क्रिसमस पर जेएनआई का विशेष अंक, जनपद में ईसाइयो का आगमन और प्रथम चर्च का इतिहास

FARRUKHABAD NEWS धार्मिक सामाजिक

फर्रुखाबाद:(दीपक पंडित)  इतिहास के झरोके में झाँकने पर बहुत कुछ कौतुहल पैदा कर देता है| ज्ञान और जानकारी से भरपूर इस अंक में बड़े दिन के शुभ अवसर पर जानिए कि फर्रुखाबाद में ईसाई समुदाय का आगमन कब हुआ और जनपद में कब और कहाँ बना पहला चर्च|
जनपद में 192 साल पहले तक कोई चर्च (ईसाई समुदाय का धार्मिक स्थान) नहीं थी| पहली चर्च वर्ष 1822 में बनकर तैयार हुई| अंग्रेजी फ़ौज के टुकड़ी तो फतेहगढ़ में 1779 में आ चुकी थी उसमे अंग्रेज अफसर भी थे| और उसी टुकड़ी के साथ अपने चैपलेन (फ़ौज की टुकड़ी में धार्मिक आयोजन कराने के लिए नियुक्त अफसर/कर्मचारी/धार्मिक गुरु) साथ आये थे| मगर इसाई समुदाय की प्रार्थना के लिए कोई चर्च नहीं था| फतेहगढ़ कैंप जो की छावनी एरिया में था उसके बाहर पहली चर्च का निर्माण कराया गया था| उस समय तक एक घर (कैम्प) में प्रार्थना होती थी| और अंग्रेजी पैदल सेना का नियुक्त चैपलेन प्रार्थना कराते थे|
फतेहगढ़ में पहली चर्च का निर्माण उस समय कही जाने वाली सर्कुलर रोड (वर्तमान में जय नारायण वर्मा रोड फतेहगढ़) के पास हुआ था| यहाँ एक छोटा सा बाजार लगता था जिसमे छावनी की फ़ौज के परिवार के लोग खरीददारी करने आते थे| इसे गोरा बाजार कहा जाता था| तो फतेहगढ़ की पहली चर्च का निर्माण की रूपरेखा तब बनी जब 1815 में मार्कस ऑफ हेस्टिंग के फतेहगढ़ के प्रवास पर आये| उन्होंने कानपुर छावनी के चीफ चैपलिन को फतेहगढ़ में प्रार्थना से सम्बन्धित आ रही दिक्कतों को लिखा और अंग्रेज हकुमत वाली सरकार ने 4 मार्च 1819 को इस चर्च की स्वीकृति दी|

All Souls Memorial Church

1500 रुपये में चर्च के लिए प्लाट खरीदा गया| 18 जनवरी 1822 को इस चर्च का निर्माण पूरा हुआ और इस पर कुल लागत 20700 रुपये आई| कलकत्ता से फ़ौज की निर्माण इकाई के अफसरों ने इसका मोयना किया और पूरे काम के दौरान चार आर्किटेक्ट बदले गए| रखरखाव के लिए दो ओहदेदार, एक चपरासी और एक सफाई कर्मी नियुक्त किया गया| इस चर्च को ग्रेसियन का नाम दिया गया| एक चौकोर बॉक्स नुमा कमरा बीच का हिस्सा था और दो साइड पेनल इस भवन में बनाये गए थे| पिरामिड आकार का इसका टावर बनाया गया| वर्तमान में रखा का टावर इससे मेल खाता है| सन 1857 में क्रांतिकारियों के धमाके से नुकसान हुआ और इसका काफी हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया| उसके बाद बचे हिस्से का रखरखाव होता रहा| मगर इसके बाद इस चर्च में विशेष गतिविधिओ का जिक्र नहीं मिलता है| इसके पश्चिमे हिस्से उस ज़माने में सिविल सर्जन बता करते थे| अब आपको एहसास हो गया होगा की ये चर्च वर्तमान में पुराना जिला अस्पताल के पिछले हिस्से में और चीरघर से उत्तर में स्थित है|
वर्ष 1863 में इसके कैंपस में एक स्कूल खोला गया था| 1870 में नए सिविल सर्जन डॉ रेड की नियुक्ति के बाद स्कूल कैंपस से शिफ्ट कर दिया गया और सिविल हॉस्पिटल जो कुछ वर्षो पहले तोड़ कर नया भवन बनाया गया वहा बना था| स्कूल सम्भवता वर्तमान में तलैया लेन मोहल्ले में स्थित “लाल स्कूल” वाले भवन में शिफ्ट हुआ|
ये चर्च फतेह्गढ़ की पहली चर्च थी जो की सरकारी थी और जो दुनिया भर के चर्च रिकॉर्ड में दर्ज हुई| इसके बाद 7 जनवरी 1837 में इस चर्च का नाम क्राइस्ट चर्च के रूप में पंजीकृत किया गया| उस ज़माने में फतेहगढ़ में अस्थाई फौजी कैंप स्थापित हुआ था और उस टुकड़ी के साथ उसका चैपलिन भी चला गया| इसके बाद एक बार नबाव हाकिम मेहदी अली खान फतेहगढ़ आये और उन्होंने चुरह का भी दौरा किया और गवर्नर जर्नल को 1825 में पत्र लिखा कि फतेहगढ़ में एक अच्छी चर्च है मगर यहाँ कोई चैपलिन नहीं है| उन्होंने एक स्थायी चैपलिन की मांग की और इसके बाद एक स्थायी चैपलिन की नियुक्ति कर दी गयी| दरअसल में सन 1820 में चैपलिन जे पी हास्टिंग की जवान 31 वर्षीया पत्नी की मौत के बाद वे भी चले गए थे| उनकी पत्नी को वर्तमान में शीशम बाग स्थित कब्रगाह में दफना दिया गया था|
इस चर्च में उस समय की बड़ी अंग्रेज हस्तियों की शादी होती थी| एक चर्चित किस्सा इस चर्च से यूँ जुड़ा की अंग्रेजो के एक ही परिवार के सात लोगो की शादी इसी चर्च में हुई थी और वे सभी अंग्रेज सेना के अंग होते थे| इसमें बेकर ने कलेक्टर डी ग्रुथेर से शादी की तो उसकी छोटी बहन ने कपडे की एजेंसी के हेड क्लर्क से शादी की| बेकर की दो अन्य बहनों ने स्थानीय लोगो से शादी की| ये सभी एक ही परिवार के रिश्तेदारों ने इसी चर्च में एक दूसरे को रिंग पहनाई थी| इसमें चार परिवारों को क्रांतिकारियों ने मौत के घाट उतार दिया था| अंग्रेज अपनी इनसाइक्लोपीडिया में क्रांतिकारियों को दंगाई लिखते है|
नबाब बंगस की सालियों की शादी भी इसी चर्च में हुई-
इस चर्च में आखिरी शादी 23 अगस्त सन 1856 में सर्कुलर रोड पर रहने वाले एक टेंट निर्माता जेम्स डूरंड और हन्नाह हॉलिडे की सम्पन हुई थी| इसके बाद की शादियो का जिक्र रखा चर्च और छावनी स्थित आल सोल्स मेमोरियल चर्च का मिलता है| नबाब बंगस की प्रेमिका/पत्नी हेरिएट ब्रिएच की दो बहनों मेरी अन्न और रोज मारिया ने अंग्रेज अफसरों से विवाह भी इसी चर्च में किया था| ये सभी परिवार इसी चर्च में सन्डे को प्रार्थना करने के लिए जाते थे|
चर्च की दीवारों पर लगे टेबलेट (शिलालेख) क्रांतिकारियों के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए अंग्रेज गोरो से पट गए थे| चर्च की हर दीवार पर टेबलेट लग चुके थे| नए टेबलेट लगाने के लिए जगह की कमी पड़ने लगी थी| और क्रांतिकारियों के धमाके ने इस चर्च की रौनक समाप्त कर दी थी| और फिर प्रार्थनाये और शादी समारोह छावनी स्थित आल सोल्स मेमोरियल चर्च और रखा चर्च जो 1856 में बनकर तैयार हुई थी में होने लगी|
सम्दर्भ- Fathgarh Camp (1777- 1857) by C.L. Wallace MC ICS Megistret and collector Farrukhabad