अपने अपने मुकाम- आश्रम, मीडिया और प्रशासन

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आज़ादी के 65 साल बाद भी राजनितिक के खिलाडी और नौकरशाहों दोनों अपनी अपनी प्राथमिक जिम्मेदारियो का निर्वहन करने में नाकाम रहा| ये तोहमत आये दिन संविधान की धारा 19-1 का प्रयोग कर हर चौराहे तिराहे पर आम जनता और मीडिया इन दोनों पर लगा देता है| मगर इस दौर में मीडिया और आम जनता को भी आत्ममंथन की जरुरत है| लोकतंत्र के ये दोनों ध्रुव भी क्या अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी पूरी कर सके| जब दिल्ली में अन्ना देश की जड़ो में फैले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए आन्दोलन कर रहे थे देश भर का स्थानीय मीडिया ऐसे छप रहा था जैसे अब ये छपास तब तक ख़त्म नहीं होगी जब तक कोई क्रांति या परिवर्तन नहीं हो जाता| मगर अन्ना के अपने गाँव रालेगांव सिद्धि लौटते ही लगता है सब ठंडा पद गया| देश से भ्रष्टाचार दूर हो गया|

फर्रुखाबाद में पिछले 15 दिनों से जिस प्रकार सभी मीडिया (प्रिंट एंड इलेक्ट्रोनिक) एक स्थानीय आश्रम के लिए खबरे कर रहे है और प्रायोजित करा रहे हैं, ऐसा लगता है कि जनपद में इससे बड़ा कोई सामाजिक दोष नहीं है| हालाँकि किसी भी अख़बार और टीवी के पत्रकार ने एक भी ऐसी खबर नहीं लिख पाई जिस पर पुलिस या प्रशासन कोई ठोस सबूत की और जाता दिखता| टीवी पत्रकारों ने तो हद्द कर दी| आश्रम से बरामद बाबा के अध्यात्मिक सन्देश वाली सीडीओ को ऐसे प्रचारित किया जैसे ब्लू फिल्मो का जखीरा बरामद हुआ हो और यहाँ ब्लू फिल्म बनायीं जाती हो| एक टीवी पर बच्चा चोर गिरोह से आश्रम को जोड़ दिया गया| आश्रम में मौजूद महिलाओ के मिलने को बरामदगी शब्द लिखा गया| ये भूल गए कि बरामदगी किसी छुपी हुई चीज के लिए लिखा जाता है| जिले भर के संगठन गुलाबी गैंग, काला गैंग, नीला गैंग, मिसाइल फ़ोर्स और न जाने कौन से कौन उग आये गैंगो को मीडिया सुबह से शाम तक आश्रम की ओर प्रायोजित करती रही| ये जानते हुए भी कि नगर के अधिकांश संगठन और उनके पदाधिकारियो का खुद का जीवन निष्कलंक नहीं है, अख़बार भरने के लिए उन्हें रात दिन छापा जाता है| अगर मीडिया इन्हें छापना बंद कर दे तो कोई संगठन एक भी गतिविधि करता नजर नहीं आएगा| एक भी संगठन के खाते में केवल सार्वजनिक बुराई को जड़ से नष्ट करने का उदाहरण मौजूद नहीं है| गैस की कालाबाजारी के खिलाफ आन्दोलन करने के बाद पदाधिकारियो के घरो में समय से गैस पहुचने लगती है लगता है समस्या हल हो गयी| वास्तव में ये संगठन सिर्फ और सिर्फ निजी प्रचार या अपने काले कारनामो पर पर्दा डालने के लिए बने हैं|

बात आश्रम की चली थी, पिछले 15 दिन से अखबारों को देख ऐसा लग रहा है कि जनपद में आश्रम के अलावा कोई समस्या नहीं रह गयी है| मास्टर समय से स्कूल में जाने लगा है, कोटेदार बड़ी ईमानदारी से राशन बाटने लगा है, सारे पुलिस वाले और नेता सुधर गए है, जिले में भ्रष्टाचार से कोई पीड़ित नहीं रह गया है| बीएड की प्रायोगिक परीक्षा के लिए प्रति बच्चा 5000/- रुपये वसूले जा रहे हैं| एक हफ्ते में 50 लाख रुपये का भ्रष्टाचार हो जायेगा| मगर मजाल है कि कोई खबरनवीस इन कॉलेज में घुस कर इनके रजिस्टर देख सके| जबकि कॉलेज सर्वजनिक सम्पति होती है भले वो प्राइवेट हो| हेकड़ी कमजोर पर जबर से नतमस्तक| ऐसे हो गए हैं हम| अखबार पढ़ कर लगने लगा है कि अगर बस ये आश्रम बंद हो जाए तो बस फर्रुखाबाद में समझो राम राज्य आ गया है| मगर कितने ही गड्डे खोदने के बाद आश्रम की बदनामी के सिवाय एक भी ऐसा खोजी बात मीडिया नहीं जुटा सकी जो आश्रम उसकी व्यवस्था को को ख़राब बताती हो| इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर चली खबर के बाद देश भर के अभिभावक फर्रुखाबाद में अपने बच्चो तलाशने आने लगे| मेरे पास दिल्ली से एक फोन आया कि उनकी बेटी जो चार साल पहले खो गयी थी क्या वहां मिल सकती है| मैंने पूछा अपने कैसे अंदाज लगाया कि फर्रुखाबाद में आपकी बच्ची हो सकती है उनका जबाब था टीवी पर खबर चल रही है फर्रुखाबाद के आश्रम में नाबालिग लडकिया, सेक्स रैकेट से जुड़े हो सकते हैं तार? सुनकर दंग रह गया| मैंने चार साल पहले आश्रम में एक महीना आवाजाही कर आश्रम पर लगने वाले आरोपों के बारे में तफ्शीश की थी, आश्रम में आने वाली हर नाबालिग लड़की के माँ बाप का स्टाम्प पेपर पर सहमती पत्र ये दर्शाता था ये यहाँ हर नाबालिग या बालिग लड़की का अता पता लिखापढ़ी में है| हाँ आश्रम वाले आम जनता को अन्दर घुसने से रोकते है क्यूंकि वो शायद स्थानीय जनता से दहशत में है| मगर उनके यहाँ रहने से शायद किसी कोई परेशानी नहीं| वो जो कुछ करते हैं बंद आश्रम के अन्दर करते है|

इन सबके बीच पुलिस और प्रशासन मुश्किल में है| पुलिस कोई कोई ऐसा सबूत नहीं जो इसके खिलाफ कारवाही कर सके, दूसरा आश्रम से कोई रकम भी पैदा नहीं होने वाली और खाली पीली में सुरक्षा, जाँच करनी पड़ रही है| आश्रम के मुकदमे झेलने पड़ेंगे सो ब्याज में| प्रशासन अलग से जाँच कर रहा है| जाँच में बयान देने दर्जनों लाल पीले काले गैंग बयान दर्ज करा आये| मगर एक भी ने कोई सबूत प्रस्तुत नहीं कर पाया| ऐसे में मजिस्ट्रेट किस निष्कर्ष पर पहुचेंगे| संविधान द्वारा प्रद्दत मौलिक अधिकारों के तहत भारत के हर नागरिक को मनमर्जी का धर्म, सम्प्रदाय और आस्था रखने का अधिकार है| फिर इतनो चिल्ल पो क्यों?

अब आश्रम पर कोई बस नहीं चला, कोई बात या आरोप जो मीडिया ने लगवाये वे एक भी टिक नहीं पाए तो आश्रम के भवन के मानचित्र को लेकर जंग शुरू हो गयी| मगर क्या नगर मजिस्ट्रेट अपने कार्यालय में उन फाइलों को निकाल कारवाही कर सकेंगे जिनमे फतेहगढ़ के भोलेपुर में अवैध बना तिवारी नर्सिंग होम, नेकपुर ने सिटी पब्लिक स्कूल, ठंडी सड़क पर बिना भू उपयोग कराये सैकड़ो की तादात में बहुमंजिली इमारतो के नोटिस जारी हुए थे|

मान लो एन केन प्रकरण आश्रम बंद भी हो गया तो उससे फर्रुखाबाद की आम जनता को क्या नुकसान नफा होगा| क्या रामराज्य आ जायेगा| क्या चौराहे पर पुलिस की वसूली बंद हो जाएगी, क्या दफ्तरों में घूस नहीं लगेगी| क्या आम आदमी का काम आसानी से होने लगेगा| मेरी समझ में एक व्यर्थ के मुद्दे को इतना कवरेज देने की बजाय मीडिया ने इतनी उर्जा किसी एक आम आदमी से जुड़े सब्जेक्ट पर लगा दी होती ने तो हजारो लाखो पीडितो को लाभ मिल सकता था| तब सही मायने में प्राथमिक जिम्मेदारी का निर्बहन भी हो जाता| क्या हम भी भीड़ में खो रहे है, जरुरत आत्मंथन की है|