Saturday, December 28, 2024
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डाक्टर ने पैसे न होने पर वृद्धा को धक्के मारकर बाहर निकाला

फर्रुखाबाद: कोतवाली फतेहगढ़ के ग्राम महमदपुर पोस्ट सराह निवासी ५० वर्षीय वृद्धा निर्मला को इलाज के पैसे कम पड़ जाने के कारण बीमारी से तड़पने के बावजूद भी डाक्टर को रहम न आयी और मरीज को अस्पताल से धक्के मारकर बाहर निकाल दिया|

सराह निवासी निर्मला पत्नी राम किरन के पुत्र रवींद्र ने बताया की लगभग १० दिन पूर्व मेरी माँ के शरीर में खून की कमी हो जाने के कारण लोहिया अस्पताल लेकर आये थे| जहां उपचार के दौरान डाक्टरों ने हालत गंभीर होने के कारण मेडिकल कालेज आगरा रिफर कर दिया था| दो, तीन दिन के पश्चात जब कुछ आराम मिला तो मेडिकल कालेज से छुट्टी होने के दौरान हम लोग माँ को लेकर वापस अपने घर आ गए|

रवींद्र ने बताया की २४ अक्टूवर को हम अपनी माँ को लेकर आये तो उसकी तबियत पुनः खराब हो गयी| आनन्-फानन में कल १२ बजे फिर माँ को लेकर लोहिया अस्पताल पहुंचे लेकिन करोंड़ों के लागत से बने लोहिया अस्पताल में उस महिला का कोई इलाज न था जिसपर डाक्टरों ने रवींद्र को पुनः कहीं प्राईवेट दिखाने के लिए कहा| जिस पर हम लोग माँ को लेकर आवास विकास के चर्चित अस्पताल गए जहां पर डाक्टर ने ३५० रुपये बेड चार्ज व ३ हजार रुपये डाल्सिस के लगेंगें| करीब ५ हजार रुपये खर्चा बताया गया|

रवींद्र ने बताया की हम लोग मजदूरी करते हैं| इतने रुपये के व्यवस्था नहीं थी| फिर भी हम लोगों ने हामी भर दी| रवींद्र के अनुसार भर्ती करने के लिए जैसे ही स्वीकृति दी तो डाक्टर ने तत्काल एक इंजेक्शन मेरी माँ के लगा दिया व एक शीशे के कमरे में जिस पर कुछ अक्षर अंग्रेजी ( ICU ) के लिखे थे| उसके अन्दर पड़े बेड पर माँ को लिटा दिया व इंजेक्शन लगाने के कुछ समय बाद माँ के हालत बिगड़ने लगी जिसपर डाक्टर ने हमलोगों से १० हजार रुपये के मांग कर दी| जिसपर १० हजार रुपये की व्यवस्था किसी तरह करके दे दी| जिसके बावजूद भी बीती रात १ बजे डाक्टर ने पुनः १० हजार रूपये मांगे| काफी हाँथ पैर जोड़ने पर भी डाक्टर नहीं पसीजा व १० हजार फिर जमा करा लिए|

रवींद्र ने बताया की एक मजदूरी करने वाला चार घंटे में २५ हजार कहा से लाएगा| यह कहने पर डाक्टर बोले की अगर यहाँ आओगे तो पैसे देने ही पड़ेंगे| सुबह होते-होते डाक्टर साहब का एक शागिर्द फिर आया और रवींद्र से ८ हजार रुपयों की मांग कर दी| अब हमारे पास डाक्टर को देने के लिए सिवाय पहने हुए कपड़ों के अलावा कुछ नहीं था| लेकिन डाक्टर साहब को तो पैसे चाहिए न मिलने पर डाक्टर व उनके चमचों ने मुझे व मेरी बीमार माँ को गाली-गलौज करते हुए उस वक्त धक्के मारकर अस्पताल के गेट से बाहर निकाल दिया जब मेरी माँ खून के कमी के लिए बुरी तरीके से तड़प रही थी| रवींद्र फिर सफ़ेद हांथी ( लोहिया अस्पताल ) किसी आस को लेकर पहुंचा लेकिन अस्पताल में मौजूद चिकित्सकों ने प्रश्न कर दिया की यहाँ क्या करने आये हो? रवींद्र के हालत देखकर बाकई में दीवाली मनाने का मन नहीं कर रहा था क्योंकि जहां एक तरफ लोग दासों हजार रुपये के पटाखों को आग लगा रहे थे वहीं दूसरी तरफ गरीव रवींद्र अपनी माँ के इलाज के लिए रुपये न होने के कारण एक कोने में खडा आंसू बहा रहा था|.

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