डेस्क: इस समय चारो ओर शादियों की धूम मची हुई है कभी शादियों में एचऍमटी की घड़ी का चलन दुल्हे के लिए सबसे अमूल्य तौफा हुआ करता था एक ऐसा दौर भी था जब परीक्षा पास करने पर बच्चों को उपहार में एचएमटी घड़ी दी जाती थी और ऑफिस से रिटायर होने पर स्मृति चिह्न के तौर पर भी एचएमटी घड़ी ही दी जाती थी।लेकिन अब घड़ी का इस्तेमाल शायद ही कोई करता हो। डिजिटलाइजेशन की वजह से घड़ी की जगह अब मोबाइल फोन ने ले ली है। वहीं चाबी वाली घड़ियों की जगह अब बाजार में एनालॉग वॉच प्रचलन में आ गई है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि बदलते समय के साथ ही घड़ियों का रूप भी काफी बदल चुका है। घड़ियों का एक दौर ऐसा भी था जब घड़ी मतलब सिर्फ एचएमटी हुआ करता था। 90 के दशक का वह दौर आज भी जिन लोगों को याद होगा,वह जानते होंगे कि कैसे उस जमाने ने एचएमटी लोगों की शान बन गई थी।एचएमटी ने हाथ घड़ी की शुरुआत समय देखने के लिए की थी लेकिन कंपनी को यह समझने में देरी हो गई समय देखने के साथ ही अब लोगों के लिए घड़ी फैशन स्टेटमेंट भी बन गई थी। यही वजह थी कि समय के साथ एचएमटी घड़ी में कोई बदलाव नहीं आ पाया। 1990 तक को सबकुछ ठीक था। लेकिन इसके बाद से ही कंपनी की माली हालत खराब होने लगी थी और यहीं से इसका बुरा समय शुरू हो गया। ऐसे में लगातार घाटे की वजह से आखिरकार सरकार ने इसे बंद करने का फैसला लिया।1980 के अंत तक बाजार में अन्य प्रतिस्पर्धी कंपनियों ने क्वार्ट्ज घड़ियों को बेचना शुरू कर दिया। उस दौरान एचएमटी को टाटा समूह की टाइटन कंपनी से कड़ी टक्कर मिलने लगी और एचएमटी की घड़ियों को पुराने जमाने की तकनीक कहा जाने लगा। भारत में 1991 तक हाथ घड़ी के बाजार में एचएमटी का परचम लहराता रहा। कंपनी की टैगलाइन ‘देश की धड़कन’ ने इसे करीब तीन दशक तक लोगों के बीच काफी लोकप्रिय रखा। लेकिन 1993 में जब दुनिया के लिए भारतीय बाजारों को खोल दिया गया, तभी से एचएमटी का बुरा समय शुरू हो गया था।