प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आठ मई से ग्रीन और ऑरेंज जोन की अधीनस्थ अदालतों को भी खोलने का निर्णय लिया है, लेकिन प्रदेश में रेड जोन के तहत आने वाले जिलों में अदालतों को छूट नहीं होगी, वहां पहले की तरह अति आवश्यक मुकदमों की ही सुनवाई होगी।इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि ग्रीन जोन में सभी प्रकार की अदालतें बैठेंगी। जिलाधिकारी के सहयोग से जिला जज परिसर का सैनेटाइजेशन कराएंगे और शारीरिक दूरी सहित सभी सुरक्षा जांच के बाद ही परिसर में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी। वहीं, ऑरेंज जोन में सत्र न्यायालय, विशेष न्यायालय व मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालतें ही बैठेंगी। सभी को सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट की ओर से जारी दिशा-निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है। जिलाधिकारी प्रतिदिन कोरोना वायरस के प्रकोप की निगरानी करेंगे। खतरे की स्थिति के अनुसार कार्य किया जाएगा। इस कार्य में सीएमओ, सीएमएस सहयोग देंगे। देश में पहली बार प्रदेश की अदालतों में काम शुरू करने की पहल की गई है। सकारात्मक रिपोर्ट आने पर योजना को विस्तार दिया जाएगा। अभी फिलहाल आवश्यक मुकदमों की सुनवाई की जायेगी। महानिबंधक अजय कुमार श्रीवास्तव ने सभी जिला जजों, पीठासीन अधिकारियों को निर्देशों का पालन करने का निर्देश जारी किया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी खुली अदालत में होगी सुनवाई
सोमवार को मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में हुई न्यायमूर्तियों की प्रशासनिक समिति की बैठक में निर्णय लिया गया था कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में आठ मई से दो शिफ्टों में अदालतें बैठेंगी। महानिबंधक अजय कुमार श्रीवास्तव ने अधिसूचना जारी कर बताया है कि आठ मई से सुबह 10.30 से 12.30 बजे तक और 1.30 से 3.30 बजे तक आपराधिक व सिविल मामलों की सुनवाई खुली अदालत में की जाएगी, जबकि नए मुकदमे ऑनलाइन व व्यक्तिगत रूप से कार्यालय में दाखिल किए जा सकेंगे। अब हर दाखिल मुकदमे की सुनवाई होगी। अतिआवश्यक सुनवाई की अर्जी देने की जरूरत नहीं होगी।
यह व्यवस्था ट्रायल के तौर पर शुरू की जा रही है। इसमें शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करना अनिवार्य है। जिन वकीलों के मुकदमे लगे होंगे उन्हें शारीरिक दूरी का पालन करते हुए अदालतों में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी। कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण व देशव्यापी लॉकडाउन के कारण हाई कोर्ट में अभी तक अतिआवश्यक मुकदमों की ही सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से की जा रही थी। अधिवक्ताओं व बार संगठनों के दबाव के चलते हाई कोर्ट ने खुली अदालत में सुनवाई कर न्याय देने की स्थापित परंपराओं का पालन करने का फैसला लिया है।