आलू शीतगृह में डाला तो घाटा तय

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*उत्पादन लागत से भी कम समर्थन मूल्य
*शीत गृह मालिकों की मनमानी का तोड़

फर्रुखाबाद, विगत वर्ष आलू की मारामारी के चलते इस वर्ष बढा आच्छादन और साजगार मौसम के कारण आलू की बंपर पैदावार हुई है। शीतगृह मालिकों की मनमानी के बावजूद लगभग 60 प्रतिशत कोल्ड स्टोरेज भर चुके हैं। मंडी में 350 से कच्चे आलू का ही 400 का भाव मिल रहा है। विगत वर्ष की तेजी को देखते हुए व्यापारी भी काफी मात्रा में भंडारण कर रहा है। कारोवार से जुड़े किसानों और जानकार लोग किसानों को आलू रखने से ज्याद बेचने की सलाह दे रहे है। केंद्र सरकार ने आलू का जो समर्थन मूल्य घोषित किया है वह किसान की वास्तविक लागत से भी कम है।

आलू के रिकार्ड उत्पादन की उम्मीद जताई जा रही है। उद्यान विभाग का दावा है कि प्रदेश में 151 लाख मीट्रिक टन आलू पैदा हो सकता है। आलू विकास विभाग के आंकड़ों के अनुसार जनपद में विगत वर्ष के कुल 34 हजार 500 हेक्टेयर के सापेक्ष इस बर्ष लगभग 36 हजार हेक्टेअर में आलू बोया गया। विगत वर्ष के 9.5 लाख मीट्रिक टन के सापेक्ष इस बर्ष विभाग लगभग साढ़े दस लाख मीट्रिक टन आलू उत्पादन का आंकलन कर रहे हैं। जनपद में कुल 62 शीतगृह हैं। इनकी कुल भंडारण क्षमता 5.5 हजार मीट्रिक टन है। पिछले साल चार रुपये लीटर डीजल के दाम बढ़ गए और 20 से 30 रुपये तक एक मजदूर की दिन भर की मजदूरी बढ़ गई, लेकिन केंद्र सरकार ने आलू के न्यूनतम समर्थन मूल्य में महज पांच रुपये क्विंटल वृद्धि की स्वीकारोक्ति दी है। सूत्रों के अनुसार प्रदेश में आलू उत्पादन की बढ़ती लागत को देखते हुए राज्य सरकार ने केंद्र से 325 रुपये क्विंटल का न्यूनतम समर्थन मूल्य दिए जाने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर नई दिल्ली में हुई बैठक में केंद्र सरकार ने 305 रुपये क्विंटल के मूल्य पर हामी भरी है। किसानों का कहना है कि एक क्विंटल उत्पादन में 325 रुपये से लेकर 350 रुपये तक लागत आती है।

एसी स्थिति में जानकारों का कहना है कि आलू के भंडारण से बेहतर विकल्प इसे कच्चा बेचलेने में ही है। चूंकि आलू भंडारण के बाद लागत में लगभग 200 रुपये प्रति कुंतल की लागत और बढ़ जाती है। क्योंकि इसमें बोरा, ढुलाई और सूख भी बढ़ जाती है। ऐसे में यदि शीतगृह से आलू निकालने के बाद कुल कीमत 550 से 600 न मिली तो आज की तुलना में घाटा होना तय है। इस स्थिति के आने की संभावना कम इस लिये है क्योंकि मई जून तक को किसान अपने घरों में रखा आलू ही बेचते रहते है। बाद के बचे 4-5 माह में सारा दबाव कोल्ड स्टोरेज में भंडारित आलू पर रहेगा।