फर्रूखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो) विधाता ने जो रच दिया है संसार में वही सबकुछ होता है सीता स्वयंबर में पहले से श्रीराम-सीता विवाह तय था जिसे विधाता ने रचा था उसी अनुसार हुआ।
शहर के पण्डाबाग सत्संग भवन में मानस सम्मेलन के चौथे दिन डॉ0 रामबाबू पाठक के संयोजन में चल रही मानस कथा में उरई जालौन से आयीं मानस कोकिला मिथलेश दीक्षित ने सीता स्वयंबर प्रसंग पर कहा कि जनक जी ने घोषणा कर दी कि शिवजी के धनुष को जो तोड़ेगा उसी को उनकी पुत्री सीता अपना वर चुनेगी शिवजी के धनुष को जब कई वीर राजा हिला नहीं सके। तो जनक जी ने कहा कि धरती वीरों से खाली हो गयी इस पर लक्ष्मण जी ने क्रोधवश इसका विरोध किया। गुरू वशिष्ट ने श्रीराम को आदेश दिया ‘‘उठऊ राम भजेऊ धनु चापा सीता ने धरती माता से प्रार्थना की कि श्रीराम को धनुष तोड़ने में मदद करे तब श्रीराम ने धनुष पर प्रतंचा चढ़ाकर धनुष तोड़ दिया। तो सीता की माता सुनैना कहती है ‘‘झुक जाओ तनिक रघुवीर लली मेरी छोटी सी’’ मंगल गीत गाये जाने लगे और सीता ने श्रीराम में गले में जयमाला डाल दी। बांदा से आये मानस मनोहर रामगोपाल तिवारी ने कहा कि हनुमान जी ने तीन बार छलांग लगाई प्रथम बार सूर्य को मुख में रखकर जन्म के समय दूसरी बार भक्तिरूपी सीता की खोज में लंका जाने के लिये तीसरी बार लक्ष्मण मूरछा के समय संजीवनी बूटी लाने हेतु इस प्रकार ज्ञान भक्ति और बैराग की अपने जीवनकाल में तीन छलांग लगाई थी। मानस मर्मग्य डॉ0 रामबाबू पाठक ने कहा कि कैकेई ने राजा दशरथ से दो वरदान मांगे भरत को राज और श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास श्रीराम के सामने पिता व माता के सामने धर्म का संकट है।
कैकेई ने श्रीराम से कहा कि तुम 14 वर्ष के लिये वन चले जाओ तो यह धर्म संकट समाप्त हो जाये। श्रीराम ने पिता दशरथ से सहर्ष जाने की अनुमति मांगी और पिता को धर्म संकट से उबारते हुये वन को सीता-लक्ष्मणा सहित गमन किया। इसके अलावा झांसी के अरूण गोस्वामी व शेवेन्द्रनाथ विजय ने भी प्रवचन किया। तबले पर थाप नन्दकिशोर पाठक ने दी। इस मौके पर बीकेसिंह, अनिल पाठक, सुरजीत पाठक वनटू, ज्योतिस्वरूप अग्निहोत्री, छाविनाथ सिंह, रमेशचंद्र त्रिपाठी, सुबोध, संजीव व जगत प्रसाद मिश्रा सहित कई दर्जन मानस प्रेमी मौजूद रहे।