Friday, December 27, 2024
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बेसिक शिक्षा: जिन्हें शिक्षको की सहायता के लिए रखा वे तो निगरानी और वसूली में लिप्त हो गए

फर्रुखाबाद:  चूँकि सरकारी तंत्र के अफसरों और शिक्षको ने पिछले 30 साल में सरकारी स्कूल की शिक्षा को बद से इस कदर बदतर कर दिया है कि अब खुद प्राथमिक शिक्षक अपने बच्चो को इन स्कूल में नहीं पढ़ाता| इसकी मूल वजह ये है कि शिक्षा सुधार के लिए नयी व्यवस्था विश्व बैंक से कर्ज लेकर सर्व शिक्षा अभियान चलायी गयी तो उसके ही कर्मियों ने अपनी भूमिका पथ प्रदर्शक की जगह लुटेरो जैसी की बना दी| इस विषय को जानना हर जनता के लिए इसलिए जरुरी है क्योंकि आपके आसपास भी ऐसा कोई रहता है जो काम पर भी समय से नहीं जाता होगा फिर भी उसकी आर्थिक सम्पन्नता अचानक ही आपको दिखाई दे रही होगी| मगर ऐसा कैसे हो रहा है ये पता नहीं| इस लेख का उद्देश्य यही समझाने का है कि किस प्रकार के अनैतिक कृत्यों से वो सम्पन्नता के पैमाने छू रहा है|

विषय बेसिक शिक्षा का है| इसमें सर्व शिक्षा अभियान योजना अलग से इसलिए चलायी गयी ताकि भारत के भविष्य नौनिहाल बच्चो को सम्पन्न परिवारों के पढ़े लिखे बच्चो के बराबर शिक्षा दी जा सके| बेसिक शिक्षा परिषद् और सर्व शिक्षा अभियान अब ये दो संस्था देश में प्राथमिक शिक्षा के सुधार में लग गयी| सर्व शिक्षा अभियान में जो काम शिक्षा के सुधार के लिए होना था उसके लिए अलग से कोई नौकरी न देकर सर्व शिक्षा अभियान ने उधार के कर्मी लेने शुरू किये| ये उधार के कर्मी शिक्षा विभाग से ही लेने होते है चूँकि इनका मूल काम शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना होता है| तो पहले पूरे जिले को भौगोलिक तरीके से ब्लाक, न्याय पंचायत में बाटा गया| ब्लाक में बीआरसी यानि ब्लाक रिसोर्स सेण्टर बना और न्याय पंचायतो में एनपीआरसी यानि कि न्याय पंचायत रिसोर्स सेण्टर बना| एक न्याय पंचायत के अंतर्गत कई गाँव होते है| यानि की एक ब्लाक के 8 से 10 भाग होते है| अब बीआरसी और एनपीआरसी पर शिक्षको में से ही कर्मी लिए गए जिन्हें अपने अपने इलाको में शिक्षको की शिक्षा गुणवत्ता बढ़ाने में मदद करनी थी| इसके लिए इन्हें कुछ और आर्थिक संसाधन और छूट दी गयी| बस यहीं पर गड़बड़ हुआ| आर्थिक संसाधनों और कुछ छूट का उपयोग करते हुए इन्होने अपने मूल कर्तव्य जो शिक्षा गुणवत्ता को सुधारना था उसको करने की जगह खुद को शिक्षको पर निगरानी करने, उनकी कमियां तलाशने, कमियां तलाश कर शिक्षको को ब्लैकमेल करने जैसे कामो में लगा दिया| और ये सब ऊपर वाले यानि कि खंड शिक्षा अधिकारियो और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियो की सहमती से किया|

उदहारण फर्रुखाबाद जिले का ही ले लें| यहाँ 7 ब्लाक है और नगर क्षेत्र है| यहाँ 40 एबीआरसी है| ये एबीआरसी शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने और शिक्षण में शिक्षको की मदद के लिए रखे जाते है| ये हर विषय के अलग अलग होते है| एक ब्लाक में 5 एबीआरसी होते है जो विज्ञानं, गणित, हिंदी, अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञानं के लिए अलग अलग होते है| इनका काम है स्कूल में जाना और कक्षा 5 से 8 के बच्चो को शिक्षित करने में शिक्षक का सहयोग करना और क्लास लेना| उदहारण के लिए किसी शिक्षक को किसी सवाल में दिक्कत है तो उसका हल निकलना| ऐसे ही एनपीआरसी का काम है| ये किसी स्कूल में कुछ अच्छा हुआ तो उसे दूसरे स्कूल में लागू कराना| कुल मिलाकर दोनों पद शिक्षक की शिक्षण व्यवस्था में मदद करने के लिए होते है|

मगर ज्यादातर एबीआरसी और एनपीआरसी करते क्या है-

ये स्कूल में निरीक्षण करने जाते है| स्कूल रजिस्टर पर सीन लिखकर आते है| हाजिरी प्रमाणित करते है और मिड डे मील, निशुल्क पुस्तक वितरण, निशुल्क स्वेटर, जूता मोजा वितरण, स्कूल के लिए खरीदे जाने वाली लाइब्रेरी की किताबो, साइंस किट, खेलकूद किट आदि पर निगरानी और गिद्ध नजर रखते है| इनमे खामिया पाने पर शिक्षको से वसूली करते है| इन्हें सर्व शिक्षा अभियान से 30000 रुपये सालाना मोटरसाइकिल भत्ता मिलता है, स्टेशनरी आदि का अतिरिक्त पैसा मिलता है| एनपीआरसी को चलाने के लिए भारी भरकम आने वाले बजट का बंदरबाट करते है| साल में 20 दिन की छुट्टी मिलती है| हाजिरी का रजिस्टर इनकी जेब/अलमारी में होता है जिसे एक साथ भर सकते है| हालत ये है कि जिले में तैनात एक महिला एबीआरसी साल में आधे दिन तो सिर्फ देशाटन करने और तमाम प्राइवेट संस्थाओ में जाकर सिर्फ ट्रोफी एकत्र करती है| यही नहीं ये समय समय पर होने वाले प्रशिक्षण को संचालित करने के लिए बजट खर्च करते है| बड़े साहब के साथ स्कूल का दौरा कराते है और बड़े साहब के द्वारा स्कूल निरीक्षण में पायी खामियों के बदले ने कार्यवाही से बचाने की दलाली करते है| कहने का आशय ये है कि ये अपने मूल काम शिक्षण गुणवत्ता को बढ़ाने या अपनी तैनाती के स्थान के नौनिहालों को शिक्षित करने की जगह हर वो काम करते करते जिससे इनके खुद के अनैतिक हित सार्थक होते है| और इसी खामियों का लाभ उठाकर कामचोर कुछ (नाम मात्र के) शिक्षक पूरे शिक्षक समाज को बदनाम करते है|

तो इन दिनों जनपद में इन पदों पर नयी भर्तियो का ज्ञापन प्रकाशित हुआ है| जोर शोर से आवेदन शुरू हो चले है| इन्हें भर्ती करने का पटल देखने वालो के मुह में भर्ती में मदद के बदले मिलने वाली न्योछावर की गणित से मुह में लार आने लगी है|  पिछली बार जब भर्ती हुई थी तब इसका पटल देखने वाला वर्षो फाइल दबाये रहा और बिना चयन के रेनोवल करवाता रहा| इस रेनोवल के खेल में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी से लेकर इसे अनुमोदन देने वाले जिला स्तरीय अधिकारी भी शामिल होते है| तो बस ऐसे ही चलता है सिस्टम| शिक्षक की कमियों पर उसके ऊपर का वसूली करता है| उसकी वसूली पर उसके ऊपर वाला गिद्ध नजर रखता है| उसके ऊपर भी कोई होता है जो औचक निरीक्षण में अपनी धाक जमा आता है| अखबारों और मीडिया में खूब सुर्खिया छपती है| इसके बाद सब एक दूसरे को साध लेते है| जारी क्रमश:

 

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