बिना पुख्ता प्रमाण के ‘रसीली लीची’ को इंसेफेलाइटिस से जोड़ना साजिश तो नहींं?

FARRUKHABAD NEWS

JNI DESK: रसीली लीची की मिठास में अब कड़वाहट घोलने की कोशिश हो रही है। क्या लीची से इंसेफेलाइटिस की बीमारी हो रही है ? इस मामले में शोधकर्ताओं के निष्कर्ष अलग-अलग हैं। कुछ रिसर्च में लीची को इस बीमारी का एक कारण बताया गया है। कुछ रिसर्च में बताया गया है कि इस जानलेवा बीमारी से लीची का कोई संबंध ही नहीं है। इससे भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी है। बिहार और केन्द्र की सरकार ने इस मामले में अभी तक कोई प्रमाणिक और आधिकारिक पक्ष नहीं रखा है। इस आधी-अधूरी जानकारी से लीची की बिक्री में लोचा आ गया है।

फल माफिया फैला रहे अफवाह ? लीची को इंसेफेलाइटिस से जोड़े जाने के बाद इसकी बिक्री बहुत तेजी से गिरी है। लीची किसानों का कहना है कि फ्रूट माफिया औने पौने दाम में लीची खरीदने के लिए इस तरह की अफवाह तेजी से फैला रहे हैं। अगर लीची ही इंसेफेलाइटिस का कारण है तो दिल्ली , मुम्बई, कोलकाता और दूसरे शहरों के बच्चे क्य़ों नहीं बीमार हो रहे ? देश ही नहीं विदेश में भी मुजफ्फरपुर की लीची बिकती है, वहां इसका प्रकोप क्यों नहीं दिखायी देता ? मुजफ्फरपुर और लीची एक दूसरे की पहचान हैं। क्या इस पहचान को खत्म करने की साजिश रची जा रही है ? लीची की फसल जैसे तैयार हुई इंसेफेलाइटिस का कहर शुरू हो गया। अफवाह की वजह से इसके खरीदार कम हो गये हैं। लीची कच्चा सौदा है। पकी हुई लीची अधिक दिनों तक रख नहीं सकते। किसान औने पौने दाम पर लीची बेच रहे हैं। फल माफिया के रूप में सक्रिय कारोबारी इसका फायदा उठा रहे हैं। अगर दो -तीन साल ऐसी ही स्थिति रही तो लीची किसान पाई-पाई को मोहताज हो जाएंगे।

लीची किसान हैं परेशान चीन दुनिया का नम्बर एक लीची उत्पादक देश है। भारत का स्थान दूसरा है। भारत में कुल 92 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लीची की खेती होती है। बिहार भारत का सबसे बड़ा लीची उत्पाद राज्य है। यहां करीब 32 हजार हेक्टेयर में लीची के बगान हैं। यह कुल खेती का 40 फीसदी हिस्सा है। बिहार के अलावा पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, असम और त्रिपुरा में लीची की पैदावार होती है। लेकिन मुजफ्फरपुर की शाही लीची का कोई जवाब नहीं है। देश-विदेश में इसकी धूम है। मुजफ्फरपुर के अलावा वैशाली, पूर्वी चम्पारण, समस्तीपुर, बेगूसराय और भागलपुर जिले में भी लीची की खेती होती है। 2017 में बिहार में 3 लाख मीट्रिक टन लीची का उत्पादन हुआ था। 2018-19 में बिहार से 137.27 लाख रुपये की लीची की निर्यात हुआ था। बिहार में करीब 50 हजार किसान परिवार लीची से रोजी-रोटी चलाते हैं। अब अगर लीची को शक की नजर से देखा जाएगा तो फिऱ इसको पूछेगा कौन ?

क्या इंसेफेलाइटिस की वजह लीची है ? राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डॉ. विशाल नाथ का कहना है कि रिसर्च के बाद ये बात स्थापित हो गयी है कि लीची में बीमारी का कोई तत्व मौजूद नहीं है। लेबोरेट्री टेस्ट में लीची बेदाग निकली है। लीची में तो विटामिन और मिनिरल्स हैं। बिना पुख्ता प्रमाण के लीची को बदनाम नहीं किय़ा जाना चाहिए। ये सारा बखेड़ा तब शुरू हुआ जब अंग्रेजी मेडिकल जर्नल, लेसेंट ग्लोबल हेल्थ ने एक शोध पत्र प्रकाशित किया। इस शोध पत्र में कहा गया था कि लीची में मिथाइल साइक्लो प्रोपाइल ग्लाइसिन की मौजूदगी दिमाग को प्रभावित करती है। लीची के बीज और अधपकी लीची खाने से शूगर लेवल कम हो जाता है, दिमाग में सूजन हो जाता है, बेहोशी हो जाती है जो मौत का कारण होती है। यानी हानिकारक तत्व लीची में नहीं बल्कि उसके बीज में पाया जाता है । अब सवाल ये है कि कौन ऐसा बच्चा है जो लीची के साथ बीज भी खा जाता है ? अगर लीची खाने से ही इंसेफेलाइटिस होती है तो फिर 18 महीने के छोटे बच्चे को ये बीमारी कैसे हो जा रही है, उसने तो लीची खायी भी नहीं। इस मामले में अभी भी बहुत रिसर्च की जरूरत है। जल्दीबाजी में ऐसी कोई धारणा नहीं बनायी जानी चाहिए जो हजारों किसानों का घर उजाड़ दे। सरकार इसका सटीक कारण और इलाज खोजने के लिए लगातार अनुसंधान करे और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों की पूर्णकालिक सेवाएं ले। जब इस बीमारी का प्रकोप होता है तब हायतौबा मचती है, फिर बाद में सब कुछ भुला दिया जाता है।