Monday, December 23, 2024
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मणीन्द्र की शहादत: अनशन करके प्राण गवाये,जिसने कुछ भी आह नही की

फर्रुखाबाद:(दीपक शुक्ला) महान क्रांतिकारी एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी मणीन्द्र नाथ बनर्जी का नाम किसी चर्चा का मोहताज नही रहा| 20 जून को शहीद मणीन्द्र नाथ बनर्जी का 89 वां पुन्य स्मृति दिवस मनाये जाने की तैयारी चल रही है| जिसमे देश के दूर दराज से आजादी के मतवाले रहे और उनके परिजन शिरकत करेंगे|
मणीन्द्र नाथ के विषय में जाने
शहीद मणीन्द्र नाथ बनर्जी का जन्म 13 जनवरी 1909 में वाराणसी के सुबिख्यत एवं कुलीन पाण्डेघाट स्थित माँ सुनपना देवी के उदर से हुआ था| इनके पिता ताराचन्द्र बनर्जी एक प्रसिद्ध होम्योपैथिक के चिकित्सक थे| उनके पितामह श्रीहारे प्रसन्न बनर्जी डिप्टी कलक्टर के पद पर आसीन रहे| जिन्होंने 1899 में बदायूं से बिर्टिश शासन की नीतियों से दुखी होकर अपने पद से त्याग पत्र दे दिया और स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय हो गये|
श्री बनर्जी आठ भाई थे इन आठो भाईयो को मात्रभूमि के प्रति बहुत लगाव था| उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका अदा की| काकोरी कांड से सम्बंधित राजेन्द्र लाहिडी को फांसी दिलाने में सीआईडी के डिप्टी अधीक्षक श्री जितेन्द्र नाथ बनर्जी ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी| जिसे मणीन्द्र नाथ बनर्जी ने बर्दास्त ना कर सके और उन्होंने जितेन्द्र से बदला लेने की ठान ली| 13 जनवरी 1928 को जितेन्द्र नाथ बनर्जी से वाराणसी गुदौलिया में बदला ले लिया| इस शौर्यपूर्ण कार्य के लिये उन्हें दस वर्ष की सजा व तीन माह तन्हाई की सजा मिली| 20 मार्च 1928 को उन्हें वाराणसी केन्द्रीय कारागार से केन्द्रीय कारागार फतेहगढ़ भेजा गया| जंहा उन्होंने अन्य राजनैतिक बन्दियो को उच्च श्रेणी दिलाने के लिये भी संघर्ष किया| 20 जून 1934 को सांयकाल आठ बजे कारागार के चिकित्सालय में उन्होंने अंतिम साँस ली| उनका अंतिम संस्कार 21 जून को पांचाल घाट पर गंगा किनारे किया गया था|
प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी 20 जून को सुबह उनके प्रतिमा स्थल सेन्ट्रल जेल परिसर पर एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन होगा| जिसमे जिले के सभी अधिकारी व जाने पहचाने चेहरे उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करेगे|
मणीन्द्र नाथ नें 66 दिन किया था अनशन
12 साल की सजा होनें के बाद मणीन्द्र नाथ बनर्जी सेंट्रल जेल की बी क्लास में रखा गया था| जहाँ उनकी  मुलाकात क्रन्तिकारी मन्मथनाथ गुप्ता व यशपाल से हुयी| उन्होंने क्रन्तिकारी साथियों को सुबिधायें दिलानें के लिए कुल 66 दिन अनशन किया| जिसके बाद वह निमोनिया का शिकार हो गये| अन्तिम समय मन्मथनाथ के सीने पर अपना सिर रखकर देश को अलविदा कर दिया|
नाबालिक सूरजवली नादिरा भी जेल में हुई थीं शहीद
क्रन्तिकारी संगठनों से जुड़ी 16 वर्षीय सूरजवली नादिरा नें अपने साथियों के साथ कानपुर के जनरल पोस्ट आफिस पर दिन दहाड़े धावा बोल दिया और सुरक्षा कर्मी व कार्य कर रहे कर्मचारियों को बेकार कर 36 हजार रूपये लूट लिये| लेकिन जल्द बाजी में एक बड़ी गलती यह हो गयी कि नादिरा टेलीफोन का तार काटना भूल गयी| किसी ने पुलिस को फोन कर दिया और उन्हें पुलिस ने कुछ देर प्रयास के बाद गिरफ्तार कर लिया| नादिरा को सेशन न्यायालय से आजीवन कारावास की सजा हुई जिसे बाद में हाई कोर्ट नें 10 साल कारावास के रूप में बदल दिया| उन्हें सेंट्रल जेल लाया गया और उनके साथ जेल के भीतर अमानवीय व्यवहार किये गये| जेल में राज बंदियों के साथ अमानवीय दमन के खिलाफ भूख हड़ताल शुरू हुई| 20 जनवरी 1934 को सूरजवली नादिरा की हालत बिगड़ गयी| 24 जनवरी को उनकी हालत चिंता जनक होनें पर जेल से बाहरी अस्पताल में उपचार के लिए भेजा गया| 2 फरवरी 1934 को सूरजवली नादिरा नें देश की खातिर अंतिम साँस ली| सेंट्रल जेल नें मणीन्द्र नाथ बनर्जी व नादिरा की मौत का कारण भूख हड़ताल नही माना| अंग्रेजो के द्वारा चल रहे जेल प्रशासन नें कागजों में हेरा-फेरी कर जो चाहा वह लिख दिया| सेंट्रल जेल में हुए बलिदानों के बाद जब देश आजाद हुआ तो केंद्र सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री रफी अहमद किदवई व कन्नौज के नेता कालीचरण टंडन फतेहगढ़ जेल गये और मजिस्ट्रियल जाँच के आदेश दिये| उसका परिणाम भी कुछ नही निकला|
अनंत राम श्रीवास्तव के प्रयास से लगी थी मणीन्द्र की प्रतिमा
कन्नौज के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अनंत राम श्रीवास्तव के प्रयास से मणीन्द्र नाथ बनर्जी की प्रतिमा जेल  गेट के बाहर लगा दी गयी जहाँ प्रतिवर्ष 20 जून को शहादत दिवस मनाया जाता है| लेकिन शहीद नादिरा का इतिहास के पन्नो के अलावा कहीं भी उल्लेख नही किया जाता|अनंत राम श्रीवास्तव की भी अब मौत हो चुकी है|

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