खुद को सुथरा करने का मुकद्दस मौका है माह-ए-रमजान

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रहमत का अशरा शुरू,

फर्रुखाबाद: सोमवार शाम चांद की तसदीक हो जाने से मंगलवार को मुसलमान पहला रोजा रखेंगे। इशा की नमाज के बाद तमाम मस्जिदों में तरावीह का सिलसिला शुरू हो जाएगा। कुछ मस्जिदों में 6 दिन, 5 दिन और 10 दिन के शबीने का भी ऐहतिमाम किया गया है। जिसकी तैयारी कर ली गई हैं।

माहे रमजान की चमक से दुनिया एक बार फिर रोशन हो चुकी है और फिजा में घुलती अजान और दुआओं को उठते लाखों हाथ खुदा से मुहब्बत के जज्बे को शिद्दत दे रहे हैं. दौड़-भाग और खुदगर्जी भरी जिंदगी के बीच इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद को अल्लाह की राह पर ले जाने की प्रेरणा देने वाले रमजान माह में भूख-प्यास समेत तमाम शारीरिक इच्छाओं तथा झूठ बोलने, चुगली करने, खुदगर्जी, बुरी नजर डालने जैसी सभी बुराइयों पर लगाम लगाने की मुश्किल कवायद रोजेदार को अल्लाह के बेहद करीब पहुंचा देती है.

इसी महीने में कुरान शरीफ दुनिया में नाजिल (अवतरित) हुआ था. माह में रोजेदार अल्लाह के नजदीक आने की कोशिश के लिये भूख-प्यास समेत तमाम इच्छाओं को रोकता है. बदले में अल्लाह अपने उस इबादतगुजार रोजेदार बंदे के बेहद करीब आकर उसे अपनी रहमतों और बरकतों से नवाजता है. इस्लाम की पांच बुनियादों में रोजा भी शामिल है और इस पर अमल के लिये ही अल्लाह ने रमजान का महीना मुकर्रर किया है. इंसान के अंदर जिस्म और रूह है. आम दिनों में उसका पूरा ध्यान खाना-पीना और दीगर जिस्मानी जरूरतों पर रहता है लेकिन असल चीज उसकी रूह है. इसी की तरबियत और पाकीजगी के लिये अल्लाह ने माहे रमजान बनाया है.

रमजान में की गई हर नेकी का सवाब 70 गुना बढ़ जाता है. 30 दिनों के रमजान माह को तीन अशरों (खंडों) में बांटा गया है. पहला अशरा ‘रहमत’ का है. इसमें अल्लाह अपने बंदों पर रहमत की दौलत लुटाता है. दूसरा अशरा ‘बरकत’ का है जिसमें खुदा बरकत नाजिल करता है जबकि तीसरा अशरा ‘मगफिरत’ का है. इस अशरे में अल्लाह अपने बंदों को गुनाहों से पाक कर देता है.

आज का इंसान बेहद खुदगर्ज हो चुका है लेकिन रोजों में वह ताकत है जो व्यक्ति को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराती है. रोजे बंदे को आत्मावलोकन का मौका देते हैं. अगर इंसान सिर्फ अपनी कमियों को देखकर उन्हें दूर करने की कोशिश करे तो दुनिया से बुराई खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगी. रमजान का संदेश भी यही है.