Monday, December 23, 2024
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हैलो डाक्टर: ठंड में बेबी का कैसे रखें ख्याल जानें डॉ. बीके चौधरी की सलाह


फर्रुखाबाद:(दीपक-शुक्ला)आपने अपने बड़े बुजुर्गो को कहते सुना होगा कि मौसम में बदलाव आने पर नवजात शिशु की देखभाल पर खास ध्यान देना चाहिए। दरअसल मौसम में बदलाव आने पर वातावरण का तापमान गिरने लगता है। आपके बेबी के शरीर को इसके अनुसार ढलने में समय लगता है।  बदलता मौसम और तापमान में लगातार उतार-चढ़ाव सामान्य तौर पर शरीर के लिए दिक्कतें पैदा करता है। उसपर आजकल कभी भी होने वाली बारिश स्थिति को और भी चुनौती से भरा बना देती है। वयस्कों के लिए ही यह मौसम कई शारीरिक समस्याओं की वजह बन सकता है। ऐसे में छोटे बच्चों पर तो इसका असर और भी ज्यादा हो सकता है। 0-6 साल की उम्र के बच्चे जो इस तरह के मौसम का
पहली बार सामना कर रहे होते हैं, उनका खास ख्याल रखना जरूरी होता है। अक्सर माता-पिता यह समझ नहीं पाते कि ठंड के मौसम में बच्चों को किस तरह के कपड़े पहनाए रखे जाने चाहिए। वे या तो बहुत सारे कपड़े पहना देते हैं या फिर कई बार सामान्य पतले कपड़ों में ही बच्चे को रहने देते हैं। ये दोनों ही स्थितियां बच्चे के हिसाब से मुश्किल खड़ी कर सकती हैं। जन्म के पहले बच्चा माँ के भीतर एक सुरक्षित और आरामदायक कवच में रहता है। नौ महीने तक यही उसकी आदत में होता है। जब वह
बाहर आता है तो उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती ही बाहर के वातावरण से सामंजस्य बैठाने की होती है। उसका शरीर धीरे-धीरे इस बाहरी वातावरण को अडॉप्ट करता है।
इसलिए जन्म से कम से कम 6 माह तक बच्चों को इस मौसम में सुरक्षित रखना जरूरी है। आइए जानें शहर के आवास विकास में सेवायें दे रहे बाल रोग विशेषज्ञ बीके चौधरी से की सर्दियों में बच्चो को क्या बीमारी होती हैं और उनका निदान और बचाव क्या है|

बच्चे को होने वाली समस्याएं
डॉ. बीके चौधरी से जेएनआई टीम नें बात की तो उन्होंने बताया कि ठंड के मौसम में केवल सर्दी-जुकाम ही नहीं है जो बच्चों को परेशान कर सकता है। इसके अलावा बुखार, उल्टी, दस्त, स्किन इंफेक्शन या रैशेज और फुंसियां, पेट दर्द, ड्राय कफ, डिहाइड्रेशन,
निमोनिया, वायरल इंफेक्शन और कुछ मामलों में सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम के शिकार भी बच्चे हो सकते हैं। सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम की स्थिति जरूरत से ज्यादा कपड़े में बच्चे को लाद देने से हो सकती है। इसके अलावा शरीर के टेम्परेचर का एकदम घट जाना यानी हाइपोथर्मिया की स्थिति भी बन सकती है। कई बार बहुत तेज धूप बच्चे को सूरज
की हानिकारक किरणों से होने वाले नुकसान भी दे सकती है। इसके अलावा घर में गर्मी के लिए अपनाए गए आर्टिफिशियल साधन जैसे हीटर या सिगड़ी आदि के ज्यादा उपयोग से भी तकलीफ हो सकती है। 

सुरक्षा रखें लेकिन इतनी नहीं
डॉ.चौधरी नें बताया कि ठंड से बच्चों का बचाव करने का सबसे आम तरीका होता है ढेर सारे गर्म कपड़े बच्चे को पहना देना। साधारण कपड़ों के ऊपर गर्म या ऊनी कपड़े, टोपी, मोजे और कुछ मामलों में तो डबल मोजे, बच्चे को पहना दिए जाते हैं। गर्म कपड़े सर्दियों
में बच्चे को सुरक्षित रखते हैं लेकिन ज्यादा कपड़े उसके लिए दिक्कत भी पैदा कर सकते हैं। जरूरी यह है कि बच्चे के लिए कपड़ो की सही लेयर के साथ उसकी नियमित पोषक खुराक और मालिश आदि जैसी सभी चीजों को भी ध्यान में रखा जाए। बच्चे को कड़क और चुभने वाले कपड़ों की जगह नरम कपड़ों की तीन लेयर पहनाएं। इसमें
बनियान या शमीज जैसा कोई कपड़ा, एक पूरी बांहों का कोई टीशर्ट या ऊपरी कपड़ा और एक सॉफ्ट पजामा या ज्यादा ठंड हो तो वार्मर और एक स्वेटर पहनाएं। दिन में और रात में सोते समय हल्के कपड़े ही पहने रहने दें। स्वेटर और मोजे, टोपी आदि उतार दें। क्योंकि यदि बच्चे को पसीना आयेगा तो उसमें ठंडी हवा लगना तकलीफ दे सकता है।
कोशिश करें कि बच्चे को मच्छरदानी में ही सुलाएं। इससे मच्छर और ठंड दोनो से उसका बचाव हो सकेगा। जब आप बच्चे को घर से बाहर ले जाएं तो कार में भी तेज हीटर न चलाएं। अगर बाहर तेज ठंड है तो बच्चे को स्वेटर, टोपी, मोजे आदि पहनाएं। ठंडी हवा में खासकर बच्चे का सिर, मुंह, नाक और छाती ढंकी रहे यह ध्यान रखें। बच्चों को इस मौसम में ऊनी या सिंथेटिक कपड़ों से एलर्जी भी हो सकती है, इस बात का ध्यान रखें और कपड़ों को धोते समय बहुत साबुन का इस्तेमाल न करें। 

अपनी डाइट का रखें पूरा ख्याल
बच्चों की इम्युनिटी बनाए रखने के लिए सही पोषक तत्व देना बेहद जरूरी है। बच्चे को ये सभी पोषक तत्व मिलते हैं मां के दूध से। इसलिए जरूरी है कि नई मां अपने आहार का खास ख्याल रखे। जंक फूड और प्रोसेस्ड फूड से बचकर पौष्टिक और संतुलित भोजन खाएं। आइसक्रीम, ठंडा दही, ज्यादा खट्टे पदार्थ आपके साथ आपके बेबी की सेहत को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए इनसे बचकर रहें। नवजात शिशु के लिए माँ के दूध अमृत से कम नही| डॉ. बीके चौधरी नें बताया कि माँ का दूध पीने से बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है| जिससे बच्चा कम बीमार पड़ता|


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