Saturday, January 11, 2025
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भगत सिंह को फांसी दिलाने वाले के नाम पर दिल्ली का चौराहा ????

शहीद.ए.आज़म भगत सिंह के बलिदान को शायद ही कोई भुला सके। आज भी देश का बच्चा.बच्चा उनका नाम इज्जत और फख्र्र के साथ लेता हैए लेकिन दिल्ली सरकार उन के खिलाफ गवाही देने वाले को ऐसा सम्मान देने की तैयारी में है जिससे उसे सदियों नहीं भुलाया जा सकेगा। दिल्ली सरकार विंडसर प्लेस का नाम उसके नाम पर करने का प्रस्ताव ला रही है। इसका नाम है शोभा सिंह।

अंग्रेज अफसर सैण्डर्स के कत्ल का कार्य तो भुला दिया परंतु शुक्र है कि अभी लागों को भगत सिंह का नाम याद है। जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में मुकद्दमा चला तो भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने को कोई तैयार नहीं हो रहा था। बड़ी मुश्किल से अंग्रेजों ने दो लोगों को गवाह बनने पर राजी कर लिया। इनमें से एक था शादी लाल और दूसरा था शोभा सिंह। मुकद्दमे में भगत सिंह को उनके दो साथियों समेत फांसी की सजा मिलीण् इधर इन दोनों गवाहों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनों को न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले।

शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिलेए जबकि शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है। यह अलग बात है कि शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा भी नहीं दिया। शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था। शोभा सिंह को को राजधानी दिल्ली में हजारों एकड़ जमीन मिली और खूब पैसा भी। ।

यह जानना और भी चौंकाने वाला होगा कि यह शख्स कोई और नहींए बल्कि लेखक खुशवंत सिंह का पिता ‘सरष’ शोभा सिंह है। सर सोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा मैनेज करता है। प्रधानमंत्री ने बाकायदा पत्र लिख कर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से अनुरोध किया है कि कनॉट प्लेस के पास जनपथ पर बने विंडसर प्लेस नाम के चौराहे ;जहां ली मेरीडियनए जनपथ और कनिष्क से शांग्रीला तीन पांच सितारा होटल हैंद्ध का नाम सर शोभा सिंह के नाम पर कर दिया जाए।

खुशवंत सिंह ने खुद भी माना है कि उनके पिता शोभा सिंह 8 अप्रैल 1929 को उस वक्त सेंट्रल असेंबली मे मौजूद थे जहां भगत सिंह और उनके साथियों ने धुएं वाला बम फेका था। बकौल खुशवंत सिहए उनके पिता के कारण भगत सिंह को फांसी नहीं हुई। अपने लेखों में उनका यह भी कहना है कि उनके पिता ने किसी के खिलाफ गवाही नहीं दीए केवल सच बोला था।

इस बहुमूल्य जानकारी के लिये Sushil Sadh का धन्यवाद।


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