फर्रुखाबाद:(नगर संवाददाता) शुक्रवार को मोहर्रम यौम ए आशूरा पर अलमदारी नहीं हुई मुसलमानों ने सीनाजनी कर मातम किया| इसके साथ ही रंजो गम और मातम संग ताजियों हुए सुपुर्द ए खाक हुए| लेकिन कोविड के चलते इस बार जुलूस नही निकला बल्कि बाइकों व रिक्शा पर ताजिया करवला पंहुचे|
अपने जीने का हक अदा कर ले, जिंदगी अपनी आईना कर ले, जुल्मत ए खत्म होती जाएंगी आइए, जिक्र ए कर्बला कर ले कुछ इसी अंदाज में आशिक ए हुसैन जब कर्बला ताजिया लेकर पहुंचे तो बस दिल में हुसैन का नाम चेहरे पर रंज और मन में गम लिए किरदार ए कर्बला का मंजर कुछ यूं बयां कि हर आंख नम दिखाई दी यौम ए आशूरा के दिन शहर की फिजा भी मानो हुसैनी हो गई कोविड का पालन करते हुआ जब शहर से लेकर फतेहगढ़ तक हुसैनी दस्ते कर्बला के लिए लब्बाईक या हुसैन नारे हैदरी की सदाएं बुलंद करते हुए निकले|
यौम ए आशूरा के दिन मुस्लिम समाज के लोग अपने-अपने घरों से ताजिया लेकर कर्बला जाते थे हजरत इमाम हुसैन के चाहने वाले जब आगे ताजिया लेकर चलते थे तो उनके पीछे सैकड़ों की तादाद में भीड़ हुआ करती थी मगर इस बार कोविड-19 के चलते लोग अपने घरों से ताजिए मोटरसाइकिल रिश्का लेकर कर्बला पहुंचे|
सरकारी गाइडलाइन का पालन करते हुए शिया मुस्लिम समाज के लोगों ने ठंडी सड़क स्थित वारगाहे जैनविया से उठने वाला मातमी आलम जुलूस नहीं निकाला गया इस मातमी अलग जुलूस में शिया समुदाय के लोग हाथों में अलम लेकर और खूनी मातम करते हुए पहुंचते थे रास्तों में खूनी मातम को देखने के लिए महिलाएं छतों पर और मुस्लिम समाज के लोग रास्तों में आलम जुलूस और खूनी मातम का बेसब्री से इंतजार करते थे उसके बाद आलम जुलूस और खूनी मातम नही हुआ |