Monday, December 23, 2024
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स्वच्छता के साथ ही सकारात्मकता उत्पन्न करती है रंगोली

फर्रुखाबाद: संस्कार भारती के द्वारा रंगोली अलंकरण की कार्यशाला का सोमवार को विधिवत समापन हुआ| इस दौरान कहा गया कि रंगोली से स्वच्छता के साथ ही सकारात्मकता के भाव उत्पन्न होते है|
नगर के पांडेश्वरनाथ मन्दिर रेलवे स्टेशन रोड (महादेवी वर्मा मार्ग) में कार्यशाला का दूसरा दिन था| जिसके तहत पुणे से आये राष्ट्रीय रंगोली प्रमुख रघुराज पाण्डेय नें कहा कि  रंगोली विधा भारत की परम्परागत प्राचीन कला है जो ऋषियों-मुनियों द्वारा वैदिक ऋचाओं के साथ वेद, पुराण, उपनिषद् में सनातन काल से चली आ रही है। उसी रंगोली कला को युवा पीढ़ी में संस्कार देने का कार्य है। प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रतिभागियों को कहा रंगोली स्वच्छता के साथ व्यक्तियों मे सकारात्मकता के भाव उत्पन्न करती है। उन्होंने वैदिक परम्पराओं में दैवीय शक्ति (ऊर्जा) का प्रभाव रंगोली के माध्यम से शुभ मांगलिक चिन्ह जो सामाजिक जीवन में सुख-शान्ति, समृद्धि प्रदान करते हैं- मंगल कलश, ऊँ, श्री, सूर्य, चन्द्र, चक्र, पद्म, गदा, गोपद, धनुष-वाण, ध्वज, देवी-देवताओंके चरण, सरल रेखा, सीप रेखा, बिन्दु, बर्तुल, अर्घवर्तुल के माध्यम से दैवीय आध्यात्मिक ऊर्जा के स्रोत बताये और प्रतिदिन रंगोली बनाने के लिये आग्रह किया।
रंगोली विधा भारत में अनेकता में एकता का मन्त्र देती है। उत्तर भारत में रंगोली चौक पूरना, बंगला में अल्पना, उड़ीसा में ओसा, अल्मोड़ा गढ़वाल में आपना, मिथला में अरपिन (ऐपन), राजस्थान में मांडणा, गुजरात में समृद्धि परम्परा साथिया ब्रज और बुन्देलखण्ड में सांझी, पहाड़ी क्षेत्र में आनी, दक्षिण भारत में तमिलनाडु में कोलम, केरल में ओनम्, आन्ध्र में मुग्गू, महाराष्ट्र में रंगोली के नाम से भू-अलंकरण करने की परम्परा चली आ रही है।
रंगोली (चैक अथवा चैकी) बनाने की परम्परा चावल की पिट्टी, आटा, दाल (उर्द, मूंग, मसूर, चावल) इसी तरह पेड़, पत्तियों से प्राप्त रंग, गोबर, गेरू, चूना, कोयला आदि वर्तमान समय में पुष्प और वृक्षों की पत्तियों का प्रयोग, दक्षिण भारत, मध्य भारत, उत्तर भारत में मार्बिल रंगों का प्रयोग के साथ-साथ मल्टीकलर प्रिण्टिंग (आर्ट पेपर) में रंगोली विधा का विकास हुआ है। गुजरात प्रान्त में रंगोली, टायल्स के रूप में प्रस्तुत किया। वर्तमान समय में अपने घर आंगन की सुन्दरता और वास्तु शास्त्र में सकारात्मक ऊर्जा सुख-शान्ति समृद्धि के लिये रंगोली विधा परम आवश्यक है।
भू-अलंकरण (रंगोली) कार्यशाला के समापन अवसर पर बोलते हुये मुख्य अतिथि विधायक भोजपुर नागेन्द्र सिंह राठौर ने कहा भारतीय संस्कृति में रंगोली की महत्वपूर्ण भूमिका है। रंगोली मंगल कार्य का प्रतीक है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि ने प्रतिभागियों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। भाजपा नेत्री डॉ० रजनी सरीन नें भी विचार रखे|
रंगोली कार्यशाला का संयोजन प्रान्तीय महामंत्री सुरेन्द्र पाण्डेय, रवीन्द्र भदौरिया, साधना ,संस्कार भारती के अध्यक्ष संजय गर्ग, शैलेन्द्र दुबे, संस्था की सचिव आकांक्षा सक्सेना, डा0 सर्वेश श्रीवास्तव, दीपक रंजन सक्सेना, आदेश अवस्थी, अनुराग पाण्डेय, अनुभव सारस्वत, आचार्य ओमप्रकाश मिश्र ‘कंचन’ (संरक्षक कानपुर प्रान्त), सुनीता सक्सेना, पंकज पाण्डेय, मनीश मिश्रा, अरविन्द दीक्षित, डा0 समरेन्द्र शुक्ल ‘कवि’, अंजू अवस्थी, गोपाल शर्मा, शिवानी शुक्ला, प्रीति तिवारी, वन्दना दीक्षित आदि ने सहयोग किया।

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