर्थन की न छप सकी क्यूंकि चुनाव ख़त्म हो गया चिट्ठी नहीं आई| बात वही हुई मियाँ गए थे चौवे बनने दुबे बन लौट आये| राज की बात तो खुली कि जनाब ने मुस्लिम वोटो के चाहने वाले तीनो उम्मेदवारो को जेब गरम करके दुआ दे दी थी| हाथी वाले ने खबर छपवा दी तो बाकी के दोनों नेताओ ने खाट खड़ी करनी शुरू कर दी थी|

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