जयंती विशेष: मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या!

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फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो) सरफरोशी की तमन्ना रखने वाले आजादी के नायक रामप्रसाद बिस्मिल आज भी दुनिया के लिए मिसाल हैं। आज उनकी जयंती पर जहां पूरा देश उनको नमन कर रहा है, वहीं काशी भी उनसे अपने रिश्तों को टटोल रही है। आजादी की लड़ाई में काशी क्रांतिकारियों का केंद्र बिंदु था। इतिहासकारों की मानें तो काकोरी कांड का सूत्रपात भी काशी से ही हुआ था। काकोरी कांड के नायक रामप्रसाद बिस्मिल ही थे।
क्रांति के दौर में पंजाब, बंगाल और महाराष्ट्र क्रांति का केंद्र हुआ करते थे। वहीं बनारस बंगाल और महाराष्ट्र के बीच सेतु की तरह था। क्रांतिकारी आंदोलन की रूपरेखा तय करने के लिए रामप्रसाद बिस्मिल जी का अक्सर काशी आना हुआ करता था। उस दौर में क्रांतिकारियों के छिपने का ठिकाना काशी विद्यापीठ हुआ करता था।
रास बिहारी बोस, शचींद्र नाथ सान्याल, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के सानिध्य में कई क्रांतिकारी गतिविधियों का काशी में ही सूत्रपात हुआ। इसमें सबसे खास रहा काकोरी कांड। 1897 में आज के ही दिन यानी 11 जून को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में माता मूलारानी और पिता मुरलीधर के पुत्र के रूप में जन्मे थे क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल। अंग्रेजों ने ऐतिहासिक काकोरी कांड में मुकदमे के नाटक के बाद 19 दिसंबर 1927 को उन्हें गोरखपुर की जेल में फांसी पर चढ़ा दिया था।
बिस्मिल की अंतिम रचना
मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या.
दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या !
मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़याल,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या !
ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में
फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या
काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते
यूं सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या
आख़िरी शब दीद के काबिल थी ‘बिस्मिल’ की तड़प
सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या!