Thursday, January 16, 2025
spot_img
HomeUncategorizedस्कूलों की मनमानी पर अंकुश के लिए “अभिभावक संघ” का गठन

स्कूलों की मनमानी पर अंकुश के लिए “अभिभावक संघ” का गठन

फर्रुखाबाद: पब्लिक स्कूल खोल कर शिक्षा को सेवा की जगह व्यापार की तरह चलाने वालों के लिए बुरी खबर है| बच्चो को उनका मौलिक अधिकार दिलाने और स्कूलों की मनमानी पर अंकुश रखने के लिए अभिभावक संघ का किया गया है| जनपद के सभी अभिभावकों को इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है| रविवार 7 अगस्त 2011 को इसकी पहली बैठक होने जा रही है| शामिल होने के लिए जेएनआई से सम्पर्क किया जा सकता है|

शिक्षा को सेवा की तरह चलाना अब गुजरे जमाने की बात हो गयी है| देखा जाए तो निजी पैसा लगाकर बिना किसी सरकारी सहायता के स्कूल चलाने में जनपद में एक मात्र उद्योगपति कायमगंज के चंद्रप्रकाश अगरवाल उर्फ़ पिक्को बाबू ही दिखते है| बाकी के ज्यादातर शिक्षा सेवा का मुखौटा लकागर अपनी शिक्षा की दूकान चलाते हैं| अब तो कानपुर के एक उद्योगपति/राजनेता भी फर्रुखाबाद में ये दूकान खोल धंधा शुरू कर चुके है| चाहे किसी जिले में ऐसे लोग अपनी दूकान चलाये किन्तु फर्रुखाबाद में अब शिक्षा के मंदिरों को व्यापारिक केंद्र किसी भी कीमत पर बन्ने से रोका जायेगा| इसी उद्देश्य से जिला अभिभावक संघ गठन करने का निर्णय हुआ है|

शिक्षा जैसे विषय पर जेएनआई अपने तीन साल पहले गठन के समय से ही विशेष रूप से काम कर रहा है| जनता को जागरूक कर प्राथमिक शिक्षा के लिए उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों और बेसिक शिक्षा में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ एक अभियान सा चलाकर काफी कुछ परिवर्तन करने का प्रयास हुआ और परिणाम भी सामने आये है| इसी मुहीम के तहत नक़ल पर अंकुश लगाने और नक़ल से शिक्षा प्राप्त करने का भी अभियान चलाया गया| चाहे बीएड में अवैध फीस वसूली मामला हो, छात्रो की छात्रवृति घोटाले का मामला हो या फिर परिषदीय स्कूलों में बिना पढ़ाए वेतन पाने का धंधा हो जेएनआई ने शिक्षा में फैलते कैंसर के खिलाफ जमकर जागरूकता फैलाने का काम किया है| वर्ष 2010 में ग्रामीण इलाको में मिड-डे-मील की चोरी करने वाले प्रधानो को पंचायत चुनाव के समय उनके गाँव में ही एसएम्एस के माध्यम से ही बेनकाब करके 92% प्रधानो को हार का आइना दिखाने का काम जेएनआई कर चुका है| तीन साल पहले जब जेएनआई ने गाँव गाँव मिड डे मील पर मोबाइल पर सूचना प्राप्त करना शुरू की थी, तब मात्र 20-25% स्कूलों में खाना बनता था| आज वास्तविक आंकड़ा 50% से ऊपर पहुच चुका है| हालाँकि इसके बाद स्थानीय अखबार जो जिले में ही बृहत रूप से पढ़े जाते है, जेएनआई के इस अभियान में शामिल हुए और सकारात्मक परिणाम लाने में उनकी भूमिका भी सराहनीय रही| किन्तु जनपद के कुछ अखबार जिले के बड़े शिक्षा माफियाओं और पब्लिक स्कूलों की मनमानी के खिलाफ अपनी धार कुंद किये हुए है| देर सवेर उन्हें भी ये आवाज उठानी पड़ेगी क्यूंकि ये पब्लिक है सब जानती है- “तुम हमें छोड़ दोगे तो हम भी तुम्हे छोड़ देंगे” की तर्ज पर क्या कुछ करने लगे कुछ नहीं पता| पत्रकारिता के बाजारीकरण के बीच वैकल्पिक मीडिया जैसे मोबाइल और इंटरनेट वेबसाईट अपनी पहचान बनाने गाँव गाँव गली गली घुस चुके है| सरकार भी इन वैकल्पिक मीडिया को इस्तेमाल करने लगी है| खुद के बड़े होने का तिलस्म और भ्रम तभी तक कायम है जब तक आप आँखे खोल बाहर नहीं झांकते|

जनता साथ आये जेएनआई करेगा पहल-
इसी कड़ी में ये जेएनआई की अगली शुरुआत है| जेएनआई ये दावा नहीं करता की वो भ्रष्टाचार पर रोक लगा सकता है किन्तु जनता को उसके अधिकारों से जाग्रत कर भ्रष्टाचार को कम जरुर करने में कामयाब होने लगा है वेशक ये गति अभी धीमी है किन्तु चिंगारी सुलग चुकी है और ज्वाला बनने में भी बहुत समय नहीं लगेगा| हर चौराहे पर भ्रष्टाचार में लिप्त लोग जलालत की नजर से देखे जा रहे है| स्कूल माफिया ग़लतफ़हमी में है कि लोग उन्हें भलामानस कहते है| क्यूंकि चोर हमेशा चोर के साथ में बैठता है और एक दूसरे की तारीफ कर समझता है कि उसकी चारो तरफ जय जयकार हो रही है|

अभिभावक संघ बच्चो के अधिकारों के साथ शिक्षको के अधिकारों की भी जंग लडेगा-
पाठको से अनुरोध है कि यदि आप का बच्चा भी कहीं छात्र/छात्रा है तो आप भी इस मुहीम में शामिल होईये| यकीन मानिये यदि आप एक बच्चे पर एक स्कूल को 40000/- सालाना देते है तो आपसे साल भर में स्कूल प्रबंधक कम से कम 25000/- प्रति बच्चे का मुनाफा कम रहा है| संघ इसे रोकने का प्रयास करेगा| टाई बेल्ट किताबे 35 से 50 प्रतिशत छूट पर मिल सकेगी क्यूंकि इतना ही कमीशन किताबो का प्रकाशक इन स्कूल वालो को देता है| तभी ये स्कूल वाले अपने स्कूल में किताब बेचते है, 10 रुपये का परिचय पत्र 25 से 50 रुपये तक का बेचते है, स्कूल ड्रेस में भी प्रति पीस 100 से 200 रुपये मारते हैं| 15 हजार का कम्पूटर खरीद कर उसे किराये रुपी चलाकर प्रतिमाह एक एक बच्चे से 100 से 300 तक वसूले जा रहे है| इस पर रोक लगेगी| हम इस मुहिम में इन विद्यालयों में लगे शिक्षक जिन्हें वेहद ही कम वेतन देकर जयादा वेतन पर हस्ताक्षर कराये जाते है उनके भी अधिकारों की लडाई लड़ेंगे|

इन सबके लिए कानून है और हर नागरिक का शिक्षा प्राप्त करने का संवैधानिक अधिकार भी| स्कूल वाले फर्जी नियम कानून दिखाकर कर गली गली दूकान लगाकर अभिभावकों को ठग रहे हैं| कमी केवल जागरूकता और अधिकारों के प्रति जागरूकता होना ही है जिसका फायदा उठाया जा रहा है|

कहीं क्या आप मजबूरी में तो घूसखोरी नहीं कर रहे है?
अगर आपका बजट एक बच्चे पर 15000/- प्रति वर्ष खच करने का है और आप स्कूल की मनमानी के आगे उसे मजबूरी में 50000/- चुकाते है तो आप ये रकम कहीं न कहीं से पैदा करने का प्रयास करते है| ईमानदारी से नहीं पैदा कर पाते तो गैर कानूनी और भ्रष्टाचार करने लगते है| समाज में आप का नाम घूसखोर में शामिल होता है| पडोसी आपको कोई इज्जत की नजर से नहीं देखते| आखिर आप कोई अच्छा काम नहीं करते| ये घूसखोरी आप ने अपने बच्चो की शिक्षा के लिए स्कूलों माफियाओं की बेजा माग पूरी करने के लिए की होती है| न भ्रष्टाचार सहो न करना पड़ेगा| ये एक कड़ी है जिसकी शुरुआत आप से ही होती है| तो आओ हमारे साथ- भ्रष्टाचार पर नहीं भ्रष्टाचार के कारणों पर रोक लगाए|
सच्चाई ये है असल में एक बच्चे का स्कूल का खर्च बहुत कम होता है| ये अपने यहाँ शिक्षको को 1000 से 2000 तक देते है और अपने अभिलेखों में १५-२० हजार दिखाते है| फिर उस बचत के पैसे को किसी रिश्तेदार से दान दिखाकर अपनी संस्था को चमकाते है|

अगर आप घूसखोरी का विरोध नहीं कर सकते तो समाज में आपको मर्द कहलाने का कोई अधिकार नहीं, तब तुम हिजड़ो से गए बीते हो कुदरती विकृति के चलते मांग मांग कर अपना पेट भरते है| ऊपर वाले ने तो तुम्हे सब कुछ दिया है तभी तो अभिभावक कहलाये|

सोचो क्या आप चाहते हो कि कल कोई जेएनआई पर एसएम्एस चले कि अमुक बाबू या अफसर घूसखोर है और ये सन्देश आपके बच्चे के दोस्त पढ़ कर आपके बच्चे से कहे कि तेरा बाप घूसखोर है……..क्या बीतेगी आपके मासूम पर…सोच कर ही कलेजे मुह में आने लगा…

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments