आँखों देखी: दलाल और सरकारी तंत्र मिलकर लूट रहा सातनपुर मंडी में आलू किसानो को

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फर्रुखाबादः  जो कल तक चुनाव में नेताओ के मंचो पर चढ़ कर किसानो को उनका हक़ दिलाने का दम भर रहे थे सातनपुर स्थित एशिया की सबसे बड़ी आलू की मंडी में किसानो को लूटते देखे जा सकते है| खुली  नीलामी के स्थान पर चंद बड़े आढ़ती हाथों पर अंगौछा डाल कर गोपनीय ढंग से आलू का भाव तय करलेते हैं। फिर पूरे दिन किसान को इसी रेट पर अपना आलू बेचना मजबूरी होता है। इससे बड़ी बात ये है की इस लूट में सरकारी तंत्र भी बराबर का भागीदार है| आँख बंद कर किसानो को लुटने के लिए उसने इस मंडी के दलालों को खुली छूट दे रही है। किसी गरीब किसान के हिस्से को लूट कर जमा धन से इन अमीरजादो के बच्चे किसी आलीशान होटल में उसी आलू की एक प्लेट के 100 रुपये चुका आते है मगर किसान को उस आलू का वाजिब मूल्य नसीब नहीं होता|

किसान की किस्मत में सिर्फ गरीबी के अलावा शायद और कुछ नहीं है। उसकी फसल या तो पानी से, बारिश से या फिर सूखा से मारी जाती है। पांच बार अगर किसान फसल पैदा करता है तो उसकी तीन बार तो मारी जाती है, केवल दो बार जैसे-तैसे मण्डी तक पहुंचती है वह भी दलालों व आढ़तियों के हाथों बेची जाती है। उसको भी बेचने का अधिकार उसे नहीं है। बेचारा किसान आज भी दलालों व आढ़तियों की भेड़ बना हुआ है। जो जैसे चाहे वैसे उन्हें काट सकते हैं।

किसानों की दशा को लेकर सरकारें न जाने कितने झूठे वादे कर वोट बटोरती रहीं और महंगाई दर महंगाई किसान इसमें पिसता रहा। डीजल, पानी, बिजली हर तरह से किसान को महंगाई के चलते ऊंचे दामों पर खरीदनी पड़ती हैं। इसके बावजूद भी किसान तेज धूप, बारिश व लू के थपेड़ों को झेलकर जो फसल बड़ी मेहनत से पैदा करता है वह आज भी वही पुराने ढर्रे पर दलालों और आढ़तियों के हाथों बेची जा रही है। ज्यादा कुछ लिखने की जरुरत नहीं बस तस्वीरे देख लीजिये और समझ जाइए कि कौन क्या कर रहा है|

बात करते हैं सातनपुर स्थित आलू मण्डी की जहां पर किसानों की किस्मत चंद दलालों के हाथों में बिकते देखी जा सकती है। समय सुबह के 10 बजे आलू मण्डी ट्रैक्टर ट्रालियों से खचाखच भर गयी। लेकिन भाव बताने वाला कोई नहीं। जिससे पूछो तो भाव अभी खुलने वाला है। भाव कैसे खुलता है यह बात जानने के लिए जब प्रयास किया गया तो जो नजारा सामने था उससे यह बात बिलकुल साफ हो जाती है कि बाकई में आज सबसे ज्यादा शोषण किसान का ही हो रहा है।

काफी इंतजार के बाद किसान टकटकी लगाये किसी व्यक्ति का इंतजार कर रहे थे। तभी दुकान नम्बर तीन के नीचे भीड़ जमा हो गयी। भीड़ के बीचोबीच तीन चार आलू आढ़ती थे और हाथों पर अंगोछा डाले थे। अंगौछे के नीचे आढ़तियों की उंगलियां सधे अंदाज में अंदर ही अंदर इशारे से बातें कर रहीं थीं। अरे इतना सही नहीं रहेगा, इतना कम करो, कोई किसी का हाथ पकड़ रहा। कोई किसी की दो उंगलियां पकड़ रहा, कोई पूरा पंजा ही। मंडी में अपना आलू बेचने के लिये किसान किसी नरीह गाय की तरह बेबसी से इनकी तरफ निहार रहे थे। भीड़ में गरीब किसान जो आलू लेकर आये थे टकटकी लगाये उन आलू के ठेकेदारों की तरफ यह सोचकर देख रहे थे कि अगर कुछ ज्यादा रेट ये लोग खोल दे तो चार पैसे ज्यादा मिल जायेंगे।

तभी एक सफेद कुर्ता पाजाबा धारी व्यक्ति ने हाथ ऊपर उठाकर जोर से आवाज लगायी साढ़े तीन, जिसकी बात को काटने का किसी ने दुस्साहस नहीं था। सभी किसान अपनी-अपनी फसल को एक आवाज पर बेचने को तैयार हो गये।

जानकारी के बावजूद मण्डी सचिव हरिविलास सिंह से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि खुली नीलामी का हमारे पास कोई आदेश नहीं है। इस बात से यह साफ हो जाता है कि सरकार या प्रशासन यह नहीं चाहते कि किसानों पर से कर्जा या गरीबी मिट पाये।