बीएड परीक्षा- यहाँ चक्रव्यूह का हर दरवाजा पैसे की चावी से खुलता है|
कमालगंज आर पी डिग्री कॉलेज में बी०एड० परीक्षा के नाम पर जो कुछ हुआ उसे देख कर लौटे मुंशी हर दिल अजीज चौक की पटिया पर लाल लाल हुए बैठे थे| कमालगंज में बीएड परीक्षा न हो पाने का मामला जंगल में आग की तरह जिले के कोने कोने में पहुच गया था| कई लोगो ने तो मुंशी हर दिल अजीज से जब इस सम्बन्ध में कुछ जानना चाह तो उनकी त्यौरिया चढ़ गयी| बोले जो कुछ हुआ और हो रहा है उसके लिए सब कुछ सहने की हमारी मानसिकता ही दोषी है| हमेशा याद रखो अत्याचार और भ्रष्टाचार करने वाले से ज्यादा दोषी अत्याचार को करने वाले और भ्रष्टाचार में अपनी कायरता या निहित स्वार्थो के कारण योगदान करने वाले| मुंशी धीरे धीरे अपनी लाइन पकड़ रहे थे| तभी उन्हें घुमना की तरफ से आते मियां जहां झरोखे दिखाई पड़े|
मुंशी ने बात बंदकर मियां की और देखा| मियां मुंशी से लिपट कर रोने लगे| कुछ देर बाद सामान्य हुए| मुंशी हर दिल अजीज से बोले- अब सहा नहीं जाता मुंशी| क्या हो गया है हमारे हुक्मरानों और शिक्षा के कद्रदानो को| पैसे की ऐसी भूख जो कभी समाप्त नहीं होती| प्रवेश में पैसा, पढ़ाई में पैसा, प्रवेश पत्र के लिए पैसा, परीक्षा के लिए पैसा, नक़ल की सुविधा, प्रक्टिकल के लिए पैसा और फिर अच्छे परीक्षा परिणाम के लिए पैसा|| पैसा पैसा और पैसा, हर बात के लिए पैसा| कभी कभी तो फ़िल्मी गाना पैसा पैसा करती है तू पैसे पर क्यूँ मरती है…में नाच करती नर्तकी में इन लोगो की छवि दिखाई देने लगती है| कथित अच्छी नौकरी भविष्य की मृगमरीचिका में पैसे की हर मांग को पूरा करने की अंधी दौड़ में फसकर रह गया छात्र और अभिभावक| ऐसा चक्रव्यूह बना दिया गया है जिसका हर दरवाजा केवल पैसे की चावी से खुलता है|
मुंशी मियां को सांत्वना देने के अंदाज में बोले सच कहते हो मियां| प्रबंधक निदेशक संस्थापक या कोई और हो महामना मदन मोहन मालवीय बनने की न किसी में उमंग है और न उत्साह| लक्ष्य केवल और केवल एक है- निरंतर बढ़ती हुई क्षमता वाली मणि में किंग मशीन बनने का| यह तमाशे कौन नहीं देखता| प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी नहीं देखते| हमारे माननीय शिक्षाविद, प्रबुद्ध नागरिक या समाजसेवी कौन नहीं देखते| कौन नहीं जानते कि शिक्षा के प्रचार प्रसार के नाम पर क्या क्या गुल खिलाये जा रहे है|
मियां जहां झरोखे बोले इसलिए जिले में शायद ही किसी पार्टी का कोई प्रमुख नेता हो जो किसी न किसी शिक्षा संस्था से न जुड़ा हो| कुछ विद्रोहियों, दद्दुओं, हरिश्चंदो, बाबूजी, चौधरियो आदि को यह जानकारी भी नहीं होगी उनका साम्राज्य कहाँ से कहाँ तक फ़ैल गया है| कलम के सिपाही भी अब इस सेवा कार्य में पूरी तरह से कूद पड़े हैं| रोज जलसे होते है| गोष्ठियां होती है| चिंतन शिविर होते है| लखनऊ कानपुर इलाहाबाद आदि से सपत्नीक आने वाले पर्यवेक्षक की जमकर खातिरदारी होती है| उन्हें खरीददारी करायी जाती है| शिक्षा जगत में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह दिए जाते हैं| तालियाँ बजती है| एक दूसरे की शिक्षा जगत में बहुमूल्य योगदान के लिए जमकर प्रशंसा की जाती है| चौथे खम्भे की प्राण वायु अब निष्पक्षता और निर्भीकता नहीं है| इसे चाहे विज्ञापन व्यवसाय कह लो या लूट के माल में हिस्सेदारी| मतलब सीधा है है जो जीता वही सिकंदर| कैसे जीता अब किसी को कुछ लेना देना नहीं है|
मियां बोले मुंशी हमें इन लोगो को दोषी कहने का क्या अधिकार है| बेसिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक न कोई किसी से डरता है और न शर्माता है| सब कुछ शांत भाव से चलता है रहता है| हमारे नौनिहालों युवाओं का भविष्य चौपट करने की मशीने और फैक्ट्रियां बन गयी है शिक्षा संस्थाएं| हमारी भावी पीढ़ी को बिगाड़ने के काम में संचालको को अब अजीब सी तृप्ति का भान मिलता है| एक बदनाम शिक्षा संस्था के संचालक प्रसन्न होकर कह रहे थे- बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा| अब तो नए शिकार को कोई लम्बी चौड़ी भूमिका नहीं बांधनी पड़ती है| साफ़ कहते है आप को तो मालूम ही है हमारे यहाँ सब कुछ होता है और पैकेज पर होता है| अब फैसला आपको करना है कि कौन सा पैकेज आपको सूट करता है| प्रबंधक कह रहे थे लोग हमें गालियाँ देते है, बुरा भला कहते है| फिर हमारी टॉप तो बाटम तक की बेहतरीन सैटिंग के चलते हमारे कहने के अनुसार ही वह सब कुछ वही करते है जो हम कहते है| लोगो में जब तक काम आसान बनाने की ललक रहेगी उनकी दुकान चलेगी| हमारा बाल भी टेढ़ा नहीं कर पाओगे|
मुंशी हर दिल अजीज मियां की इस लम्बी चौड़ी तक़रीर पर अपनी सहमति की मोहर लगाते हुए बोले हमारी रोग ग्रस्त शिक्षा प्रणाली हमारे समाज और परिवारों को दीमक की तरह खोखला करती जा रही है| हम ऊँची भवन बिल्डिंगो, लानो, बच्चो को लाने ले जाने वाले वाहनों, प्रयोगशालाओं और फैकल्टियों आदि की अछि सुविधाओं से युक्त शिक्षा संस्थानों के बहुरंगी विज्ञापन देखकर प्रसन्न होते है| सोचते है शिक्षा के क्षेत्र में बहुत तरक्की हो रही है| परन्तु हकीकत देखकर नौनिहालों युवाओं छात्र छात्राओ की आप बीती सुन मर्ज लाइलाज हो जाने का विश्वास होने लगता है|
एक पैकेज प्रेमी बहुत गौर से मुंशी और मियां हर दिल अजीज की बात सुन रहे थे| जब नहीं रहा गया तब बोले आप दोनों लोग हमे विघ्न संतोषी नकारात्मक सोच के व्यक्ति लगते हो| अरे अमेरिका में तो पूरे के पूरे विश्वविद्यालय फर्जी निकल रहे है| वहां गए हमारे यहाँ के हजारो छात्रो का भविष्य अंधकारमय हो सकता है| परन्तु कोई हल्ला गुल्ला नहीं| पैकेज प्रेमी बोले मित्रो शिक्षा के मामले में हम अमेरिका से बहुत पीछे हैं|
पैकेज प्रेमी की बाते सुन मुंशी और मियां अवाक रह गए| फिर पैकेज प्रेमी से बोले श्रीमान जी बिलकुल सही फार्म रहे हैं आप| आप जैसे लोगो के लिए ही अर्ज किया है-
मधुमक्खी ढूंढे सुमन और मक्खी ढूंढे घाव
जैसी जा की प्रीति है ताको तैसो चाव||
रहिमन चुप बैठिये देखि दिनन को फेर-
बहुत दिन नहीं हुए जब जिले में ही नहीं लगभग पूरे प्रदेश में सहकारिता से जुड़ा कोई मामला कभी सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के निकटस्थ रहे पूर्व सांसद छोटे सिंह यादव की राय के बिना बनता बिगड़ता नहीं था| आज आलम यह है कि पूर्व सांसद श्री यादव बसपा में है| उनके गृह जनपदों में उत्तर प्रदेश आलू विकास एवं विपणन सहकारी संघ का पूरा चुनाव हो गया| परन्तु पूर्व सांसद श्री यादव पूरी चुनाव प्रक्रिया से या तो स्वयं दूर रहे या दूर रखे गए| जानकारों का कहना है कि वह जितने साल सपा में रहे बसपा के तौर तरीको के कारण वहां उतने महीने भी रह पाना मुश्किल है| हमे लगता है कि उनके चेले दिगम्बर सिंह यादव तो हाथी की सवारी नहीं कर पाए परन्तु चेला अपने गुरु का हाथ कांग्रेस के हाथ में देने में देर सवेर कामयाब हो जायेगा| अगर वास्तव में ऐसा हुआ तब फिर चुनाव मैदान में ऐसा जबरदस्त घमासान होगा कि लोग देखते ही रह जायेंगे| देखना है पूर्व सांसद का मौन कब तूफ़ान से पहले की शांति की तरह अपने हमे प्रेषित अघोषित विरोधियों पर कहर बन कर टूटता है|
हमारा परिवार- पद के लिए छोटा परिवार और वोट के लिए बड़ा परिवार
चाहे जिस पार्टी का छोटा बड़ा नेता हो अपने आपको जनता के सेवक साथी और क्षेत्र की जनता को अपना परिवार बताते नहीं थकता| परन्तु नेताजी आखिर नेता जी ठहरे| वह पदों के लिए हमेशा छोटे परिवार की हिमाकत करते हैं| प्रधानी से लेकर कितना ही बड़ा पद क्यूँ न हो उसके लिए उनके छोटे परिवार में सदैव सर्वश्रेष्ठ प्रत्याशी रहते हैं| पुत्र पत्नी भाई मामियों और यहाँ तक कि पुराने भरोसेमंद और उससे ज्यादा गर्जमंद नौकर चाकर तक इस श्रेणी में आरक्षण के चक्रव्यूह की काट के लिए मजबूरी में आ जाते हैं|
परन्तु जब मतदान की नौबत आती है तब नेताजी का परिवार रातो रात बढ़ जाता है| जितना बड़ा चुनाव क्षेत्र उतना ही बड़ा परिवार| उतना ही लच्छेदार भाषण| परन्तु धीरे धीरे जनता समझने लगी है कि नेताजी का पूरा परिवार वास्तव में क्या है| नतीजतन जिला पंचायत चुनाव में पत्नियाँ हारी, बेटे हारे, पति हारे, भाई हारे, नौकर हारे और मामियां हारी| जनता ने लगता है कि हिसाब किताब बराबर करने की ठान ली है| देखना है यह सिलसिला विधानसभा चुनाव में जारी रहता है या नहीं| अब नेता अगर डाल-डाल है तो जनता पात पात है|
हसने और गाल फुलाने की कवायद एक साथ हो रही है- जनता रो रही है|
सावन का महीना है- कदम कदम पर मस्ती और शोखी बरस रही है| ऊपर से चुनाव की आहट नए दोस्त दुश्मन बना रहे हैं| दुश्मनों में दोस्तों की तलाश हो रही है| बसपा सपा के बाद रामलला के दोस्त ने भी अपनी पार्टी के प्रत्याशियो की घोषणा कर दी है| लोकसभा चुनाव में दो दिग्गजों ने पिछडो की एकता के नाम पर हाथ मिलाया था| चुनाव परिणाम आते ही साथ छूट गया| अब दोनों एक दूसरे के पीछे पड़ गए हैं| सैफई के पहलवान ने लोधियों के कथित तालमेल के खातिर सदर सीट से रामलला के दोस्त की सजातीय पूर्व विधायक को पार्टी प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतार दिया है| जबाब में रामलला के दोस्त ने इसे चुनौती मानकर तथा अपने आपको पार्टी का सबसे बड़ा नेता साबित करने के लिए व्यापारी वर्ग के नौजवान को अपना आशीर्वाद देकर मैदान में उतार दिया है|
जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष अब वहां से चुनाव लड़ेंगे जहाँ से सदर सीट का सपा प्रत्याशी भाजपा उमीदवार के रूप में कई बार विधायक रह चूका है| इसे कहते हैं हँसना और गाल फुलाना एक साथ करने की कवायद| इस राजनीती में कब कौन किसके साथ हो जाए बिछड़ जाए और फिर कब वापस आ जाये कह नहीं सकते|
बात यहीं पर नहीं रुकी| कभी सैफई के पहलवान के दरबार में जिन दद्दू की सीढ़ी एंट्री थी उनका डॉक्टर बेटा अब अमृतपुर में सैफई के पहलवान के नजदीकी रिश्तेदार और जिले के एक मात्र सपा विधायक को सीधी टक्कर रामलला के दोस्त की पार्टी के उम्मीदवार के रूप में देगा| अब वर्षो बाद फायर ब्रांड साध्वी की भाजपा में वापसी हुई है| वह प्रदेश प्रभारी भी है| ऐसे हालात में जिले में एक भी प्रत्याशी उनका सजातीय न हो यह कैसे सम्भव है? बसपा के दबंग विधायक अपनी सीट सुरक्षित हो जाने के कारन अब पार्टी के आदेश पर अमृतपुर से मैदान में उतरेंगे| वर्ष १९८० में भाजपा से पूरे देश में जीते दो सांसदों में से एक स्वर्गीय दयाराम शाक्य के बेटे भी सम्भवतः अमृतपुर से भाजपा के प्रत्याशी होंगे| यह हालात तो तब है जब कांग्रेस और भाजपा सहित पीस पार्टी महान दल जैसी पार्टियों ने अपने प्रत्याशी खड़े नहीं किये हैं| मैदान सजने दीजिये, सभी दिग्गज नेता जातीय जमातो की पगड़ी पहिने सामने आयेंगे|
यह सब तमाशा देखकर जनता रो रही है| जाति बिरादरी के इन करतबों की बजह से गली गाँव चौपालों, नगर, मोहल्लों में सामाजिक मुद्दों विकास कार्यों आदि की चर्चा ही नहीं हो रही| सब कुछ जाति बिरादरी के सहारे हो रहा है| जाति बिरादरी के खिलाड़ी अपनी- अपनी जाति के गुरूर में बंशी बजा रहे हैं|
वोटर भैया ! रोने धोने की जरूरत नहीं है| अब भी कुछ बिगड़ा नहीं है| सब कुछ तुम्हारे हाँथ में है| तुम्हारी एक हुंकार पर सब कुछ सही हो जाएगा| खड़े हो जाओ तन कर मुट्ठी बांधकर वोट डालने के लिए| किसे वोट दो यह तुम तय करो| इसके लिए किसी का हस्तक्षेप मानो| हमें वोटर भैया के विवेक पर पूरा भरोसा है| लेकिन पूरी श्रद्धा आस्था और पाकी जगी के साथ मतदान जरूर करना| यकीन मानो अगर आपने मतदान केन्द्रों पर सावन और रमजान के मुबारक महीनो की तरह आस्था विश्वास और श्रद्धा दिखाई तब फिर आपको जातिवाद, परिवार्वादा, विरासत, बिरादरी, सांप्रदायिकता धन बल बाहुबल झाँपे के बल पर अपनी राजनीति चमकाने वालों के मुकाबले सच्चा और अच्छा जन प्रतिनिधि मिलेगा| आगे मर्जी आपकी| हां इतना तय है कि अगर आपने शत प्रतिशत मतदान की हिम्मत दिखाई तब फिर वोटर भैया आपको पांच साल तक महंगाई, भ्रष्टाचार और जन समस्याओं के साथ ही अपने जन प्रतिनिधि के कथित काले कारनामों के लिए रोना धोना नहीं पडेगा| वोटर भैया याद रखो लोकतंत्र के असली मालिक आप है होगा वही जो आप चाहेंगे| अब आप क्या चाहते है यह आप ही जाने|
और अंत में-……………..
पुलिस मित्र की बानगी..
कोतवाली क्षेत्र के ही प्रतिष्ठित डाक्टर हैं| अपने जरूरी काम से मोटर साइकिल से जा रहे थे| चेकिंग हुयी कागजात नहीं थे| डाक्टर ने कहा हम अभी घर से लाकर कागज दिखाई देते हैं| मोटर साइकिल सड़क किनारे खड़ी करने को कहा गया| मोटर साइकिल की चाबी भी ले ली गयी| डाक्टर साहब शीघ्र ही घर से गाडी के कागज़ लेकर पहुँच गए| लेकिन तब तक गाडी कोतवाली भेज दी गयी| बेचारे कोतवाली पहुंचे कागज़ दिखाए जांच परख कागजों की हुयी कागज़ सही थे| एक सौ के नोट की फरमाईश हुयी बेचारे ने वह भी दिया| गाडी की चाबी मिल गयी| गाडी लेकर बाहर आये| देखने पर पता लगा कि एक घंटे पहले जिस टंकी को फुल कराया था अब उसमे घर तक पहुँचने लायक भी पेट्रोल नहीं है| बेचारे पर क्या गुज़री होगी इसका अनुमान करना कठिन नहीं है| यह है सर से लेकर पैर तक दूध में नहाई और मुंह में सोना डाले हमारी मित्र पुलिस|
जय हिंद………………..
(लेखक वरिष्ट पत्रकार के साथ वकील व समाजवादी चिंतक है)
प्रस्तुति-
सतीश दीक्षित (एडवोकेट)
1/432, आवास विकास कालोनी फर्रुखाबाद
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