उखड़ गया बाबा रामदेव का सर्कस

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बाबा रामदेव ने जमाने को दो चीज दी हैं पहली प्राकर्तिक योग एवं चिकित्सा तथा दूसरी विलुप्त होती सर्कस परम्परा को जीवंत करने का प्रयास| बाबा का पहला योगदान इतना भारी है जिसके चलते दूसरा योगदान बौना पड़ जाता है| मगर बाबा का दूसरा योगदान कम महत्वपूर्ण नहीं जो हमें भारत के गौरवशाली सर्कस के इतहास से रूबरू करा रहा है| भारत में खासकर उत्तर भारत में प्राकर्तिक साधनों का प्रयोग कर जीने की कला सिखाने में कामयाबी प्राप्त की| भले ही यह कामयाबी कुल आबादी के अनुपात में काफी कम हो मगर इसके दूरगामी परिणाम होंगे| भारत जैसे देश में जहां भ्रष्टाचार के कारण ‘गरीबी’ शब्द दैनिक जीवन और आम आदमी के साथ दाल रोटी जैसा जुड़ चुका हो वहां बाबा का ‘योग दर्शन’ जीवन देने में कामयाब हो रहा है| मगर इन सबके बीच एक विशाल सोच और बड़ी उपलब्धि भी है जो परदे के पीछे है वो है रामदेव के योग बाजार के प्रदर्शन का सर्कसनुमा आधार| लगभग विलुप्त हो चुकी सर्कस कला को जीवित रखने का काम भी बाबा कर रहा है| बाबा के शिविर से पहले और शिविर के बाद का शिविर स्थल सर्कस के इतिहास को सीखने और समझने का एक बेहतर अवसर भी प्रदान करता है| नयी पीड़ी को सर्कस के ज्ञान से उपकृत करने का मौका भी दे रहा है बाबा रामदेव का योग शिविर|

बाबा रामदेव के शिविर आयोजन की व्यवस्था और एक बड़ी सर्कस कम्पनी के शो की व्यवस्था में एकरूपता सी दिखती है| फर्क केवल नए जमाने के अन्तरिक्ष में स्थापित मशीन द्वारा पूरी दुनिया में लाइव टेलेकास्ट का ही हुआ है बाकी कुछ खास परिवर्तित नजर नहीं आता| रामदेव के योग एवं प्रचार शिविर के आयोजन स्थल के फाइनल होने के बाद तम्बू गाड़ने से लेकर उखाड़ने तक अनुशासित एवं क्रमवद्ध कार्य एवं फिर नए स्थल पर वही निरन्तरता सहेजता कार्य इतिहास में विलुप्त हो रहे सर्कस का आभास करता है|

दुनिया का सबसे बड़ा सर्कस और फर्रुखाबाद का संयोग-

दुनिया के सबसे विशाल सर्कस का इतिहास भी भारत के नाम ही दर्ज है| रूस में अपना शो करने के लिए जाते समय जिस विशाल सर्कस की अस्सी के दशक में जहाज पर सवार तीन यूनिट एक साथ महासागर में समां गयी उस सर्कस का नाम था “कमला सर्कस”| 2000 से ज्यादा सर्कस के कलाकार, कामगार और 200 से ज्यादा जानवर जिसमे शेर, हाथी, घोड़े, बन्दर, कुत्ता, चिड़िया, भालू सब थे डूबते जहाज के साथ काल के गाल में समां गए| 34 साल पहले फर्रुखाबाद के रामलीला गड्डे में लगे कमला सर्कस और उससे 1 किलोमीटर दूरी पर 2 अक्टूबर 2012 को बाबा रामदेव के योग एवं उनके प्रचार के शिविर के आयोजन में परदे के पीछे हुई तैयारी में एकरूपता झलकती है| दोनों ही प्रकार के शो तीन घंटे के| फर्क तो सिर्फ इतना कि कमला सर्कस के एक सम्पूर्ण शो में लगभग 150 से ज्यादा कलाकार परदे के आगे दिखते थे मगर पतंजली योग पीठ के योग शिविर के मंच पर सिर्फ एक कलाकार “बाबा रामदेव”| सिर्फ गीत संगीत के लिए एक बांसुरी, एक तबला, एक हारमोनियम, एक ढोलक और एक सन्यासी जरूर बाबा के मंच पर बैठने का उपक्रम करते हैं मगर दर्शको को सिर्फ एक ही कलाकार अपनी तरफ खीच पाता है|

असली कमाल बैक स्टेज का-

कमला सर्कस को चलाने में  तीन यूनिट काम करती थी| कलाकारों की एक ही यूनिट होती थी| रूस में 6 माह का विभिन्न प्रान्तों में आयोजन होना था लिहाजा सभी तीनो यूनिट एक साथ जहाज पर रवाना हुई थी| दुखद इतिहास रहा जो एक साथ सब कुछ ख़तम हो गया|

आमतौर पर किसी भी बड़े सर्कस के सेटअप में तीन से चार सेट व्यवस्था के होते है| जिसमे तम्बू, कनात, चलता फिरता रसोईघर, जरनेटर एवं अन्य बैक स्टेज सामान होता है| बाबा के शिविर आयोजन में भी पतंजली योगपीठ ने तीन बैक स्टेज यूनिट बना रखी है| एक यूनिट वहां होती है जहाँ बाबा का कार्यक्रम हो रहा होता है| दूसरी वहां उखड रही होती है जहाँ बाबा कार्यक्रम करके आया होता है| और तीसरी यूनिट बाबा के अगले कार्यक्रम स्थल पर तम्बू गाड़ रही होती है|

ये सारा साजो सामान बाबा का खुद का है या नेपथ्य में यूं कहे कि कानूनी तौर पर पतंजली योग पीठ नमक सामाजिक संस्था का है| प्रचार और प्रसार के लिए खुद का टीवी चैनल “आस्था”, टेंट, मंच, 1 लाख वर्गमीटर में बिछाने की हरे रंग की दरी, 25 से 150 हार्स पावर के 16 जरनेटर, 50000 वाट का साउंड सिस्टम, दवा व् प्रचार साहित्य बेचने के लिए चलती फिरती 20 दुकाने| ट्रक पर निर्मित एक दुकान की कीमत लगभग 15 लाख रुपये से कम नहीं है| मजदूरों और कर्मियों को ढोने के लिए दोमंजिला शयनयान वाली वातानूकूलित बस भी पतंजली योग पीठ की ही होती है| एक यूनिट में लगभग 200 से ज्यादा कर्मी लगे होते है| 40 से ज्यादा ट्रक सामान ढो रहे होते है|

शिविर स्थल से बाबा के सीधे प्रसारण के लिए दो चलते फिरते स्टूडियो (डाइरेक्ट न्यूज़ गेदरिंग सिस्टमDNG) और सटेलाईट छाते वाली ओवी वैन| बाबा के लिए वातानूकूलित लक्सरी कार| जिसे बाबा के बैठने से घंटो पहले एसी चालू करके ठंडा किया जाता है| बाबा के प्रचार वाले सभी सामान उनकी खुद की पतंजली पीठ की सिस्टर कंसर्न वाली फर्मो में छपता है| यानि पैसा घूम फिर के बाहर नहीं जा सकता| ठीक सर्कस के अंदाज में पूरी व्यवस्था| ठीक भी है कलाकारों को व्यवस्था मनमुताबिक न मिले तो शो में दम नहीं आता| वैसे भी जादू तक के शो में जादूगर अपने यंत्रो द्वारा ही करतब दिखा सकता है, दूसरे के यंत्रो से करतब में व्यवधान आने की सम्भावना और पोल खुलने का डर बना रहता है|

जारी…