राजीव गांधी की जिन्दगी का सफरनामा……

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राजीव गांधी नाम के जिस व्यक्तित्व पर कलम चलानी है, वह सहज संभव नहीं है । सौम्य छवि, अविचल मुस्कान से सदा परिपूर्ण रहने वाला चेहरा । यदि यह कहा जाये कि आज जिस संचार क्रांति के दम पर भारत विश्व के शीर्षस्थ देशों में से एक है, उस क्रांति को भारत भूमि पर व्याप्त करने वाला युगदृष्टा, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उनकी पुण्यतिथि 21 मई के मौके पर राजीव गांधी के बारे में पेश है जेएनआई की विशेष रिपोर्ट-

भारत के अब तक के सबसे युवा प्रधानमंत्री राजीव गॉंधी इस देश के सातवें प्रधानमंत्री थे । कहते हैं कि विधी का विधान सुनिश्चित है। इंदिरा गांधी के दो पुत्रों में से संजय जी मूलतः राजनीतिज्ञ थे और राजीव जी को राजनीति से परहेज था। पर 23 जून 1980 का दिन राजीव गांधी के जीवन में बहुत उथल-पुथल और परिवर्तन लाया। छोटे भाई संजय की विमान हादसे में मौत और मॉं इंदिरा का राजनीति में आने का आदेश शायद राजीव जी के जीवन का सबसे बड़ा निर्णय रहा होगा। राजीव गांधी ने अपनी राजनीतिक आरूचि के बाद भी मॉं के आदेश पर राजनीति जीवन शुरू किया । छोटे भाई संजय के स्थान पर 1981 में अमेठी से पहला चुनाव जीता और लोकसभा में पहुंचे।

मुंबई में जन्म के बाद दून स्कूल फिर 1961 में लंदन, 1965 में सोनिया गॉंधी से मुलाकात और 1968 में विवाह, इंडियन एयर लाईंस में पायलट, राजनीति और प्रधानमंत्री निवास से कोसों दूर राजीव गांधी और फिर परिस्थितियोंवश अमेठी से लोकसभा उपचुनाव 1981 में। अमेठी चुनाव में लोकदल के नेता शरद यादव को दो लाख मतों से हरा कर सांसद बने । सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की सबसे बड़ी जनसंस्था लोकसभा उनकी पहली राजनीतिक पाठशाला बनी और फिर कांग्रेस संगठन को जानने, समझने के उद्देश्य से कांग्रेस के महासचिव का जिम्मा मिला। राजीव गांधी राजनीति का अपना कौशल मजबूत करते जा रहे थे, और इस सब में सबसे बड़ी बात यह थी कि उनके व्यवहार से कभी भी यह नहीं प्रतीत हुआ कि वे भारत के प्रधानमंत्री के पुत्र हैं। निश्छलता, सौम्यता, सद्व्यवहार व वरिष्ठजनों का सम्मान राजीव गांधी की राजनीतिक पूंजी थे।

कोई व्यक्ति मानसिक रूप से कितना सुदृढ़ हो सकता है, इसकी मिसाल राजीव थे। पहले छोटे भाई की मृत्यु और चार वर्षों बाद मॉं की नृशंस हत्या, इस सब के बाद भी उनके कदम डगमगाए नहीं और वे और शक्ति के साथ भारत निर्माण की मंजिल की ओर बढ़ते गए । इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद लोकसभा में कांग्रेस का पूर्ण बहुमत था, राजीव गांधी लोकसभा के निर्वाचित सदस्य थे, फिर भी राजनीतिक शुचिता का परिचय देते हुए, उन्होंने पुनः लोकसभा में चुनाव समय पूर्व करवाए ताकि कोई यह अंगुली न उठा सके कि जनता ने इंदिरा जी को देखकर कांग्रेस को बहुमत दिया था, राजीव को नहीं । और राजीव गांधी के नेतृत्व में भारत के लोकतंत्र में इतिहास में कांग्रेस ने 542 में से 411 सीटें जीतकर एक नया रिकार्ड बनाया।
सन् 1982 के एशियाई खेलों के दौरान राजीव गॉंधी सांसद के नाते विभिन्न निर्माण स्थलों का निरीक्षण करते व कार्य करने वाले समूहों के साथ सतत् रूप से उपस्थित रहते जिससे उस समय के एशियाई खेलों का आयोजन आज भी भारत के सफलतम आयोजनों में से एक माना जाता है। जबकि ऐसा करना उनके उत्तरदायित्वों में सम्मिलित नहीं था किंतु राजीव गांधी के लिये भारत की प्रतिष्ठा सर्वोपरि थी। राजीव गॉंधी ने सत्ता की कमान सम्हालते ही यह निर्णय सबसे पहले लिया कि देश में लाइसेंस प्रणाली को समाप्त किया जाए। हर छोटी-बड़ी बात के लिए लाइसेंस और लाइसेंस के लिए रिश्वत। और राजीव गांधी सबसे पहले इस भ्रष्टाचार की जड़ को ही समाप्त करना चाहते थे

भारत की आजादी के बाद यदि किसी भी प्रधानमंत्री ने अमेरिका से रिश्ते सुधारने की सोच रखी व पहल करी तो निश्चित ही यह श्रेय राजीव गॉंधी को है और शायद राजीव गांधी की पहल द्वारा तैयार करी गयी पृष्ठभूमि पर आज भारत-अमेरिका संबंध मजबूत एवं मधूर हैं। भारत को इन संबंधों से जो लाभ मिल रहा है उसका आंकलन किया जाए तो आज की पीढ़ी राजीव जी की ऋणी है । इस दौरान विशेष बात यह भी कि भारत का सांमजस्य और सद्भाव अपने पुराने मित्र रूस के साथ भी खराब नहीं रहा। राजीव गांधी और तत्कालीन रूसी राष्ट्रपति मिखाइल गोर्वाच्योव की मित्रता ने उस समय एक नई मिसाल कायम करी थी। राजीव गॉंधी इस बात को समझते थे कि किसी भी देश की प्रगति में सबसे बड़ा ईंधन उसका मानव संसाधन है, यह मानव संसाधन सुशिक्षित और समझदार होगा तो भारत की तस्वीर एवं तकदीर बदलने में देर नहीं लगेगी। संभवतः इसलिये उनकी सरकार ने विज्ञान एवं तकनीक के विकास पर सर्वाधिक जोर दिया और सन् 1986 में एक राष्ट्रीय नीति की घोषणा करी जिसके मूल में शिक्षा के उन्नयन की बात थी इसके तहत देश भर में आधुनिक स्तर की उच्च शिक्षा देने हेतु योजनाएं संचालित की गयीं । शायद इसके मूल में यह सोच भी हो कि अच्छी शिक्षा से अच्छा रोजगार मिलेगा और यह रोजगार युवाओं को उस समय फैले आतंकवाद से दूर रखेगा ।

भारत एक प्राचीन सभ्यता जरूर है परंतु यह एक युवा राष्ट्र भी है। मैं युवा हूं और मेरे कुछ सपने हैं, जिनमें सबसे बड़ा स्वप्न यह है कि मेरा देश स्वतंत्र, सशक्त और आत्मनिर्भरता के साथ मानवता की सेवा करने वाला अग्रणी राष्ट्र हो । ऐसी सोच वाले राजीव गांधी ने सही मायनों में 21वीं सदी के अनुरूप भारत के विकास का मास्टर प्लान सोचा था । इंदिरा गांधी ने बैंको का राष्ट्रीकरण और राजा महाराजाओं के प्रिवीपर्स समाप्ति जैसे बड़े निर्णय लिये वहीं राजीव गांधी ने उनसे एक कदम आगे बढ़ते हुए एक युवा स्वप्नदृष्टा प्रधानमंत्री की छवि के अनुरूप कार्य किया और यह कहा कि मेरे पास वह योजना है जो हमारे भारत को बहुत मजबूती के साथ 20वीं सदी से 21वीं सदी में ले जायेगी जहां भारत विश्व नायक के रूप में उभरेगा।

राजीव गांधी के गद्दी संभालने के समय उन्हें आतंकवाद से जलता झुलसता भारत मिला था। उत्तरी भाग में पंजाब तो उत्तरपूर्व में असम जैसे राज्य के आम नागरिक आतंकवादी और आतंकी घटनाओं से संघर्ष कर रहे थे और यह राजीव गांधी के लिए एक बड़ी पीड़ा का कारण था। उन्होंने पंजाब में आतंकवाद के हल करने की दिशा में अग्रसर होते हुए संत हरचरण सिंह लोंगोवाल से आग्रह किया कि ऐसा कुछ सार्थक किया जाए कि जिसके परिणामस्वरूप पंजाब की जनता को आतंक की आग से बचाया जा सके और इसकी परिणिति के रूप में राजीव-लोंगोवाल समझौता सामने आया जिसका त्वरित प्रभाव यह रहा कि पंजाब के लोगों ने पहली बार मानसिक रूप से यह स्वीकार कर लिया कि पंजाब से आतंकवाद खत्म हो सकता है, और पंजाब के युवा पुनः देश के मुख्य धारा में सम्मिलित हो सकते हैं । यद्यपि संत लोंगोवाल के निधन से समझौते के परिणाम प्राप्त होने में समय जरूर लगा पर इस मानसिक दृढ़ता के बल पर ही पंजाब के लोगों ने धीरे-धीरे आतंकवाद पर विजय प्राप्त करी और आज पंजाब में सब कुछ सामान्य है ।

ऐसा ही कुछ असम में भी हुआ जहां उत्तर भारत के पंजाबियों और राजस्थान के मारवाड़ियों को स्थानीय मूल निवासी अपना शत्रु मान रहे थे । राजीव गांधी की पहल पर यह प्रयास किया गया कि यह खाई पट सके और असम में सामुदायिक सौहाद्र बना रहे, यह समस्या अभी भी यदा कदा तकलीफ देती रहती है किंतु राजीव जी के प्रयासों से यह आज भी उतनी भीषण और विकराल नहीं हो पाई है । श्रीलंका में शांति सेना भेजने का आग्रह स्वीकार कर राजीव गॉंधी ने एक बड़ा फैसला लिया था। श्रीलंका में तमिल और सिंहली दो विभिन्न समुदायों को मानने वाले लोग रहते हैं जिनमें बहुमत सिंहली लोगों का है जो मुख्यतः श्रीलंका के मध्य एवं दक्षिण भाग में रहते हैं। सिंहली बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं जिनका टकराव श्रीलंका के उत्तर एवं पूर्व मे रहने वाले तमिल लोगों से था। यह तमिल लोग सनातन हिंदू धर्म के अनुयायी हैं। यद्यपि सिंहली भी भारतीय मूल के ही हैं और उन धर्म प्रचारकों के वंशज हैं जो सम्राट अशोक के काल में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये श्रीलंका गये थे।

दोनों समुदायों में झगड़े की शुरूआत तमिलों द्वारा अपने लिये स्वशासन के अधिक अधिकार की मांग से शुरू हुई, जो आगे जाकर स्वतंत्र तमिल राष्ट्र की मांग बन गयी। भारत की चिंता इसलिये स्वाभाविक थी कि स्वतंत्र तमिल राष्ट्र के प्रस्तावित मानचित्र में श्रीलंका के उत्तर और पूर्वी भाग के साथ भारत के संपूर्ण तमिल व तमिल सदृश प्रदेशों जैसे तमिलनाडू, केरला व कर्नाटक आदि शामिल थे व इन तमिल विद्रोहियों ने भारत के प्रतिद्वंदी राष्ट्र पाकिस्तान से भी सांठ-गांठ शुरू कर दी थी। और इन्हीं सब कारणों से राजीव गांधी ने श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रप्रति जूलियस जयवर्धने के आग्रह पर शांति सेना को वहां भेजा क्योंकि वह भी यह दबाव डाल रहे थे कि भारत ने यदि उन्हें सहयोग नहीं किया तो वह अन्य किसी पड़ौसी राष्ट्र से सैन्य सहयोग लेंगे। अंततः 10 महीनों के बाद भारतीय शांति सेना वापस आयी। उस समय ऐसा लगा कि यह मिशन अभी अधूरा है पर जिनके आग्रह पर शांति सेना वहां गयी थी उनके हिसाब से हमें वापस भी आना था ।

राजीव गांधी को भारत की युवा शक्ति का भान एवं सम्मान था। और वह यह मानते और समझते थे कि भारत का युवा स्वयं निर्धारित करे कि उसका जनप्रतिनिधि कौन और कैसा हो ? उन्होंने एक दूरगामी कदम उठाते हुए देश भर में मतदान की निर्धारित न्यूनतम आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करने का कानून पारित किया। यह भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री की युवा पीड़ी को एक बड़ी सौगात थी। इस निर्णय से भारत का लोकतंत्र और सशक्त व परिपक्व हुआ और भारत के युवाओं में यह आत्मविश्वास आया कि जब हम अपना जनप्रतिनिधि तय कर सकते हैं तो हमारे लिये कुछ भी असंभव नहीं है । इस प्रकार का ही एक बड़ा निर्णय सरकारी कार्यालय और संस्थानों के बारे में लिया गया, इन सब केंद्रीय कार्यालयों में कार्यदिवस 6 से घटाकर 5 कर दिये गये । यद्यपि कुल कार्य अवधि इससे प्रभावित नहीं हुई, यह सब निर्णय स्पष्ट करते हैं कि राजीव जी के लिये दूरगामी एवं त्वरित फैसले लेना बहुत आसान था बस उन्हें यह स्पष्ट हो कि यह सब देशहित और आम जनता के लाभ के लिये है ।

निसंदेह राजीव गांधी एक ऐसे शासनाध्यक्ष हैं जिन्होंने सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने का साहस किया और माना कि उनकी सरकार मे ही जनकल्याण के लिये दिल्ली से भेजे गये ”एक रूपये में से केवल 13 पैसे जनता तक पहुंचते हैं । शेष 87 पैसे बीच का भ्रष्ट तंत्र हजम कर लेता है ।” यह भ्रष्टाचारियों से लड़ने की राजीव शैली थी जिसमें भ्रष्टाचारियों को खुली चुनौती थी कि तुम्हारे कारनामे सरकार से छुपे नहीं हैं । शाहबानो प्रकरण में मुस्लिम पर्सनल लॉ के सम्मान की बात हो या अयोध्या में रामलला के दर्शन की अनुमति हो राजीव जी जैसा साहस एवं समन्वय अतुलनीय है ।
सन् 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में यदि राजीव गांधी चाहते तो जोड़तोड़ कर सरकार बनायी| उन्होंने जनादेश का सम्मान करते हुए विपक्ष में बैठना मंजूर किया और जनता दल की सरकार बनी । पर ढाई साल के इस नवी लोकसभा के कार्यकाल में दो-दो प्रधानमंत्री ने कुर्सी संभाली लेकिन कोई भी देश नहीं संभाल सका और फिर 1991 में दसवीं लोकसभा के चुनाव की तैयारी शुरू हो गयी। तीन चरणों में होने वाले इस मतदान के पूर्व राजीव गांधी को देश की जनता ने यह एहसास दिला दिया था कि 1989 में उनसे भूल हुई है और पूरा देश फिर एक बार राजीव गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है। राजीव गांधी अपने व्यवहार के अनुरूप सुरक्षा की परवाह करे बगैर सीधे जनता के बीच चले जाते थे और ऐसी ही एक चुनावी सभा में 21 मई 1991 को एक आत्मघाती हमले में उनका निधन हुआ। उनके निधन के उपरांत आज भी देश और सरकार चल रहे हैं पर यह सत्य है कि यदि राजीव जी को काल ने उस समय हमसे नहीं छीना होता तो आज भारत की तस्वीर और भी बेहतर होती । आज भी कांग्रेस में कई योग्य एवं प्रतिभाशाली राजनेता हैं परंतु राजीव जी के स्थान की पूर्ति संभव नहीं है ।