Tuesday, December 24, 2024
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हकीकत: फर्रुखाबाद में 25 लाख वृक्षारोपण के नाम पर जनता के पैसे की हुई बर्बादी..

फर्रुखाबाद: अमृतपुर तहसील के बलीपट्टी गाँव में अभी कुछ 10 दिन पहले ही ग्राम विकास के प्रमुख सचिव को बुलाकर जिले में वृहद वृक्षारोपण का शुभारम्भ हुआ था| उसी दिन पूरे जिले में 25 लाख के लगभग पौधों को लगाने का सफल आन्दोलन भी सरकारी फाइलों में दर्ज हुआ था| ग्राम पंचायतो में चौदहवे वित्त से इस पैसे को खर्च किया गया| और सामाजिक वानिकी प्रभाग जिसे सामान्य भाषा में वन विभाग भी कहते है ने भी आधे के लगभग वृक्षारोपण साल भर में किया जिसे एक दिन में गिना गया| बाकायदा पौधे लगाने और निगरानी के साथ गिनने के लिए अफसरों ने लाखो का डीजल भी फूक दिया| (इस बात में मत जाइये कि डीजल सरकारी पैसे का खर्च हुआ या चंदे या दान का था, अलबत्ता अनुपयोगी रहा) नतीजा क्या निकला? इस पर गौर करिए| अमृतपुर के उसी बलीपट्टी गाँव में जहाँ प्रदेश के बड़े साहब ने पौधे रोपे थे 10 दिन में ही आधे से ज्यादा सूख चुके है| और जो बचे है उन्हें खेत के मालिक उखाड़ने की धमकी दे रहे है| तो क्या सिर्फ वृक्षारोपण हर साल की तरह इस बार भी तमाशा करने के लिए हुआ और जनता के टैक्स का पैसा बर्बाद हुआ….?

किसानो के साथ धोखा हुआ क्या?

अमृतपुर तहसील के बलीपट्टी निवासी श्रीकांत अग्निहोत्री, रामानंद अग्निहोत्री, दयानंद, बांकेबिहारी, मदनमोहन सहित 8 किसान जिनके खेत में लगभग एक एकड़ में वृक्षारोपण हुआ वे अब अलग रोना रो रहे है| उनके मुताबिक प्रधान ने उद्यान के नाम पर उनके खेत में आम के पेड़ लगवाकर बाग़ तैयार करने के लिए सहमती ली| किसानो को भी लगा कि खेती की जगह बाग़ हो जायेगा तो हरियाली के साथ उन्हें आम बेच कर आमदनी भी होगी| मगर जब वृक्षारोपण हुआ तो पीपल, आंवला, बेल और अन्य पौधे रोप दिए गए| पौधारोपण के बाद उनकी बाड़ भी नहीं लगी| जब किसानो के मनमाफिक पौधे नहीं लगे तो उन्हें पानी कौन देता लिहाजा 10 दिन में ही 50 प्रतिशत तो सूख गए| अब इन किसानो का कहना है कि 1 लाख 14 हजार की लागत दिखाकर प्रधान और सचिव ने अपना काम तो कर लिया मगर वे ठगे से गए| उनके खेत में मुख्यमंत्री उद्यान योजना की जगह मुख्यमंत्री सामुदायिक वानिकी योजना के तहत पेड़ लगवा दिए जिससे उन्हें कोई फायदा नहीं| सामाजिक वानिकी में पौधे वन विभाग ने दिए| किसानो का कहना है कि उन्हें बताया गया है कि अब ये खेत वन विभाग अपने कब्जे में ले लेगा और देखभाल करेगा| ऐसे में किसान जिनके नाम खेत है वे घर चलाने के लिए फसल कहाँ उगायेंगे| लिहाजा उन्होंने धमकी दी है कि वे पौधे अपने खेत में नहीं रखेंगे| कुल मिलाकर ये देखने को मिल रहा है कि वृक्षारोपण के नाम पर दिखावा ज्यादा और असल काम न के बराबर हुआ| अब ग्राम पंचायतें चौदहवे वित्त आयोग के धन की निकासी वृक्षारोपण के नाम पर करने में लग गयी है मगर पौधे पेड़ बनेगे इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी ये योजना में तय नहीं है| अब तीन ही काम होंगे दूसरा जानवर चरेंगे, तीसरा पौधे सूख जायेंगे और पहला तो हो चुका है| पहला जो काम था वो है कि 3 .5 लाख पौधों की चोरी का मुकदमा राजेपुर में वन विभाग वृक्षारोपण अभियान से पहले ही लिखा चुका है|

तो कुल मिलाकर बहुत वर्षो से जो काम अन्य सरकारों में होता रहा वो इस सरकार में भी हो रहा है| बदला कुछ भी नहीं| जनता के टैक्स का पैसा जैसे पहले लुटता रहा अब भी लुटा| चौदहवे वित्त आयोग के लागू होने बाद अब तो ग्राम पंचायतो में 50 लाख से 1 करोड़ सालाना खर्च होने लगे है| सड़क की मिटटी बरसात में बह जाना, तालाब की मिटटी तालाब में चला जाना और हर साल उसकी खुदाई होना, वृक्षारोपण सूख जाना जैसे काम पहले भी होते थे अब भी हो रहे है| क्या बदला| जितना निगरानी तंत्र बढ़ा उतना भ्रष्टाचार में हिस्सेदार बढ़ गए| शिकंजा तो बस कमजोर किसान पर कसा जाना है| पहले अंग्रेजी सरकार में राजस्व विभाग वाले किसान से लगान वसूलते थे| अब आजादी के बाद किसानो के विकास के लिए आये सरकारी धन में अपना हिस्सा| वृक्षारोपण, पर्यावरण और हरियाली तो बस लच्छेदार भाषणों और फाइलों तक सीमित है……

 

 

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