एसपी दफ्तर में ही सिपाही को सिपाही से 500/- की घूस चाहिए

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फर्रुखाबाद: कहते हैं कि डायन के भी कुछ उसूल होते हैं| वो भी 7 घर छोड़ कर हमला करती है| मगर शायद रिश्वत की डायन के कोई उसूल नहीं होते| रिश्वतखोर सिर्फ रिश्वतखोर होता है उसका न कोई दोस्त होता है न कोई सगा सम्बन्धी| इसीलिए आज पुलिस कप्तान के दफ्तर में उनकी ही नाक के नीचे एक सिपाही से जब दूसरे सिपाही बाबू ने 500/- की रिश्वत मांगी तो बबाल मच गया| मामला मौके पर मौजूद अपर पुलिस अधीक्षक के कानो तक पंहुचा तो विभाग की इज्जत बचाने के लिए तुरंत बाबू की डांट लगाकर बिना घूस के काम निपटवा दिया|

गिरीश शंकर दोहरे फर्रुखाबाद के नवाबगंज थाने में तैनात थे| थाने में मन न लगा तो बड़े जतन से लखनऊ के सतकर्ता अधिष्ठान में तबादला करवा लिया| नवाबगंज से लाइन पहुच गए और तबादले के मिलने वाले यात्रा भत्ता के लिए सारे कागज बनबाकर एस पी कार्यालय के बाबू उमेश यादव के पास पहुचे| उमेश यादव को फाइनल कागज बनाकर एसपी साहब से दस्खत कराकर काम पूरा करना था| मगर जनाब बिना हथेली गरम हुए आसानी से काम बन जाए ये कैसे हो सकता था सो अपने साथी सिपाही गिरीश शंकर से 500/- नगद घूस मांग बैठा| गिरीश उखड गया और बोला इसी रिश्वत खोरी के चक्कर से बचने के लिए तो तबादला कराया मगर पीछा नहीं छूटा| गिरीश ने रिश्वत देने की जगह अन्ना गिरी कर दी| लिख दिया एक शिकायती पत्र और पेश हो गए अपर पुलिस अधीक्षक के सामने| इसके बाद अपर पुलिस अधीक्षक ने वी के मिश्र ने उमेश बाबू को बुलाकर जमकर लताड़ लगायी तब जाकर गिरीश शंकर का काम हो पाया|

इतना सब होते होते देर हो चुकी थी| भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना के स्वर कानो में गूँज रहे हो और घूसखोरी का मसला सुनने भर को मिल जाए तो क्या कहने| शिकायतकर्ता ग्रीशशंकर दोहरे का रिश्वत वसूली वाला शिकायती पत्र मीडिया में पढ़ा जा चुका था लिहाजा थू-थू बच न सकी| सोचो अगर एस पी साहब के कार्यालय में ये हाल एक उसी विभाग के सिपाही के साथ हो रहा है तो आम जनता के साथ क्या बीतती होगी|